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Air India Crash Survivor: धधकती आग, घना धुआं और मौत का साया... लेकिन मां का प्यार बना कवच और बच गया 8 महीने का ध्यांश

मनीषा कच्छाड़िया ने आग की लपटों से अपने बेटे ध्यांश को बचाने के लिए अपने शरीर से ढक लिया था. हादसे के वक्त वह बस यही सोच रही थीं कि अपने बच्चे को किसी भी हाल में बचाना है

Air India Crash Air India Crash

12 जून को अहमदाबाद स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज की रेजिडेंशियल क्वार्टर्स पर एयर इंडिया की फ्लाइट IC171 का बोइंग 787-8 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें 260 लोगों की जान चली गई. लेकिन इस भयानक हादसे में एक मां ने अपने आठ महीने के बेटे को अपनी जान की परवाह किए बिना आग से बचा लिया.

धधकती आग में मां बनी ढाल
मनीषा कच्छाड़िया ने आग की लपटों से अपने बेटे ध्यांश को बचाने के लिए अपने शरीर से ढक लिया था. हादसे के वक्त वह बस यही सोच रही थीं कि अपने बच्चे को किसी भी हाल में बचाना है. भीषण गर्मी, धुएं और जलन के बीच वह अपने बेटे को गोद में लेकर दौड़ीं. आज ध्यांश एयर इंडिया हादसे का सबसे छोटा जीवित बचने वाला बच्चा है.

खुद की स्किन देकर भी बचाया बेटे को
मनीषा और ध्यांश दोनों गंभीर रूप से झुलस गए थे. मनीषा के चेहरे और हाथों पर 25% और ध्यांश के चेहरे, दोनों हाथों, सीने और पेट पर 36% बर्न्स थे. इलाज के दौरान जब ध्यांश को स्किन ग्राफ्टिंग की ज़रूरत पड़ी, तब मनीषा ने अपने शरीर की त्वचा बेटे को दान की और एक बार फिर मां अपने बेटे की ढाल बन गईं.

पिता की भूमिका भी रही अहम
ध्यांश के पिता कपिल कच्छाड़िया बीजे मेडिकल कॉलेज में यूरोलॉजी में सुपर-स्पेशियलिटी एमसीएच छात्र हैं और हादसे के वक्त ड्यूटी पर थे. उन्होंने बताया कि जब हादसा हुआ, मनीषा ने घायल होते हुए भी ध्यान्श को बचाना ही प्राथमिकता समझा. मनीषा ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "एक पल को ऐसा लगा कि हम जिंदा नहीं बचेंगे. पर मुझे अपने बच्चे के लिए बाहर निकलना ही था. जो दर्द हमने सहा, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता."

नवजात के इलाज में आई मुश्किलें
ध्यांश को केडी अस्पताल के पीआईसीयू (Paediatric ICU) में वेंटिलेटर सपोर्ट, फ्लूइड रेससिटेशन, ब्लड ट्रांसफ्यूजन और बर्न के लिए विशेष देखभाल की जरूरत पड़ी. केडी अस्पताल के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. अदित देसाई ने कहा कि एक मां ने जिस साहस से अपने बच्चे को बचाया, वह प्रेरणादायक है. उनके लिए भी यह केस आसान नहीं था.

डॉक्टरों की समर्पित टीम
डॉ. रुतविज परिख (प्लास्टिक सर्जन) ने बताया कि बच्चे की त्वचा और उसकी मां की त्वचा से स्किन ग्राफ्टिंग की गई. बच्चे की उम्र के कारण यह इलाज बहुत संवेदनशील था, ताकि संक्रमण न हो और भविष्य में विकास सामान्य रहे. डॉ. परिख ने कहा कि बच्चे के पिता कपिल ने एक डॉक्टर और एक पिता दोनों की भूमिका निभाई. वह खुद अपने बेटे की ड्रेसिंग रातों को करते थे और हर स्टेप में पूरी जिम्मेदारी निभाते रहे. डॉ. स्नेहल पटेल ने बताया कि हादसे के कारण ध्यांश के फेफड़े में एक तरफ खून भर गया था, जिसके लिए वेंटिलेटरी सपोर्ट और इंटरकोस्टल ड्रेनेज ट्यूब लगानी पड़ी.

पांच हफ्तों के बाद वापसी
लगभग पांच हफ्ते चले इस जीवन-मृत्यु के संघर्ष के बाद अब मां-बेटा दोनों अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके हैं. इस मां की ममता ने आग और किस्मत दोनों को हरा दिया और एक मासूम की जान बच गई.

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