
दीपोत्सव 2025 के नज़दीक आने के साथ ही पवित्र शहर अयोध्या में उत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं. मंदिरों और घरों की सजावट के साथ-साथ दीपों की भव्य रोशनी भी शहर को जगमगा रही है. इस बीच स्थानीय कुम्हार अपनी कला और मेहनत से उत्सव की रौनक बढ़ा रहे हैं.
कुम्हारों की कला
सिर्फ दीप या दीये ही नहीं, बल्कि करवा चौथ के लिए रंग-बिरंगे मिट्टी के बर्तन और भगवान हनुमान की नक्काशीदार मूर्तियां भी बड़ी मांग में हैं. इनकी कला को देखकर यह स्पष्ट होता है कि यह सिर्फ उत्पाद नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का प्रतीक हैं.
दूसरे शहरों से आते हैं खरीदार
अयोध्या से लगभग 60 किलोमीटर दूर सुलतानपुर में कुम्हार रमेश प्रजापत और उनके दस सदस्यीय परिवार ने त्योहारों के लिए विशेष तैयारी शुरू कर दी है. भगवान हनुमान की मूर्तियों में उनकी महारत के कारण हर सीज़न में यह परिवार 400 से 500 मूर्तियां बनाता है.
खरीदार अयोध्या, लखनऊ, गोरखपुर और उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों से आते हैं. मूर्तियां अक्सर केशरी और सिंदूरी रंगों में रंगी जाती हैं और हनुमान जयंती और दिवाली दोनों पर विशेष महत्व रखती हैं.
निर्माण की प्रक्रिया
मूर्तियों का निर्माण कई चरणों में होता है:
प्रत्येक मूर्ति को पूरी भक्ति और मेहनत के साथ तैयार किया जाता है. रमेश प्रजापत कहते हैं, “यह काम हमारी भक्ति भी है और जीविका भी. त्योहारों के ऑर्डर हमें दिन-रात व्यस्त रखते हैं.” अयोध्या के व्यस्त बाजारों में लोग पहले ही मिट्टी की मूर्तियां, दीये और सजावट की वस्तुएं खरीद रहे हैं. कुम्हारों के लिए यह परंपरा से बढ़कर अवसर है- अपने शिल्प को जीवित रखना और अगली पीढ़ी तक पहुंचाना.
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