
Salar Ghazi Dargah or Surya Kund
Salar Ghazi Dargah or Surya Kund
संभल में महमूद गजनवी के भांजे सालार गाज़ी की याद में लगने वाले नेजा मेला पर रोक लगने के बाद अब बहराइच में सालार गाजी की असल दरगाह पर लगने वाले मासिक जेठ मेले पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है. हिंदू संगठन ज्ञापन देकर आक्रांता के नाम पर मेले पर रोक लगाने के साथ सालार गाज़ी की मजार के परिसर की खुदाई करवाकर पूर्व से स्थापित सूर्य कुंड के अवशेष पाए जाने पर वहां फिर से सूर्य कुंड और सूर्य मंदिर की स्थापना की मांग कर रहे हैं. इतिहासकार भी सालार की दरगाह को सूर्य कुंड से जोड़कर देख रहे हैं.
गाजी की मजार पर लगता है मेला-
सालार गाज़ी की मजार के ठीक बाहर एक जंजीरी गेट है, जहां लोग सिक्के चढ़ाते हैं. सालार गाजी की मजार पर मेला लगता है. जिसे लेकर पूरा विवाद है. हालांकि, इस बार संभल में मेले पर रोक लगने के बाद यहां भी मेले पर ग्रहण लगता दिख रहा है. मजार के ठीक सामने बने कमिटी के दफ्तर के बाहर एक नोटिस लगाया गया था, जिसमें मेले को लेकर नीलामी कुछ कारण की वजह से रोकी गई है.

मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि इस मेले में हिंदू भी आते हैं, मुस्लिम भी, सब मिलजुल कर रहते हैं. यह मेला लगना चाहिए, कईयों का रोजगार इस मेले से चलता है. प्रशासन और सरकार जैसा कहेगी, वो किया जाएगा, लेकिन मेला लगने दें.

कोढ़ी खाना या सूर्य कुंड?
मजार के आगे एक जगह है, जिसे लोग कोढ़ी खाना कहते हैं. कहा जाता है वहां नहाने से बीमारियां ठीक हो जाती हैं, शैतान उतर जाता है. तो वहीं, हिंदू संगठन के लोग इसे सूर्य कुंड का पानी कहते हैं, जिसके ऊपर मजार बना दी गई है. तुलसीदास ने भी बहराइच का जिक्र करते हुए कहा है,
"लही आँखि कब आँधरे बाँझ पूत कब ल्याइ।
कब कोढ़ी काया लही जग बहराइच जाइ।"
कुछ आगे बढ़ने पर हिंदू धर्म के कुछ परिवार दिखाई पड़ते हैं. वह बताते हैं कि यहां के बारे में सुना है, बीमारी ठीक हो जाती है, इसलिए जब डॉक्टर के इलाज से कुछ ठीक नहीं हुआ तो यहां के आए हैं.
हिंदू संगठनों की मांग-
इसी बीच बहराइच में हिंदू संगठनों ने डीएम को ज्ञापन सौंपा है और मेला रुकवाने के साथ सालार की मजार की खुदाई कर सूर्य मंदिर के अवशेष मिलने के बाद उसके पुनर्निर्माण की मांग की है. स्वामी विष्णुदेव आचार्य कहते हैं कि यहां सूर्य मंदिर था, लेकिन फिरोज शाह तुगलक ने इसके ऊपर गाज़ी की मजार बनवा दी. उन्होंने कहा यह मेला हमेशा से हिंदू तिथियों के हिसाब से लगता है, क्योंकि इसका इतिहास हिंदुओं से ही जुड़ा हुआ है.

सुहेलदेव महाराज से जुड़ा किस्सा-
इसके बाद मजार से लगभग 7 किमी दूर बहराइच में ही गाज़ी सालार के इतिहास से जुड़ा हुआ सुहेलदेव महाराज का भी एक किस्सा जुड़ा हुआ है, जहां उनकी 40 फीट ऊंची मूर्ति बनी हुई है. इस स्मारक स्थल का भूमि पूजन सीएम योगी ने किया था. पीएम मोदी ने इसका वर्चुअल तरीके से शुभारंभ किया था.

अब सालार गाज़ी के विवाद के बीच इस मूर्ति की स्थापना को भी उससे जोड़कर देखा जा रहा है. एक ओर कुछ गाज़ी को सूफी संत मानने वाले लोग दरगाह पर चादर चढ़ा रहे हैं तो वहीं उसे आक्रांता मानने वाले सुहेलदेव को नमन कर रहे हैं.
क्या कहना है इतिहासकारों का?
इतिहासकार और इतिहास के प्रोफेसर राजेश्वर सिंह ने सुहेलदेव की मूर्ति के पास मौजूद रहकर बताया कि इतिहास के मुताबिक 11वीं शताब्दी में विदेशी आक्रांताओं के हमले नेपाल सीमा से सटे राज्यों में तेजी से बढ़ रहे थे. तब अवध के बहराइच जिले में महाराजा सुहेलदेव ने इनका मुकाबला करते हुए वीरगति प्राप्त की थी.
प्रोफेसर का कहना है कि गाज़ी सालार आक्रांता था जो अपने मामा गजनवी के साथ भारत आया था. गजनवी जब सोमनाथ लुट रहा था, तब सालार बहराइच में सूर्य मंदिर को लूटने के लिए बढ़ा था, जिस स्थान पर आज सालार की ही मजार स्थापित है. लेकिन, सुहेलदेव ने अन्य हिन्दू राजाओं के साथ मिल उसके खिलाफ चित्तौरा में युद्ध लड़ उसे पराजित किया और मार गिराया. लेकिन, 200 साल बाद फिरोजशाह तुगलक ने सूर्य मंदिर के स्थान पर ही सूर्य कुंड को पाटकर सालार की दरगाह बनवा दी. तबसे इस मेले ने यह स्वरूप ले लिया. पहले इसे हिंदू अपने ढंग से मनाते हैं. इसलिए इसमें हिन्दू भी आए हैं और मुस्लिम भी. उन्होंने कहा कि चाहे कोई कुछ भी कहे, लेकिन इतिहास सालार गाज़ी को सूफी के तौर पर नहीं देखता है, वह आक्रांता था.
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