
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच दिल्ली के सभी अस्पतालों की छतों पर रेड क्रॉस का निशान बनाया जाएगा. सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के कई अस्पतालों पर ऐसा किया जाएगा. दरअसल अस्पतालों का यह कदम जंग से जुड़ा हुआ है. इस कदम के पीछे का कारण क्या है और जंग से जुड़े अंतरराष्ट्रीय नियम क्या कहते हैं, आइए समझते हैं.
जिनेवा कन्वेंशन के तहत सुरक्षा
जंग के हालात में अस्पतालों को सुरक्षा जिनेवा कन्वेंशन (Geneva Convention) के तहत दी जाती है. पहले जिनेवा कन्वेंशन (1949) के अनुसार, हॉस्पिटल और दूसरे मेडिकल यूनिट अपनी छतों पर रेड क्रॉस बना सकते हैं. इसका मतलब होता है कि इस इमारत में सैनिकों और नागरिकों का इलाज किया जा रहा है, लिहाज़ा इसे निशाना न बनाएं.
जिनेवा कन्वेंशन का अनुच्छेद 9 इन इमारतों को सुरक्षा भी प्रदान करता है. इसके अनुसार संघर्ष में शामिल सभी पक्षों को रेड क्रॉस प्रतीक का सम्मान करना चाहिए. यानी कि न सिर्फ इन इमारतों पर हमला करने से बचना चाहिए, बल्कि इनका इस्तेमाल सैन्य ठिकानों के तौर पर भी नहीं करना चाहिए.
इसके अलावा चौथी जिनेवा कन्वेंशन का अनुच्छेद 18 विशेष तौर पर सिविलियन अस्पतालों की सुरक्षा करता है. इस अनुच्छेद में कहा गया है कि वे किसी भी हालात में हमले का टारगेट नहीं हो सकते हैं, लेकिन संघर्ष में शामिल पक्षों द्वारा हर समय उनका सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए. सिविलियन अस्पतालों को उनकी पहचान सुनिश्चित करने के लिए छत पर लाल क्रॉस या लाल सेमी-सर्किल बनाने का अधिकार देता है ताकि उन्हें आसमान की ऊंचाई से देखा जा सके.
क्या इसकी कोई सीमाएं भी हैं?
अस्पतालों को मिली सुरक्षा की कुछ सीमाएं भी हैं. किसी अस्पताल को यह सुरक्षा मिलने के लिए ज़रूरी है कि इसका इस्तेमाल सिर्फ घायलों और बीमारों का बिना किसी भेदभाव के इलाज किया जाना चाहिए. चाहे वे सैन्य हों या नागरिक, मित्र हों या शत्रु. अगर किसी अस्पताल का इस्तेमाल सैन्य अड्डे के तौर पर या हथियार रखने के लिए होता है तो वह संरक्षण खो सकता है. हालांकि इससे पहले अस्पताल को चेतावनी मिलनी चाहिए.
रेड क्रॉस साइन का इस्तेमाल भी हर कोई नहीं कर सकता. संघर्ष में शामिल किसी राज्य पक्ष या रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति (ICRC) से मान्यता मिलने के बाद ही कोई अस्पताल या क्लिनिक इस साइन का इस्तेमाल कर सकते हैं. यह नियम इस साइन के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाया गया है.
हाल में कुछ उल्लंघन भी हुए?
अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी कहने के लिए अपने इन मानवीय कानूनों को लेकर बहुत सख्त है और अगर कोई देश इनका उल्लंघन करता है यानी किसी अस्पताल पर हमला करता है तो उसे इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है और उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. हालांकि हाल के वर्षों में ये प्रोटोकॉल अस्पतालों को नहीं बचा सके हैं.
मिसाल के तौर पर, यूक्रेनियन हेल्थकेयर सेंटर ने दावा किया था कि रूस ने उसके खिलाफ युद्ध के पहले साल में 707 मेडिकल इकाइयों को निशाना बनाया था. अप्रैल 2025 के एक हालिया हमले में रूस ने खारकीव पर 16 ड्रोन्स से हमला किया था, जिसमें दो हॉस्पिटल्स निशाने पर आए थे. इस हमले में एक प्रेग्नेंट महिला और एक बच्चे सहित कम से कम 45 लोग घायल हुए थे.
इसके अलावा इसराइल ने भी हमास के साथ संघर्ष के दौरान ग़ज़ा में कई अस्पतालों को निशाना बनाया है. इन हमलों में ग़ज़ा के सबसे बड़े अस्पताल अल-शिफा हॉस्पिटल पर किए गए दो हमले भी शामिल हैं. मार्च 2024 में किए गए दूसरे हमले में अस्पताल की कई मशीनें तबाह हो गई थीं.
संयुक्त राष्ट्र ने ऐसी कई घटनाओं को डॉक्युमेंट किया है और इस उल्लंघन के खिलाफ एक्शन की मांग की है. पाकिस्तान जिनेवा कन्वेंशन के इन नियमों का आने वाले समय में कितना सम्मान करेगा, यह देखने वाली बात होगी.