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Bihar Assembly Election 2025: मोकामा विधानसभा सीट! धनबल और पुरानी प्रतिद्वंद्विता की लड़ाई... अनंत सिंह और वीणा देवी में चुनावी जंग... सरकार कोई भी हो 'पावर' बाहुबलियों के पास

Mokama Assembly Seat: मोकामा विधानसभा सीट एक बार फिर चर्चा में है. यहां बाहुबली और जातीय समीकरण मिलकर सत्ता का संतुलन तय करते हैं. यहां सरकार कोई भी हो 'पावर' बाहुबलियों के पास होता है. इस बार विधानसभा चुनाव में इस सीट से अनंत सिंह और सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी के बीच कड़ी लड़ाई है. इसका परिणाम बिहार की राजनीति में बाहुबलियों की स्वीकार्यता पर एक महत्वपूर्ण संदेश देगा.

Anant Singh and Veena Devi (File Photo) Anant Singh and Veena Devi (File Photo)

बिहार विधानसभा चुनाव की गहमागहमी में पटना से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थित मोकामा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र 178) एक बार फिर राज्य के सबसे कड़े और दिलचस्प मुकाबलों में से एक बन गई है. यह सीट ऐतिहासिक रूप से भूमिहार नेताओं के प्रभुत्व और अस्थिर राजनीतिक माहौल के लिए जानी जाती है, जहां चुनाव सड़कों पर लड़े जाते हैं और अतीत में गोलियां चलने की घटनाएं आम रही हैं. इस बार चुनाव में सीधा और निर्णायक मुकाबला जनता दल यूनाइटेड (JDU) के उम्मीदवार अनंत सिंह, जिन्हें 'छोटे सरकार' के नाम से जाना जाता है और पूर्व सांसद सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी के बीच है, जो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के टिकट पर मैदान में हैं. दोनों ही उम्मीदवार एक ही भूमिहार समुदाय से आते हैं, जिससे यह चुनावी जंग प्रभाव, धनबल और पुरानी प्रतिद्वंद्विता की लड़ाई बन गई है.

अनंत सिंह, जो लगभग दो दशकों से इस सीट पर मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं, हाल ही में पटना उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए जाने के बाद जदयू के टिकट पर अपने राजनीतिक गढ़ को फिर से हासिल करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं. उधर, वीणा देवी, जिनके पति सूरजभान सिंह भी स्थानीय रूप से 'दादा' के नाम से मशहूर एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं. इस चुनाव के माध्यम से सिंह और सूरजभान परिवारों के बीच की पुरानी प्रतिद्वंद्विता को फिर से जीवित कर रही हैं. यह सीट 6 नवंबर 2025 को होने वाले पहले चरण के मतदान का हिस्सा है और इसका परिणाम बिहार की राजनीति में बाहुबलियों की स्वीकार्यता पर एक महत्वपूर्ण संदेश देगा.

बाहुबलियों की राजनीति 
मोकामा, गंगा नदी के किनारे बसा एक उपजाऊ इलाका है, जो दलहन और गेहूं की खेती के लिए मशहूर है. लेकिन पिछले पांच दशकों में इस धरती ने कई बाहुबलियों को जन्म दिया, जिनका दबदबा बिहार और पड़ोसी राज्यों तक फैला और वे विधायक व सांसद भी बने. मोकामा की राजनीति में बाहुबलियों का प्रवेश आजादी के बाद हुआ. पुराने लोग बताते हैं कि उस समय कांग्रेस के बड़े नेता और जमींदार चुनावों में बाहुबलियों और गैंगस्टरों का इस्तेमाल करते थे. एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता, जो दो बार विधायक चुने गए थे ने दिलीप सिंह (अनंत सिंह के बड़े भाई) और दुलार चंद यादव जैसे कई बाहुबलियों को अपना गुर्गा बनाया. ये गुर्गे बाद में राजनीति में खुद सक्रिय हो गए. मोकामा की भौगोलिक स्थिति भी इस बाहुबल की राजनीति को बढ़ावा देती रही है. 

राज्य की राजधानी पटना के करीब होने के बावजूद, इसके अंदरूनी इलाके, खासकर दियारा (नदी के किनारे की उपजाऊ जमीन) और ताल (उथले जलभराव वाले क्षेत्र) में पहुंचना हमेशा से मुश्किल रहा है. इन 'बदनाम' इलाकों में किसान कड़ी मेहनत से फसल उगाते थे, लेकिन लुटेरे उसे लूट लेते थे. इससे निपटने के लिए 1970 के दशक में बाहुबलियों के नेतृत्व में 'रक्षक गिरोह' बने, जो डाकुओं को दूर रखते थे. जानकारों की राय में एक कांग्रेसी नेता ने सबसे पहले बाहुबलियों को संरक्षण देना शुरू किया, लेकिन जब इन बाहुबलियों ने राजनीति के दांव-पेंच सीख लिए, तो उन्होंने अपने संरक्षकों को हटाकर खुद को स्थापित करना चाहा. उन्हीं के शागिर्द दिलीप सिंह ने 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्हें हराया. इसके बाद, कांग्रेस नेता ने सूरज भान को बढ़ावा दिया, जिन्होंने 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर दिलीप सिंह को हराकर सीट जीती. अनंत सिंह ने 2005 में यह सीट जीतकर इस हार का बदला लिया और तब से उनका दबदबा कायम रहा.

अनंत सिंह का राजनीतिक सफर 
अनंत सिंह ने साल 2005 में मोकामा सीट जीत दर्ज की और तब से वह लगातार पांच बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने 2020 का चुनाव भी आरजेडी उम्मीदवार के रूप में जेल से ही जीता. हालांकि, 2022 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया, जिससे उनका कार्यकाल छोटा हो गया. उनके जेल जाने के बाद, उनकी पत्नी नीलम देवी ने आरजेडी के टिकट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की. हाल ही में पटना उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए जाने के बाद, अनंत सिंह अब जदयू का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी सीट को फिर से हासिल करने के लिए मैदान में हैं. अनंत सिंह की कुल संपत्ति 37.88 करोड़ रुपए है, और उन पर हत्या, अपहरण, अवैध हथियार रखने जैसे 28 आपराधिक मामले दर्ज हैं. उनकी पत्नी नीलम देवी की घोषित संपत्ति 62.72 करोड़ रुपए है, और दंपति पर 50 करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज भी है.

अनंत सिंह ने खुद को 'रॉबिन हुड' की छवि दी है और मोकामा के लोग आज भी उन्हें 'विधायक जी' कहकर बुलाते हैं, भले ही उनकी पत्नी विधायक रही हों. स्थानीय लोग याद करते हैं कि कैसे उन्होंने एक खास जाति के बाहुबलियों द्वारा फसलें जबरन ले जाने से किसानों को रोका था. अनंत सिंह उत्तेजित होकर बोलते हैं, कोई हमसे बात करेगा तब न समझेगा कि हम बाहुबली हैं या सोशल वर्कर. जब 2000 के बाद थप्पड़ मारी तक हुआ ही नहीं तो हम बाहुबली कैसी हुए? बाहुबली तो तब होते जब हम थप्पड़ से जीत ते. जनता प्यार करती है तो हम बाहुबली हैं. अनंत सिंह के समर्थक बताते हैं कि इलाके में सड़कों का निर्माण, नल के पानी की आपूर्ति और गांवों का विद्युतीकरण उन्हीं के कहने पर हुआ है. उन्होंने ताल क्षेत्र से बाढ़ का पानी निकालने के लिए उत्तर प्रदेश से 'डोज़र' मंगवाकर काम शुरू कराया है ताकि किसान रबी की फसल बो सकें.

वीणा देवी की चुनौती
अनंत सिंह के सामने पूर्व सांसद सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी हैं. सूरजभान सिंह खुद चुनाव नहीं लड़ सकते क्योंकि वे हत्या के मामले में दोषी ठहराए जा चुके हैं, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को आरजेडी के टिकट पर उतारा है. सूरजभान सिंह 1990 के दशक में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप कुमार सिंह के शागिर्द थे, लेकिन 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर दिलीप सिंह को हराकर उन्होंने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था. सूरजभान सिंह लगातार अनंत सिंह के विरोधियों का समर्थन करते रहे हैं, और 2022 के उपचुनाव में उन्होंने गैंगस्टर नलनी रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी का समर्थन किया था.

वीणा देवी ने कक्षा 9 तक पढ़ाई की है और विकास के मुद्दे पर वोट मांग रही हैं. उन्होंने कहा, हम विकास के मुद्दे पर वोट मांग रहे हैं. यहां प्रगति रुक गई है. हम इसे फिर से शुरू करेंगे. हम 'एक मोकामा, नेक मोकामा' चाहते हैं, जाति या धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं. उनके पति सूरजभान सिंह पर्दे के पीछे से चुनावी जीत की रणनीति संभाल रहे हैं. सूरज और वीणा के रिश्तेदार रितेश कुमार सिंह ने स्वीकार किया कि वे सब बाहुबली हैं, लेकिन उनका दावा है कि वे लोगों की मांग पर चुनाव लड़ने आए हैं और जनता बदलाव चाहती है.

अन्य दावेदारों की कहानी 
मोकामा (निर्वाचन क्षेत्र 178) में लगभग 2.89 लाख मतदाता हैं. यहां लगातार मतदाताओं की अच्छी भागीदारी देखी गई है, जैसे 2020 के चुनावों में, जब अनंत सिंह ने 78,721 वोटों से जीत हासिल की थी. मोकामा में धनुक और कुर्मी जाति के 82,000 लोग हैं, इसके बाद 50,000 से अधिक भूमिहार और 40,000 यादव हैं. दोनों प्रमुख उम्मीदवार (अनंत सिंह और वीणा देवी) भूमिहार जाति से आते हैं, जिससे यह वोट दोनों के बीच बंट जाएगा. इस मुकाबले में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (JSP) ने प्रियदर्शी पियूष को और आम आदमी पार्टी (AAP) ने डॉक्टर राजेश कुमार रत्नाकर को भी मैदान में उतारा है.

प्रियदर्शी पियूष, जिन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई से मास्टर डिग्री हासिल की है, बेरोजगारी और अशिक्षा को मुख्य मुद्दा बनाकर यादवों, धानुक और कुर्मी का समर्थन मिलने का दावा कर रहे हैं. चुनावी विशेषज्ञों का मानना ​​है कि मतदान के दिन सीट पर अनंत सिंह और वीणा देवी के बीच सीधा मुकाबला होगा, क्योंकि मोकामा में मतदान पार्टियों के बजाय व्यक्तित्व पर आधारित होता है. अनंत सिंह ने समाज के हर वर्ग के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए हैं, लेकिन उनके पूर्व प्रबंधक कार्तिक कुमार सिंह का आरजेडी एमएलसी होना उनके चुनाव प्रबंधन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. दूसरी ओर, सूरजभान व्यक्तिगत रूप से अपनी पत्नी के अभियान को संभाल रहे हैं, लेकिन पिछले दो दशकों से इलाके के आम लोगों से उनका सतही जुड़ाव उनके खिलाफ जा सकता है.