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First CM Of Bihar Shrikrishna Sinha: बिहार के इस सीएम ने अपने बेटे को नहीं लेने दिया था विधानसभा का टिकट, पुत्र के चुनावी मैदान में उतरने पर खुद इलेक्शन नहीं लड़ने की कही थी बात, जानिए पूरी कहानी

Bihar Politics: बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. नेता अभी से टिकट पाने के जुगाड़ में लग गए हैं लेकिन हम आज आपको एक ऐसे मुख्यमंत्री के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने अपने बेटे को विधानसभा का टिकट लेने नहीं दिया था. पुत्र के चुनावी मैदान में उतरने पर खुद इलेक्शन नहीं लड़ने की बात तक कह दी थी.  आइए जानते हैं पूरी कहानी. 

First CM Of Bihar Shrikrishna Sinha (File Photo) First CM Of Bihar Shrikrishna Sinha (File Photo)
हाइलाइट्स
  • श्रीकृष्ण सिन्हा बिहार के तीन बार रहे मुख्यमंत्री

  • देश की आजादी में लिया था बढ़-चढ़कर भाग

बिहार में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. अभी से नेता टिकट पाने के जुगाड़ में लग गए हैं. कोई अपने बेटे-बेटी को टिकट दिलाना चाह रहा है तो कई खुद चुनाव लड़ना चाह रहे हैं. बिहार की राजनीति में परिवारवाद चरम पर है लेकिन हम एक ऐसे मुख्यमंत्री के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने अपने बेटे को विधानसभा का टिकट लेने नहीं दिया था. पुत्र के चुनावी मैदान में उतरने पर खुद इलेक्शन नहीं लड़ने की बात तक कह दी थी. हम बात कर रहे हैं बिहार के पहले सीएम डॉ. श्रीकृष्ण सिन्हा की. हम आपको पूरी कहानी बताने से पहले डॉ. श्रीकृष्ण सिन्हा का परिचय दे देते हैं. 

कौन थे डॉ. श्रीकृष्ण सिन्हा
श्रीकृष्ण सिन्हा का जन्म 21 अक्टूबर 1887 को बिहार के मुंगेर जिले में हुआ था. उन्हें बिहार के लोग प्यार से ‘श्री बाबू’ और ‘बिहार केसरी’ कहते हैं. श्रीकृष्ण सिन्हा नाम कई जगह श्रीकृष्ण सिंह भी आपको मिलेगा. श्रीकृष्ण सिन्हा ने मुंगेर से स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी. इसके बाद पटना कॉलेज से कानून में डिग्री हासिल की थी. फिर पटना से साल 1915 में वापस मुंगेर आकर वकालत शुरू कर दी थी. श्रीकृष्ण सिन्हा की मुलाकात साल 1916 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से बनारस के सेंट्रल हिंदू कॉलेज में हुई थी. इसके बाद श्रीकृष्ण सिन्हा की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई. 

कूद पड़े देश की आजादी की लड़ाई में 
बापू से मिलने के बाद श्रीकृष्ण सिन्हा देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. उन्हें साल 1922 में पहली बार जेल भी जाना पड़ा. अंग्रेजों ने नमक सत्याग्रह के दौरान भी श्रीकृष्ण सिन्हा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था. उस समय श्रीकृष्ण सिन्हा कांग्रेस सेवा दल के सदस्य थे. अंग्रेजों ने इस पार्टी को अवैध करार दिया था.

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श्रीकृष्ण सिन्हा 1946 से 1961 तक बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहे. देश की आजादी के बाद उन्‍हें पहला सीएम मनोनीत किया गया था. सीएम रहते श्रीकृष्ण सिन्हा ने कई काम किए वह जमींदारी प्रथा को समाप्त करने वाले देश के पहले सीएम थे. उन्होंने कोशी, अघौर और सकरी में नदी-घाटी परियोजनाओं को लागू किया. बिहार में भारी उद्योगों की शुरुआत की थी. श्रीकृष्ण सिन्हा ने 31 जनवरी 1961 को पटना में अंतिम सांस ली.

क्यों बेटे को नहीं लेने दिया था विधानसभा का टिकट
श्रीकृष्ण सिन्हा बहुत ही सिद्धांतवादी थे. वह राजनीति में परिवारवाद के खिलाफ थे. चंपारण जिले के कुछ प्रमुख कांग्रेसी नेताओं ने साल 1957 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण से मिलकर आग्रह किया था कि आप अपने पुत्र शिवशंकर सिन्हा को विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति दीजिए.

ये कांग्रेसी नेता शिवशंकर सिन्हा को चंपारन की सीट से चुनाव लड़ाना चाह रहे थे. इस पर श्रीकृष्ण सिंह ने कहा था- मेरी अनुमति है लेकिन तब मैं खुद चुनाव नहीं लड़ूंगा क्योंकि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को चुनाव लड़ना चाहिए. श्रीकृष्ण सिंह के साल 1961 में निधन के बाद ही उनके बेटे शिवशंकर सिन्हा विधायक बन सके थे. 

...तो इसलिए अपने विधानसभा क्षेत्र में वोट मांगने नहीं जाते थे श्रीकृष्ण सिन्हा
डॉ. श्रीकृष्ण सिन्हा अपने विधानसभा चुनाव क्षेत्र में आम दिनों में तो जरूर जाते थे लेकिन कभी मतदान के दौरान अपने लिए वोट मांगने नहीं जाते थे. फिर भी वे कभी चुनाव नहीं हारे. श्रीकृष्ण सिन्हा का मानना था कि यदि मैंने जानता के लिए काम किया है तो जनता मुझे वोट देने लायक समझेगी.

यदि मुझे लायक नहीं समझेगी तो वोट नहीं देगी. श्रीकृष्ण सिन्हा 1952 में मुंगेर जिले के खड़गपुर क्षेत्र से विधान सभा के लिए चुने गए थे.  श्रीकृष्ण सिन्हा सीएम बनने के बाद जब भी अपने गांव जाते थे, अपने सुरक्षाकर्मियों को गांव के बाहर ही छोड़ देते थे. श्रीकृष्ण सिन्हा का मानना था कि यह मेरा गांव है. यहां मुझे किसी से कोई खतरा नहीं.  

बिहार के पहले सीएम की तिजोरी में मिले थे सिर्फ इतने रुपए 
श्रीकृष्ण सिन्हा का निधन 31 जनवरी 1961 को हुआ था. निधन के 12वें दिन राज्यपाल, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री दीपनारायण सिंह, जयप्रकाश और श्रीबाबू के मुख्य सचिव मजूमदार की उपस्थिति में श्रीकृष्ण सिन्हा की निजी तिजोरी खोली गई थी. तिजोरी में चार लिफाफों में कुल 24 हजार 500 रुपए निकले थे.

एक लिफाफे में 20 हजार रुपए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लिए थे. दूसरे लिफाफे में तीन हजार रुपए उनके दोस्त शाह उजेर मुनीमी के परिवार के लिए, तीसरे लिफाफे में एक हजार रुपए महेश प्रसाद सिन्हा (बिहार सरकार में तत्कालीन मंत्री) की छोटी बेटी की शादी के लिए भेंट के तौर पर छोड़े गए थे. चौथे लिफाफे में 500 रुपए उन्होंने अपने नौकर के लिए रखे थे. उन्होंने अपने लिए कोई निजी संपत्ति नहीं खड़ी की थी.