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Bihar Assembly Elections 2025: चर्चा से वोट नहीं मिलते! राहुल गांधी मछली पकड़ने से पहले अच्छी सीट पकड़ते तो बिहार में कांग्रेस की स्थिति अच्छी होती 

Rahul Gandhi: कांग्रेस नेता राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान कुछ ऐसा करते हैं, जिसकी चर्चा पूरे देश में होती है. अब राहुल गांधी बिहार के बेगूसराय में मछली पकड़कर चर्चा में आ गए हैं. सियासी गलियारों में चर्चा है कि राहुल गांधी मछली पकड़ने से पहले अच्छी सीट पकड़ते तो बिहार में कांग्रेस की स्थिति अच्छी होती.  

Rahul Gandhi (Photo: PTI) Rahul Gandhi (Photo: PTI)
हाइलाइट्स
  • चुनाव प्रचार के दौरान बेगूसराय में राहुल गांधी ने पकड़ी मछली

  • कई नेताओं ने मछली पकड़ने को लेकर किए कटाक्ष 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिहार के बेगूसराय में मछली पकड़कर चर्चा में आ गए हैं. सियासी गलियारों में चर्चा है कि राहुल गांधी मछली पकड़ने से पहले अच्छी सीट पकड़ते तो बिहार में कांग्रेस की स्थिति अच्छी होती. आइए जानते हैं किसने क्या कहा?   

क्या बोले तेजप्रताप यादव
'राहुल गांधी का काम मोटरसाइकिल चलाना और प्रदूषण फैलाना है. वह अपना पूरा जीवन मछली पकड़ने में बिता देंगे. देश अंधेरे में डूब जाएगा...'जलेबी छानना, मछली पकाना, उनको तो रसोइया होना चाहिए. वह राजनेता क्यों बने?

रवि किशन ने कही यह बात 
'कल जब वह (राहुल गांधी) आए थे तो उन्होंने जितनी मछलियां पकड़ी थीं, उन्हें उससे भी कम वोट मिलेंगे. ठीक है, कम से कम उनकी तैराकी की शैली अच्छी थी. हम वहां वोट पकड़ रहे हैं, और वह मछलियां पकड़ने में व्यस्त हैं.'

मुकेश सहनी ने क्या कहा 
'जिस प्रकार से राहुल गांधी मल्लाह समुदाय के दर्द को कष्ट को समझने का प्रयास किया. जानने का प्रयास किया इससे एनडीए के पेट में दर्द शुरू हो गया, तो यह निषाद समाज का अपमान है. कोई व्यक्ति जाल बिछाना चाह रहा है. मछली पकड़ते हुए देखना चाहता है और ऐसे में कोई कटाक्ष कर रहा है, तो यह कहीं ना कहीं निषाद समाज का अपमान है. आज पूरे बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के निषाद गौरवान्वित हैं कि राहुल गांधी जो इतने बड़े नेता हैं, प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं. हम सबों के साथ जुड़ना चाह रहे हैं.'

यह तरीका पार्टी के लिए लाभकारी होगा या हानिकारक? 
उपरोक्त तीनों बयानों के आइने में राहुल गांधी की मछली पकड़ने वाले एपिसोड को देखने की जरूरत नहीं है. इससे इतर सियासी जानकार और बिहार कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता अंदर ही अंदर अन्य सवालों से जूझ रहे हैं. राहुल गांधी के समर्थन में किसी बड़े कांग्रेस नेता का कोई बयान नहीं आया है. वहीं दूसरी ओर सियासी गलियारों में चर्चा है कि राहुल गांधी को बिहार में मछली पकड़ने की जगह विधानसभा के सीट और लोगों के वोट पकड़ने की कोशिश करनी चाहिए. खैर, राहुल गांधी का मछली पकड़ने की घटना महज एक बानगी है. इससे पहले वे हल चला चुके हैं. किसानों के साथ धान की रोपनी कर चुके हैं. फील्ड में निकलने के बाद वो कुछ न कुछ ऐसा जरूर करते हैं, जिससे चर्चा में आ जाते हैं. बिहार विधानसभा में कांग्रेस पार्टी की वर्तमान स्थिति से सियासी गलियारों में ये सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्राथमिकताएं और उनके चुनाव प्रचार अभियान का तरीका पार्टी के लिए लाभकारी होगा या हानिकारक? 

...तो कांग्रेस के प्रदर्शन पर पड़ेगा असर 
हालांकि, इसका जवाब 14 नवंबर को मतगणना के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा. कांग्रेस के साथ महागठबंधन के नेताओं को भी दिख रहा है कि बिहार चुनाव प्रचार अभियान के दौरान  राहुल गांधी का मछली पकड़ने के शौक में व्यस्त रहना और बिहार में गठबंधन सहयोगियों के साथ एक साइलेंट सी दूरी बनाए रखना कांग्रेस के प्रदर्शन पर अच्छा-खासा असर डालेगी. जानकार मानते हैं कि राहुल गांधी का मछली पकड़ना उनकी व्यक्तिगत रूचि होगी. इसकी जगह वे चुनावी रणनीति, सीटों पर ध्यान और जमीनी जुड़ाव को प्राथमिकता देते, तो बिहार में कांग्रेस की स्थिति कहीं अधिक बेहतर होने की ओर अग्रसर होती. महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी एक दमदार पार्टनर के रूप में अपनी उपस्थिति को दर्ज करा पाती. 

अब जरा आकड़ों पर ध्यान दीजिए कांग्रेस इस बार 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें से 9 सीटों पर दोस्ताना लड़ाई अपने सहयोगी दलों से है. बची 52 सीटें, जिस पर कांग्रेस बीजेपी और जेडीयू के खिलाफ लड़ रही है. अब जरा इन आकड़ों पर ध्यान दीजिए एनडीए में बीजेपी और जेडीयू के 202 सीटों के बाद जो 40 (एक सीट पर नामांकन रद्द ) है उसमें 30 सीटों पर उनके खिलाफ आरजेडी लड़ रही है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कांग्रेस ने कैसी सीटें चुनी है. जानकार तो ये भी बताते हैं कि इनमें से 23 सीटों पर महागठबंधन का कोई दल हाल के चुनाव में नहीं जीता है. राहुल गांधी को सीटों पर ध्यान देना चाहिए.

समय लौटकर नहीं आएगा!
भारतीय राजनीति में शीर्ष नेताओं का सक्रिय रूप से चुनावी लड़ाई में उतरना एक स्थापित परिपाटी है. राहुल गांधी, जो कांग्रेस के प्रमुख चेहरे हैं, से अपेक्षा की जाती है कि वे न केवल रैलियों को संबोधित करें, बल्कि सीट का समीकरण, गठबंधन की गतिशीलता और स्थानीय मुद्दों को समझने में भी सक्रिय भूमिका निभाएं. हालांकि कांग्रेस के अंदरुनी सूत्रों और कुछ प्रगतिशील विचारों वाले नेताओं की कानाफुसी को सुनें, तो बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान, राहुल गांधी ने कई महत्वपूर्ण क्षणों पर राज्य की राजनीति से एक तरह की दूरी बनाए रखी. यह दूरी तब और भी अधिक महसूस हुई जब वह चुनावी सरगर्मी के बीच व्यक्तिगत अवकाश पर चले गए या अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहे. खासकर तब, जब गठबंधन सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव अक्रामक रूप से एक्टिव रहे. 

राहुल गांधी का 'कंफ्यूज'आचरण!
इतना ही नहीं, राहुल गांधी का सीट बंटवारे के दौरान भी अनमना स्वभाव कांग्रेस के नेताओं को अखर गया. कुछ नेता तो ये मानते हैं कि बिहार में कांग्रेस ने अपेक्षाकृत कम सीटों पर चुनाव लड़ा, और इनमें से कई सीटें ऐसी थीं जहां कांग्रेस का आधार बहुत कमजोर था. सीट-साझाकरण की बातचीत में कांग्रेस का कमजोर पक्ष होने का मुख्य कारण केंद्रीय नेतृत्व का निष्क्रिय रहना माना जाता है. यहां ये भी चर्चा होती है कि यदि राहुल गांधी ने शुरुआती चरण में 'सीट पकड़ने' पर ध्यान दिया होता, तो कांग्रेस अधिक मजबूत और जीतने योग्य सीटों पर चुनाव लड़ रही होती. सीटों की संख्या और गुणवत्ता दोनों ही मामलों में कांग्रेस को गठबंधन सहयोगियों की दया पर निर्भर रहना पड़ा, जिसने पार्टी की चुनावी संभावनाएं शुरू में भी सीमित हो गई हैं. ऊपर से अभी भी राहुल गांधी का विधानसभा सीटों और वोटरों को पकड़ने की जगह मछली का पकड़ना पार्टी के कई नेताओं को अखर रहा है. लेकिन वे खुलकर नहीं बोल रहे हैं. 

तेजस्वी यादव ज्यादा आक्रामक 
इसके विपरीत, तेजस्वी यादव ने अपने दम पर एक प्रभावी अभियान चलाया, जिसे व्यापक रूप से सराहा जा रहा है. तेजस्वी के अभियान की ऊर्जा और उनकी 'नौकरी और विकास' पर केंद्रित पिच ने युवाओं को बड़ी संख्या में आकर्षित किया है. ऐसे में, राहुल गांधी की सीमित और कुछ हद तक सुस्त भागीदारी महागठबंधन के लिए एक तरह से सियासी स्लो फैक्टर साबित हुई. सवाल ये है कि जब महागठबंधन का नेतृत्व तेजस्वी यादव के हाथ में दिया है, तो राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को यानी राहुल गांधी को कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए, जिससे एक अच्छा संदेश जाए. मुकेश सहनी के साथ मछली पकड़ना, जिसमें मुकेश सहनी सन ऑफ मल्लाह खुद को कहते हैं. लेकिन राहुल के साथ तैर नहीं पाए. लोगों के अंदर सवाल ये है कि ये कौन सा मल्लाह का बेटा है, जो तैराकी नहीं जानता. राहुल गांधी की ये एक्टिविटी चर्चा के साथ-साथ लोगों के लिए सियासी मनोरंजन का महज साधन बनकर रह गई. 

कांग्रेस का लक्ष्य पर निशाना नहीं!
आलोचक और सियासी जानकार मानते हैं कि राहुल गांधी की प्रचार शैली और बिहार में सिमित रैली भी विधानसभा सीटों से पार्टी को दूर ले जाएगी. कई विश्लेषकों ने उनकी रैलियों को स्थानीय मुद्दों से कटा हुआ और अक्सर कम प्रभावी बताया. उनकी रैलियों में वह 'फोकस' और 'तीखापन' गायब रहा जो तेजस्वी यादव की जनसभाओं में देखने को मिला. जब चुनावी माहौल में हर नेता अपनी पूरी ताकत झोंक रहा था, उस समय राहुल गांधी का राजनीतिक अवकाश लेना या मछली पकड़ने जैसी निजी गतिविधियों में व्यस्त रहना, मतदाताओं के बीच यह संदेश देता है कि शायद वे बिहार चुनाव को इतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, जितनी गंभीरता से स्थानीय मतदाता बेरोजगारी और विकास जैसे मुद्दों को ले रहे हैं.

अंदर ही अंदर उबल रही कांग्रेस!
कांग्रेस पार्टी के भीतर से भी अक्सर यह आवाज उठती रही है कि राहुल गांधी को जमीनी संगठन को मजबूत करने और कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ने पर अधिक ध्यान देना चाहिए. मछली पकड़ने या विदेश यात्राओं पर जाने जैसे उनके कार्य यह धारणा मजबूत करते हैं कि वे पार्टी की रोजमर्रा की चुनौतियों और मैदानी संघर्ष से दूर रहते हैं. एक मजबूत संगठन ही सीटों पर कब्जा कर पाता है और चुनाव को जमीन पर लड़ता है. यदि राहुल गांधी मछली की जगह सीट पकड़ने की रणनीति पर काम करते यानी संगठन को मजबूत करने, सही उम्मीदवारों के चयन और जमीनी स्तर पर संसाधन जुटाने पर ध्यान देते. बिहार में कांग्रेस की स्थिति में निश्चित रूप से बदलाव दिखता. खासकर इस विधानसभा चुनाव में उसका असर स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आता. राहुल गांधी के प्रचार अभियान में 'मोदी-शाह' केंद्रित आलोचना हावी रहती है, जबकि बिहार के मतदाता स्थानीय मुद्दों जैसे बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन पर इस चुनाव में अधिक ध्यान दे रहे हैं. अन्य पार्टियां जन सुराज से लेकर तेजस्वी यादव तक इन्हीं मुद्दों पर अक्रामक हैं. वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी का राष्ट्रीय मुद्दों पर भटकना उन्हें कांग्रेस के वोट पकड़ने से दूर कर रहा है. 

मछली जल की रानी है!
जब, हमने जमीनी कार्यकर्ताओं, कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों और पार्टी से जुड़े नेताओं से सामान्य सी चर्चा की. उसके बाद कुल मिलाकर जो निकला, उसका लब्बोलुआब काफी महत्वपूर्ण है. किसी भी राष्ट्रीय स्तर के नेता का मछली पकड़ना उसके व्यक्तिगत शौक तक सीमित नहीं है. इस दौरान लोग उसकी राजनीतिक प्राथमिकताओं और चुनावी प्रतिबद्धता को ध्यान से देखते हैं. बिहार चुनाव एक महत्वपूर्ण अवसर है, जहां प्रदेश कांग्रेस अपने केंद्रीय नेतृत्व की ओर से पर्याप्त ध्यान और ऊर्जा न मिलने की वजह से ऊहापोह की स्थिति में है. पार्टी के प्रदेश स्तर के नेता कंफ्यूज हैं. आखिर वो किस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं और जा रहे हैं. यदि राहुल गांधी अपने शौक और व्यक्तिगत रूचि को कुछ समय के लिए किनारे कर रैलियों, जनसंपर्क और स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ वन टू वन मिल रहे होते, तो कांग्रेस सही बात है कि मछलियों से कई गुना सीट पकड़ने की स्थिति में हो. महागठबंधन को सत्ता दिलाने में कहीं अधिक प्रभावी भूमिका निभाने की ओर आगे बढ़ रही होती. इसलिए, राजनीतिक जीवन में, विशेषकर चुनाव के दौरान,'सीट पकड़ना' हमेशा 'मछली पकड़ने' से अधिक महत्वपूर्ण होता है.