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Bihar Elections 2025: जाति है कि जाती नहीं... मतदाता से लेकर सभी पार्टियां रखती हैं इसका ख्याल... जानें बिहार विधानसभा चुनाव में क्या रोल निभाता है जातियों का समीकरण?

Bihar Assembly Elections 2025:  बिहार विधानसभा चुनाव में रोजगार, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर क्राइम तक दूसरे कई मुद्दे हैं लेकिन आज भी सबसे बड़ा फैक्टर जाति ही है. इसी जातीय समीकरण को साधते हुए NDA हो या महागठबंधन में सीटों का बंटवारा होता है. उम्मीदवारों के चयन में भी जाति अहम रोल निभाता है. बिहार के मतदाता भी हर विधानसभा चुनाव में जाति को प्रमुखता देते हैं. पार्टी कोई भी हो अपनी जाति के उम्मीदवार को देखकर वोट देते हैं. ऐसे में हम कह सकते हैं कि जाति है कि जाती नहीं...!

Bihar Assembly Elections 2025 Bihar Assembly Elections 2025
हाइलाइट्स
  • बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर 6 नवंबर और 11 नवंबर को होंगे मतदान

  •  14 नवंबर 2025 को घोषित किए जाएंगे विधानसभा चुनाव के नतीजे 

Bihar Chunav: बिहार में इस समय सियासी पारा चरम पर है. विधानसभा की कुल 243 सीटों पर 6 नवंबर और 11 नवंबर को वोट डाले जाने है. चुनाव के नतीजे 14 नवंबर 2025 को घोषित किए जाएंगे. बिहार विधानसभा चुनाव में रोजगार, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर क्राइम तक दूसरे कई मुद्दे हैं लेकिन आज भी सबसे बड़ा फैक्टर जाति ही है. इसी जातीय समीकरण को साधते हुए NDA हो या महागठबंधन में सीटों का बंटवारा होता है.

उम्मीदवारों के चयन में भी जाति अहम रोल निभाता है. इस बार भी टिकट का ऐसा बंटवारा हुआ कि हारे कोई भी पार्टी लेकिन जीतेगी एक जाति विशेष ही. उधर, बिहार के मतदाता भी हर विधानसभा चुनाव में जाति को प्रमुखता देते हैं. पार्टी कोई भी हो अपनी जाति के उम्मीदवार को देखकर वोट देते हैं. ऐसे में हम कह सकते हैं कि जाति है कि जाती नहीं. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जातीय समीकरण निर्णायक है. यादव, मुस्लिम, सवर्ण, कुर्मी, कुशवाहा, पासवान, रविदास, मुसहर, वैश्य वोट बैंक पार्टियों की जीत-हार तय करेंगे. 

किस पार्टी ने किस जाति के कितने उतारे उम्मीदवार  
भारतीय जनता पार्टी: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने कुल 101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. बीजेपी ने सबसे अधिक 49 सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दिया है. इसमें सबसे अधिक राजपूत जाति के 21 उम्मीदवार, इसके बाद भूमिहार जाति के 16, ब्राह्मण जाति से 11 और 1 कायस्थ उम्मीदवार शामिल हैं. भाजपा ने पिछड़ा वर्ग के 24 उम्मीदवारों को टिकट दिया है. इसमें 6 यादव, 5 कुशवाहा, 2 कुर्मी, 4 बनिया, 3 कलवार, 3 सूढ़ी, 1 मारवाड़ी और 1 चनऊ जाति से है. बीजेपी ने अति पिछड़ा समाज के कुल 16 प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा है. इसमें तेली से 5, निषाद जाति से 1, केवट जाति से 1, बिंद जाति से 1, धानुक जाति से 1, कानू जाति से 3, नोनिया जाति से 1, चंद्रवंशी जाति से 1, डांगी से 1 और चौरसिया जाति से 1 उम्मीदवार शामिल है. बीजेपी ने अनुसूचित जाति में सबसे अधिक उम्मीदवार पासवान जाति को दिए हैं. पासवान जाति के 7 उम्मीदवार, रविदास जाति के 3 और 1 मुसहर जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. अनुसूचित जनजाति से 1 उम्मीदवार को टिकट दिया है. 

जनता दल यूनाइटेड: नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने इस बार विधानसभा में कुल 101 उम्मीदवार उतारे हैं. प्रत्याशियों के चयन में पिछड़ा-अति पिछड़ा का विशेष ध्यान रखा गया है. जदयू ने पिछड़ा वर्ग के 37 और अति पिछड़ा वर्ग के 22 उम्मीदवारों को टिकट दिया है. इसमें कुशवाहा जाति से 13 और कुर्मी जाति से 12 प्रत्याशी शामिल हैं. 8 यादव उम्मीदवारों को टिकट दिया है. धानुक जाति से आने वाले 8 उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है. सामान्य वर्ग के 22 उम्मीदवारों को जदयू ने टिकट दिया है. इनमें राजपूत जाति से 10 उम्मीदवार, भूमिहार जाति से 9 उम्मीदवार, ब्राह्मण से 1 और 1 कायस्थ उम्मीदवार शामिल है. जदयू ने 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है. मुसहर और मांझी समाज से आने वाले 5 प्रत्याशियों को टिकट दिया है जबकि रविदास समाज से 5 उम्मीदवारों को टिकट दिया है. जदयू के 101 उम्मीदवारों में अलग-अलग जातियों से आने वाली 13 महिला उम्मीदवार भी शामिल हैं.

राष्ट्रीय जनता दल: लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) ने इस बार विधानसभा चुनाव में कुल 143 उम्मीदवार उतारे हैं. इसमें  MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण का विशेष ध्यान रखा गया है. राजद ने सबसे अधिक यादव जाति से 51 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं. 19 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है. आपको मालूम हो कि MY समीकरण को आरजेडी का पुराना आधार और वोट बैंक माना जाता है और मौजूदा चुनाव में इसका ध्यान रखा गया है. बाकी बची आधी सीटों पर आरजेडी ने सामान्य वर्ग से 14 उम्मीदवारों को मैदान में उतरा है. कुशवाहा जाति से आने वाले 11 उम्मीदवारों को टिकट दिया है.

बिहार की राजनीति में कौन सी जाति कितनी महत्वपूर्ण 
यादव: बिहार में कोई भी चुनाव हो यादव जाति जीत-हार में महत्वपूर्ण रोल निभाती है. इस जाति की आबादी करीब 14.3% है. यादव जाति का झुकाव चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल की तरफ रहता है. हालांकि अब यादव जाति के पढ़े-लिखे नौजवान विकास करने वाली पार्टियों को भी अपना मत देने लगे हैं लेकिन यह संख्या नगण्य है. यादव जाति पहले लालू प्रसाद यादव और अब उनके बेटे तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर भरोसा जताता है. मुस्लिम वोटों (M) के साथ मिलकर यह यादव (Y) वोट बैंक MY समीकरण बनाता है. इस MY समीकरण का चुनाव में RJD को लाभ मिलता है. आरजेडी भी उम्मीदवारों के चयन में इन दोनों जातियों को विशेष तवज्जो देती है.

हिंदू सवर्ण: आपको मालूम हो कि बिहार की कुल आबादी में हिंदू सवर्ण जातियों (राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार और कायस्थ) की भागीदारी लगभग 15.5% है. यह जाति हर चुनाव में अपना दबदबा रखती है. आजादी के बाद इन जातियों का झुकाव कांग्रेस की तरफ रहा. कांग्रेस का जब बिहार में उतना वजूद नहीं रह गया तो यह वर्ग खुद को राजनीतिक रूप से किनारे महसूस करने लगा. परिणामस्वरूप, इस वर्ग ने कांग्रेस का साथ छोड़कर एक नए राष्ट्रीय विकल्प की तलाश की. इस तलाश ने सवर्ण मतदाताओं को भारतीय जनता पार्टी से जोड़ा. तब से लेकर आज तक हिंदू सवर्ण जातियां BJP के लिए सबसे मजबूत और विश्वसनीय कोर वोट बैंक बन गई हैं. वर्तमान में राजपूत, ब्राह्मण, भूमिहार और कायस्थ मतदाता लगभग पूरी तरह से NDA (खासतौर पर BJP) के साथ खड़े हैं. बीजेपी में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के टिकट बंटवारे में इन जातियों के उम्मीदवारों का विशेष ध्यान रखा है. 

मुस्लिम: बिहार राज्य की कुल आबादी में मुस्लिमों की भागीदारी लगभग 17.7 फीसदी है. मुस्लिम समुदाय हर चुनाव में जीत-हार में निर्णायक रोल निभाता है. मुस्लिम समुदाय में भी अपर कास्ट, ओबीसी, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति जैसे अलग-अलग समूह हैं लेकिन ये चुनाव के दौरान एक समुदाय की तरह वोट करते हैं. ऐसे मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ने के लिए सभी पार्टियों में होड़ मची रहती है. बिहार में बहुत कम मुस्लिम मतदाता भाजपा को वोट देते हैं. इनका अधिकतर झुकाव महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और राजद की तरफ रहता है. 

कुर्मी और कुशवाहा: बिहार की कुल आबादी में कुर्मी और कुशवाहा की हिस्सेदारी लगभग 7.1 फीसदी है. इसमें कुशवाहा लगभग 4.2% और कुर्मी लगभग 2.8% हैं. ये दोनों जातियां अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आती हैं. नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं. नीतीश ने कुर्मी और कुशवाहा को मिलाकर ‘लव-कुश’ नाम का एक मजबूत सामाजिक आधार तैयार किया. इस समीकरण ने उन्हें एक दशक से अधिक समय तक बिहार की राजनीति में मजबूत बनाए रखा. इस समीकरण को धानुक (लगभग 2.1% आबादी) जैसी अन्य जातियों का समर्थन भी मिलता रहा है, जो नीतीश कुमार के साथ जुड़ी हुई हैं. कुशवाहा जाति के बड़े नेताओं में उपेंद्र कुशवाहा प्रमुख हैं, जो समय-समय पर विभिन्न गठबंधनों में सक्रिय रहे हैं. वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी ने भी इस वोट बैंक को साधने के लिए सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाया है, जो इसी कुशवाहा समाज से आते हैं. पिछले कुछ चुनावों से कुर्मी और कुशवाहा का झुकाव एनडीए की तरफ खासकर जदयू और बीजेपी की तरफ है.