
बिहार में साल 1952 से लेकर अभी तक 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इस साल 18वां विधानसभा चुनाव होने जा रहा है. हर चुनाव एक नया किस्सा लेकर आया है. आज हम आपको बिहार विधानसभा चुनाव 2005 का किस्सा सुनाने जा रहे हैं, जब एक ही साल में दो बार विधानसभा चुनाव हुए थे और 72 उम्मीदवार पहली बार चुनाव जीतने के बावजूद विधायक नहीं बन पाए थे. बाद में ये पूर्व विधायक कहलाए थे.
साल 2005 में पहली बार फरवरी में हुआ था विधानसभा चुनाव
साल 2005 में पहली बार विधानसभा चुनाव फरवरी 2005 में हुआ था. नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू और बीजेपी एनडीए के बैनर तले चुनाव लड़ी थी. उधर, आरजेडी, कांग्रेस, लोजपा अकेले चुनाव लड़ी थी. किसी दल को भी बहुमत नहीं मिला था.
फरवरी 2005 में किसे मिली थी कितनी सीटें
1. फरवरी 2005 में बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों पर चुनाव लड़ा गया था.
2. लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद 215 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से उसे 75 सीटों पर जीत मिली थी.
3. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू 138 सीटों पर चुनाव लड़कर 55 सीट जीतने में कामयाब रही थी.
4. बीजेपी 103 सीटों पर चुनाव लड़ी और 37 सीटें जीत पाई थी.
5. कांग्रेस 84 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सिर्फ 10 सीटें ही जीत पाई थी.
6. रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को 29 सीटों पर जीत मिली थी.
7. अन्य के खाते में 37 सीटें गई थीं.
किसी को नहीं मिला था स्पष्ट बहुमत
फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी या गठबंधन को 122 सीटों का स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. राजद और कांग्रेस को मिलकर 85 सीटें ही हो रही थीं. जदयू और भाजपा को मिलाकर 92 सीटें ही हो रही थी. ऐसे में सत्ता की चाभी रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के पास थी, जिसने 29 सीटों पर जीत दर्ज की थी. यदि रामविलास पासवान एनडीए को समर्थन करते तो नीतीश कुमार की सरकार बन जाती लेकिन रामविलास पासवान मुस्लिम उम्मीदवार को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर अड़ गए. स्पष्ट बहुमत नहीं होने के कारण राज्यपाल ने किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया और इस तरह से सरकार नहीं बन पाई.
और बिहार में लग गया राष्ट्रपति शासन
साल 2005 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. कांग्रेस सरकार चाह रही थी कि वह बिहार में लालू की पार्टी की साथ मिलकर सरकार बना ले लेकिन बहुमत कम पड़ रहा था. रामविलास पासवान अपने विधायकों के साथ राजद और कांग्रेस से भी नहीं जुड़ रहे थे. ऊपर से ऐसी चर्चा थी कि रामविलास पासवान के विधायक टूट कर एनडीए को सपोर्ट कर सकते हैं. कई निर्दलीय विधायक भी एनडीए के समर्थन में थे और सरकार एनडीए की बन सकती थी. ऐसी स्थिति को देखते हुए कांग्रेस की केंद्र सरकार ने बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. उस समय यह चर्चा थी कि लालू यादव के दबाव में राष्ट्रपति शासन लगा.
विधायक पद की शपथ लेने का करते रह गए इंतजार
बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू होने के कारण जीते हुए उम्मीदवार विधायक पद की शपथ लेने का इंतजार करते रह गए.फरवरी 2005 में विधासभा चुनाव जीतने वाले बीजेपी विधायक अरुण सिन्हा बताते हैं कि हम लोग इंतजार कर रहे थे विधानसभा की सदस्यता का शपथ लेंगे लेकिन अचानक राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. हम सब जीते हुए विधायक हैरान थे कि अब क्या होगा, उस समय किसी तरह की सुविधा नहीं मिली. बिहार में कानून था कि जो विधानसभा सदस्यता की शपथ लेगा उसके बाद ही उसे विधायकों की जो सुविधा है वह मिलेगी हम लोग शपथ नहीं ले पाए थे.
ऐसे में कोई सुविधा नहीं मिली. अरुण सिन्हा बताते हैं कि जब नवंबर 2005 में फिर से विधानसभा चुनाव हुआ तो वह तो दोबारा जीतकर विधायक बन गए लेकिन 72 ऐसे उम्मीदवार थे जो फरवरी 2005 में तो चुनाव जीत गए थे लेकिन नवंबर में वे चुनाव नहीं जीत पाए थे. जब नवंबर में नीतीश कुमार की सरकार बनी तो उन्होंने पुराने कानून को समाप्त किया और फरवरी 2005 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीत दर्ज करने वाले विधायकों को पूर्व विधायक की सारी सुविधाएं महैया कराई गई. यह उन विधायकों के लिए बड़ी बात थी जो फिर से चुनाव नहीं जीत पाए थे. इसमें वर्तमान उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा भी शामिल थे.
ये प्रमुख उम्मीदवार दूसरी बार नहीं जीत पाए थे चुनाव
1. वर्तमान उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा फरवरी 2005 में लखीसराय से चुनाव जीते थे लेकिन नवंबर 2005 का चुनाव हार गए थे.
2. बरबीघा से वर्तमान नीतीश सरकार में मंत्री अशोक चौधरी फरवरी 2005 में चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़े थे और जीते भी थे, लेकिन बरबीघा से नवंबर 2005 में जदयू उम्मीदवार विजयी हुए थे.
3. जदयू की एक और मंत्री लेसी सिंह जो 2005 फरवरी में धमदाहा से चुनाव जीती थी, लेकिन नवंबर 2005 में राजद के दिलीप कुमार यादव से चुनाव हार गईं थी.
4. शिकारपुर विधानसभा सीट से फरवरी 2005 में सुबोध कुमार कांग्रेस से चुनाव जीते थे लेकिन नवंबर में वह हार गए थे. बीजेपी की भागीरथी देवी को विजय मिली थी.
5. सिकटा से दिलीप वर्मा समाजवादी पार्टी से फरवरी 2005 में जीते थे. नवंबर में इस सीट से कांग्रेस के खुर्शीद फिरोज अहमद ने जीत दर्ज की थी.
6. सुगौली से आरजेडी उम्मीदवार विजय प्रसाद गुप्ता फरवरी 2005 में चुनाव जीते थे लेकिन नवंबर में बीजेपी के रामचंद्र सहनी चुनाव जीत गए.
7. मधुबन से आरजेडी के राणा रंधीर फरवरी 2005 में चुनाव जीते लेकिन नवंबर में जदयू के शिवजी राय विजयी हो गए.
8. केसरिया से जदयू के ओबेदुल्ला फरवरी 2005 में चुनाव जीते थे लेकिन नवंबर में आरजेडी के राजेश कुमार रोशन जीत गए.
9. हरसिद्धि से अवधेश कुशवाहा लोजपा से फरवरी 2005 चुनाव जीते थे लेकिन नवंबर 2005 में इस सीट से लोजपा के महेश्वर सिंह विधायक बने.
10. सिवान से फरवरी 2005 में अवध बिहारी चौधरी राजद की टिकट पर चुनाव जीते थे लेकिन नवंबर 2005 में बीजेपी के व्यास देव प्रसाद चुनाव जीते.
11. परसा से फरवरी 2005 में चंद्रिका राय राजद से चुनाव जीते थे लेकिन 2005 नवंबर में छोटे लाल राय जदयू की टिकट पर चुनाव जीत गए.
नवंबर 2005 में किसे मिली थी कितनी सीटें
1. नवंबर 2005 में हुए चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू 139 सीटों पर चुनाव लड़ी और 88 सीटों पर जीत हासिल की थी.
2. लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी 175 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 54 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी.
3. बीजेपी 102 सीटों पर लड़ी थी और 55 सीटें जीती थी.
4. रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी 203 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सिर्फ 10 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी थी.
5. अन्य के खातों में 36 सीटें गईं थीं.
6. जदयू और बीजेपी ने मिलकर एनडीए की सरकार बनाई थी. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे.