
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव इसी साल होने हैं. चुनावी पारा चढ़ा हुआ है. बिहार की सत्ता की कुर्सी पर टिके रहने के लिए सिर्फ बहुमत ही नहीं, बल्कि हर सहयोगी दल और विधायक का भरोसा बनाए रखना जरूरी है. यहां एक मामूली फैसला से भी सरकार गिर सकती है. आज हम आपको बिहार के ऐसे मुख्यमंत्री की कहानी बता रहे हैं, जिन्हें सीएम पद की शपथ लेने के महज 10 महीने बाद एक सरकारी बस कंडक्टर के निलंबन के कारण सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. जी हां, हम बात कर रहे हैं 1970 में मुख्यमंत्री रहे दारोगा प्रसाद राय की. इस पूरी कहानी को जानने से पहले दारोगा प्रसाद राय के बारे में थोड़ा जान लेते हैं.
बाबू जगजीवन राम ने दिलाया था पहली बार कांग्रेस से टिकट
दारोगा प्रसाद राय का जन्म सारण (छपरा) जिले के बजहिया गांव में 2 सितंबर 1922 को एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता उन्हें पढ़ा-लिखाकर पुलिस बनाना चाह रहे थे, इसलिए दारोगा नाम रख दिया. अहीर जाति से संबंध रखने वाले दारोगा प्रासद राय पढ़ाई के साथ आजादी की लड़ाई में भी सक्रिय रहने लगे. हालांकि उन्हें घर-परिवार चलाने के लिए शिक्षक की नौकरी ज्वाइन कर ली. हालांकि फिर भी वह आजादी के आंदोलन से जुड़े रहे. बापू की हत्या के बाद दारोगा प्रसाद सर्वोदयी संघ में एक्टिव हो गए.
एक दफा उनके स्कूल में संघ का एक कार्यक्रम हुआ. चीफ गेस्ट थे बिहार से आने वाले कांग्रेस नेता और नेहरू कैबिनेट के मेंबर बाबू जगजीवन राम. कार्यक्रम में दारोगा प्रसाद राय ने भाषण दिया. उनका अंदाज, तेवर और तर्क जगजीवन राम को जबरदस्त लगे. बाबू जगजीवन राम ने दारोगा प्रसाद राय को कांग्रेस से जुड़ने के कहा और फिर 1952 के विधानसभा चुनाव में परसा सीट से टिकट भी दिलवा दिया. चुनाव जीतकर दारोगा प्रसाद विधायक बन गए. इसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव 1957, 1962, 1967, 1969, 1972 में परसा सीट से दरोगा प्रसाद को जीत मिलती रही. इस दौरान दारोगा प्रसाद राय ने ग्रामीण विकास, कृषि, सिंचाई जैसे मंत्रालयों का जिम्मा संभाला. 1970 में मुख्यमंत्री बनने का भी मौका मिला.
दारोगा प्रसाद राय ऐसे बने थे मुख्यमंत्री
साल 1969 में बिहार में किसी दल के सरकार नहीं बना पाने की वजह से राज्य में 6 जुलाई 1969 को राष्ट्रपति शासन का ऐलान कर दिया गया. जनवरी 1970 में राष्ट्रपति शासन के 6 महीने पूरे होने के बाद भी कोई भी पार्टी चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं थी क्योंकि सालभर पहले ही चुनाव हुए थे. ऐसे में फिर से सरकार बनाने की कवायद शुरू हुई. उस समय कांग्रेस अध्यक्ष बाबू जगजीवन राम थे.
उन्होंने ही अपने राजनीतिक शिष्य दारोगा प्रसाद राय का नाम विधायक दल के नेता लिए आगे किया. इंदिरा गांधी और हेमवती नंदन बहुगुणा का भी दारोगा प्रसाद को समर्थन मिला. ऐसे में पार्टी के किसी भी नेता ने कुछ नहीं कहा और दारोगा प्रसाद को विधायक दल का नेता चुन लिया गया. अब बहुमत जुटाने के लिए कांग्रेस ने शोषित दल, झारखंड पार्टी और कुछ निर्दलीय विधायकों को लामबंद किया. उन्हें सरकार में शामिल किया गया. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और CPI ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया. इस तरह 16 फरवरी 1970 को बिहार के 10वें मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय बन गए.
और गिर गई दारोगा प्रसाद राय की सरकार
दारोगा प्रसाद राय जब सीएम थे तभी बिहार राज्य परिवहन निगम के एक आदिवासी बस कंडक्टर को सस्पेंड कर दिया गया. कंडक्टर पर काम में कोताही का आरोप लगा था. इससे नाराज कंडक्टर सीधे बागुन सुम्ब्रई के पास चला गया. सुम्ब्रई झारखंड पार्टी के बड़े आदिवासी नेता थे. कंडक्टर ने बागुन को पूरा मामला समझाया. उसकी बातें सुनकर बागुन सीधे मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद से मिलने पहुंच गए. उन्होंने सीएम दारोगा प्रसाद से कहा कि कंडक्टर को बहाल कर दीजिए. इसके बावजूद कंडक्टर को बहाल नहीं किया तो फिर बागुन मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे. इस बार भी सीएम ने गोलमोल जवाब दिया. कहा कि देखते हैं, कुछ करते हैं. इसके बाद एक सप्ताह बीत गया और कंडक्टर को बहाल करने के मामले में कुछ नहीं हुआ.
जब दारोगा प्रसाद राय की सरकार ने कंडक्टर के सस्पेंशन वापस लेने की मांग नहीं मानी तो सुम्ब्रुई नाराज हो गए. उन्होंने सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी. दारोगा प्रसाद को उम्मीद थी बागुन सुम्ब्रुई के समर्थन वापस लेने के बाद भी वह विश्वास मत हासिल कर लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दारोगा प्रसाद सरकार के समर्थन में 144 मत जबकि विपक्ष में 164 मत पड़े. बागुन सुम्ब्रुई के 11 समर्थकों ने जहां विपक्ष में वोट किया था तो वहीं लेफ्ट पार्टी ने भी सरकार का साथ नहीं दिया था. इस तरह से दारोगा प्रसाद को सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी थी. 22 दिसंबर 1970 को दारोगा प्रसाद की सरकार गिर गई. कांग्रेस की इस हार के बाद कर्पूरी ठाकुर सत्ता में आए और बिहार की राजनीति में नया अध्याय शुरू हुआ. राजनीतिक करियर में तमाम उतार-चढ़ाव देखने के बाद दारोगा प्रसाद राय का 15 अप्रैल 1981 को निधन हो गया. इसके बाद उनकी सीट पर हुए उप चुनाव में उनकी पत्नी पार्वती देवी को जीत मिली. बाद में उनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे चंद्रिका राय संभाल रहे हैं.