
Bihar Assembly Elections: बिहार विधानसभा का चुनाव बस कुछ महीनों में होने वाला है. सभी पार्टियां जीत दर्ज करने के लिए जुट गई हैं. आज हम आपको लालू प्रसाद यादव के पहली बार मुख्यमंत्री बनने की कहानी बता रहे हैं.
लालू यादव को आसानी से सीएम की कुर्सी नहीं मिली थी. लालू यादव के अलावा सीएम बनने की रेस में तीन दावेदार थे. एक पर तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का हाथ तो दूसरे पर केंद्र की राजनीति में दमखम रखने वाले चंद्रशेखर का हाथ था. आइए लालू के सीएम बनने की कहानी जानने से पहले उनके जीवन और राजनीतिक पारी शुरू करने के बारे में जान लेते हैं.
शुरू में नाम था लालू प्रसाद चौधरी
लालू प्रसाद का जन्म 11 जून 1948 को बिहार राज्य के गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में एक गरीब किसान परिवार कुंदन राय और मरछिया देवी के घर हुआ था. लालू की शुरुआती पढ़ाई गोपालगंज के एक सरकारी स्कूल से हुई. गांव में उनका नाम लालू प्रसाद चौधरी था. 5वीं क्लास में दाखिला लिया. इसी दौरान उनका नाम लालू यादव हो गया. लालू यादव ने आगे की पढ़ाई के लिए बीएन कॉलेज में दाखिल लिया लेकिन अलजेबरा की वजह से साइंस छोड़ दिया. लालू को डॉक्टर बनने का सपना था लेकिन ऑपरेशन से डरते थे. इसलिए ये सपना भी पीछे छूट गया. इसके बाद लालू यादव ने राजनीति शास्त्र और इतिहास से ग्रेजुएशन किया. पटना में पढ़ाई के दौरान ही लालू के शादी के रिश्ते आने लगे थे. साल 1973 राबड़ी देवी से लालू यादव की शादी हो गई.
और बन गए स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष
साल 1970 में लालू यादव का ग्रेजुएशन हो गया. लालू प्रसाद स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष का चुनाव हार गए. इसके बाद लालू यादव बिहार वेटरनरी कॉलेज में डेली वेज पर चपरासी की नौकरी करने लगे. फिर दोबारा कानून की पढ़ाई के लिए पटना यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. साल 1973 में लालू यादव पटना यूनिर्सिटी की स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बन गए.
29 साल में सांसद बन गए थे लालू यादव
साल 1974 में जेपी ने संपूर्ण क्रांति की घोषणा की. इस आंदोलन में लालू यादव भी शामिल हो गए. आंदोलन के दौरान लालू यादव जेपी के सबसे खास बन गए. आंदोलन खत्म हुआ और साल 1977 में लोकसभा चुनाव हुए. लालू यादव को जनता पार्टी ने छपरा से टिकट दिया. लालू यादव ने चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया. लालू यादव 29 साल में सांसद बनने वाले पहले शख्स थे.
इसके बाद जेपी ने लालू यादव को स्टूडेंट्स एक्शन कमेटी का मेंबर बना दिया. बिहार विधानसभा चुनाव में इस कमेटी को टिकट बांटने की जिम्मेदारी दी थी. अब लालू यादव एक जाना पहचाना नाम हो गए थे. सियासत में लालू यादव चमकने लगे. हालांकि जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद साल 1980 में फिर चुनाव हुए. इस बार लालू यादव की सांसदी चली गई. लेकिन अब वो बिहार में एक्टिव हो गए. विधानसभा चुनाव में सोनपुर से लोक दल के टिकट पर चुनाव जीता. साल 1985 में लालू यादव फिर से विधायक बने. फरवरी 1988 में बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया. लालू यादव को विपक्ष का नेता बना दिया गया.
जनता दल ने दर्ज की थी जीत
अब आया साल 1990. इस साल बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ इसमें जनता दल की वापसी हुई.कुल 324 विधासभा सीटों पर हुए चुनाव में जनता दल 122 सीटों पर जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी. 323 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस को मात्र 71 सीटों पर जीत मिली. भाजपा ने 237 सीटों पर लड़कर 39 पर जीत हासिल की. सीपीआई ने 109 सीटों पर चुनाव लड़कर 23 पर जीत दर्ज की थी. सीपीएम को 6 सीटों पर और जेएनपी (जेपी) को तीन सीटों पर जीत मिली थी.
लालू यादव के सीएम बनने की कहानी
बिहार विधासभा का चुनाव साल 1990 में लालू प्रसाद यादव ने नहीं लड़ा था. फिर सीएम के चेहरे को लेकर उनके नाम की भी चर्चा थी. लालू यादव को आसानी से सीएम की कुर्सी नहीं मिली थी. लालू यादव के अलावा सीएम बनने की रेस में राम सुंदर दास और रघुनाथ झा भी थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह राम सुंदर दास को सीएम बनाना चाहते थे. उपप्रधानमंत्री देवीलाल लालू यादव के पक्ष में थे. नीतीश कुमार भी लालू यादव के पक्ष में ही थे. राम सुंदर दास के साथ सामने की लड़ाई में लालू यादव का पलड़ा कमजोर था.
उस समय केंद्र की राजनीति में चंद्रशेखर और विश्वनाथ प्रताप सिंह दो प्रमुख केंद्र थे लेकिन दोनों में बनती नहीं थी. ऐसे में नीतीश कुमार ने चाल चली. उन्होंने चंद्रशेखर से कहा कि वीपी सिंह को रोकिए नहीं तो वह अपने मन का सीएम बना देंगे. चंद्रशेखर को भी अपना दबदबा दिखाने का मौका मिल गया. चंद्रशेखर ने सीएम पद के लिए रघुनाथ झा को आगे कर दिया. ऐसे में मुख्यमंत्री के तीन दावेदार लालू यादव, राम सुंदर दास और रघुनाथ झा हो गए. फिर तय हुआ कि वोटिंग के जरिए सीएम पद के लिए नेता चुना जाए. यूं तो सीएम रेस की सीधी लड़ाई लालू यादव और राम सुंदर दास में थी लेकिन रघुनाथ झा की एंट्री ने लालू को मामूली वोटों के अंतर से जीत दिला दी. सात विधायकों ने रघुनाथ झा के पक्ष में वोट कर दिया. ऐसे में लालू यादव तीन वोट से जीत गए और वीपी सिंह का दांव नाकाम रहा. लालू प्रसाद यादव ने 46 साल की उम्र में 10 मार्च 1990 को पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. लालू यादव जनता दल से मुख्यमंत्री बने थे.
तेजस्वी यादव को सौंप चुके हैं अपना राजनीतिक उत्तराधिकार
लालू यादव पहली बार 10 मार्च 1990 से 3 अप्रैल 1995 तक पांच साल के कार्यकाल के लिए और फिर 4 अप्रैल 1995 से 25 जुलाई 1997 तक तीन साल के कार्यकाल के लिए सीएम बने. चारा घोटाले मामले में जब लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो गई, तो तय हो गया कि देर सवेर उन्हें जेल जाना पड़ेगा, साथ ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ेगा. लालू यादव ने सत्ता हाथ से निकलते देख नई पार्टी बनाने का फैसला किया. लालू यादव ने 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया. इतना ही नहीं लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीएम की कुर्सी पर बैठाने का फैसला किया. 25 जुलाई 1997 को राबड़ी देवी ने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. आज लालू प्रसाद यादव अपना राजनीतिक उत्तराधिकार अपने छोटे पुत्र तेजस्वी यादव को सौंप चुके हैं लेकिन पर्दे के पीछे रहते हुए भी लालू पार्टी की हर निर्णय में प्रमुख भूमिका निभाते हैं.