scorecardresearch

Bihar Politics: बिहार की सियासत में फिर गूंजा 'भूरा बाल साफ़ करो' का नारा, क्या होगा असर?

बिहार में 'भूरा बाल साफ करो' का नारा एक बार फिर सियासी चर्चा का विषय बना हुआ है. आरजेडी नेताओं के बयान पर जेडीयू नेता आनंद मोहन ने कहा कि ये बयान पिछड़ों को गोलबंद करने की कोशिश है. लेकिन अब 90 का दशक नहीं है. अब राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं.

Lovely Anand and Anand Mohan Lovely Anand and Anand Mohan

'भूरा बाल साफ करो' का नारा एक बार फिर बिहार चुनाव में बाहर लाने की तैयारी हो रही है. 90 के दशक में ये मुद्दा खूब चलता था. क्या 2025 में भी ये मुद्दा चलेगा या इसी की टेस्टिंग अभी चल रही हैं. हाल के दिनों में आरजेडी के नेता लगातार इस तरह के बयान देते रहे हैं. आरजेडी का नेतृत्व भी इसका असर जानने के लिए मौन धारण किए हुए है. लेकिन जेडीयू के वरिष्ठ नेता और पूर्व संसद आनंद मोहन ने इसका तगड़ा जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि पिछड़ो को गोलबंद करने के लिए इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं. लेकिन ये 90 का दशक नहीं है. 90 में लालू प्रसाद यादव पिछड़ों के नेता थे. लेकिन बाद में अतिपिछड़ा और दलित उनसे क्यों अलग हो गए? ये सवाल है.

मायने रखता है 10 फीसदी वोट- आनंद मोहन
बिहार में जातीय जनगणना के मुताबिक 10.56 फीसदी अगड़ी जाति की संख्या है. अगर इसमें मुस्लिमों की अगड़ी जाती को मिला दिया जाए तो संख्या 15 फीसदी तक पहुँच जाती है. आनंद मोहन का कहना है कि पिछले 2020 के विधानसभा चुनाव में एक फीसदी के अंतर से हार जीत तय हुआ था. ऐसे में 10 फीसदी अगड़ी जाति का वोट भी मायने रखता है.

सूबे में अगड़ी जाति बड़ी ताकत- आनंद मोहन
बिहार में भले ही अगड़ी जाति की सख्या 10 प्रतिशत हैं. लेकिन अभी भी बिहार में 30 फीसदी सांसद और 26 फीसदी विधायक अगड़ी जाति के हैं.

90 के दशक में मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद नारा गूंजा था- भूरा बाल साफ़ करो. इसमें भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थों जैसी जातियों पर निशाना साधा गया था. उस दौर में नारे को सीधे लालू प्रसाद यादव से जोड़ा गया था. हालांकि लालू यादव ने हमेशा इसे खारिज किया है. अब ये नारा फिर से राजनीतिक बहस का हिस्सा बन रहा है. 

लेकिन अब स्थिति काफी बदल गई है. जहाँ 90 के दशक के पहले बिहार में अगड़े राज करते थे. पिछड़ा और दलित किंग मेकर की भूमिका में थे. वहीं, अब अगड़े हाशिए पर हैं. लेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है.

आरजेडी ए टू जेड की पार्टी- तेजस्वी
आरजेडी की बागडोर जब तेजस्वी के हाथों में आई है. उनका कहना है कि ये नए ज़माने की आरजेडी है. ये केवल यादव और मुस्लिमों यानी एमवाई की पार्टी नहीं है. बल्कि ये ए टू जेड की पार्टी है. उनका कहने का आशय था कि आरजेडी में सभी जातियों समावेश होगा. लेकिन ये बात केवल कहने तक ही रही, अब जब उनकी पार्टी के लोग भूरा बाल साफ करने की बात करते हैं, तो वो उसको हंस कर टाल देते है. आनंद मोहन का कहना है कि ये दोनों तरफ की खेल रहे हैं, जो बैकवर्ड और फॉरवर्ड करना चाहते है. उनको भी खुश रखना चाहते हैं और दूसरी तरफ नाराजगी न हो, इसलिए खुद से ये बात नहीं बोलते हैं और जो बोलते हैं, उन पर कार्रवाई भी नहीं करते.

हालाँकि बिहार के चुनाव के दौरान अगड़ा, पिछड़ा का दांव हर बार चला जाता है. लेकिन अब इसका असर किसी-किसी क्षेत्र में होता है. 2015 के चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने आरक्षण का मुद्दा उठाया था. जिससे उनके वोटों में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई थी और सीट भी बढ़ा था. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का मुद्दा उठाया गया था. फिर भी बिहार में एनडीए को 30 सीट मिली थी.

ये भी पढ़ें: