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बिहार का पहला अनोखा भूत-प्रेत मुक्ति मंदिर, जिसे कहा जाता है भूतों का सुप्रीम कोर्ट !

मंदिर कैमूर जिले के चैनपुर के हरसु ब्रह्माधाम में स्थित है. इस मेले को भूतों का मेला कहा जाता है. यहां लोग दर्शन के साथ-साथ शरीर पर बुरी आत्मा के साये को हटाने के लिए आते हैं. यहां आने के बाद ओझा के बताये अनुसार धूप, बत्ती और कपूर के साथ पूजा की सामग्री खरीदते हैं, फिर मंदिर परिसर में शुरू हो जाता है भूतों को भगाने का सिलसिला.

बिहार का भूतों वाला मंदिर बिहार का भूतों वाला मंदिर
हाइलाइट्स
  • मंदिर में है मां दुर्गा के नौ रूपों की स्थापना

  • कभी खाली हाथ नहीं लौटते भक्त

21वीं सदी में विज्ञान की तरक्की बिहार के कैमूर जिले के इस मंदिर में कोई काम नहीं आती. विज्ञान की तरक्की से इतर आत्माओं के शुद्धीकरण और उनका उद्धार कैमूर के इस मंदिर में होता है. यहां एक ऐसा मेला लगता है, जहां भूत-प्रेतों का दरबार सजता है. ओझा-गुणी आते हैं और महिलाओं के साथ पुरुषों के सिर से बुरी आत्मा के साये को भगाते हैं. ये मंदिर कैमूर जिले के चैनपुर  के हरसु ब्रह्माधाम में स्थित है. इस मेले को भूतों का मेला कहा जाता है. यहां लोग दर्शन के साथ-साथ शरीर पर बुरी आत्मा के साये को हटाने के लिए आते हैं. यहां आने के बाद ओझा के बताये अनुसार धूप, बत्ती और कपूर के साथ पूजा की सामग्री खरीदते हैं, फिर मंदिर परिसर में शुरू हो जाता है भूतों को भगाने का सिलसिला.

कभी खाली हाथ नहीं लौटते भक्त
इलाज के लिए यहां लोगों का हुजूम लगता है. लोगों के मुताबिक जो भी बाबा के दरबार में आता है वो कभी खाली हाथ लौट के नहीं जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक हरसू ब्रह्मा धाम भूतों का सुप्रीम कोर्ट भी कहा जाता है. इस धाम पर हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालू आते हैं और अपने शरीर से बुरी आत्मा को भगाकर बाबा का नाम लेते हुए विदा लेते हैं. पुजारी योगेंद्र पांडेय की माने, तो यहां 650 सालों से भूतों का मेला लगता है. प्रेत आत्माओं की बुरी नजर से लोगों को बचाया जाता है. धाम पर बिहार के अलावा झारखंड, यूपी, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़,राजस्थान और देश के कोने कोने से लोग हरसु ब्रह्म धाम पहुंचते हैं.

क्या है इसके पीछे की कहानी?
मंदिर परिसर में पूजा पाठ और तंत्र मंत्र के अलावा भूतों को भगाने के लिए विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. बताया जाता है कि 108 ब्रह्म स्थानों में पहला हरसू ब्रह्मपूरे भारत में 108 ब्रह्म स्थानों में से पहला हरसू है. इस मंदिर के लिए बकायदा एक ट्रस्ट का निर्माण हुआ है. ट्रस्ट के सचिव कैलाश पति त्रिपाठी बताते हैं कि 1428 ईवी के दौरान यहां राजा शालिवाहन का राज था. हरसू पांडे राजा शालिवाहन के मंत्री और राजपुरोहित थे. राजा शालिवाहन को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी. उसके बाद हरसू ने उन्हें कई तरह के सुझाव दिये. उसके साथ ही उन्हें दूसरी शादी करने की सलाह भी दी. राजा की पहली पत्नी राजस्थान की थी और दूसरी पत्नी छत्तीसगढ की थी. शालिवाहन की दूसरी शादी होते ही पुत्र की प्राप्ति हो गई. उसके बाद से मंदिर में पुत्र की प्राप्ति के साथ भूतों से छुटकारा पाने के लिए लोग यहां आते हैं.

मंदिर में है मां दुर्गा के नौ रूपों की स्थापना
बाबा हरसू धाम में बच्चों का मुंडन संस्कार और प्रेतों से प्रताड़ित लोगों की प्रेतों से मुक्ति का मार्ग मिलता है. यहां ओझा गुणी लोगों को प्रेतबाधा से मुक्ति दिलाते हैं. साथ ही वर्षों से चली आ रही मान्यता के हिसाब से श्रद्धालुओं का भारी संख्या में आना जारी रहता है. यहां दुर्गा मां के नौ स्वरूपों की स्थापना की गई है. हरसू धाम विकास परिषद के अध्यक्ष राकिशोर त्रिपाठी बताते हैं कि मंदिर की पूरे देश में अलग पहचान है. यहां बुरी आत्मा से प्रभावित लोग आते हैं और ठीक होकर जाते हैं. यहां अंधविश्वास नहीं बल्कि मन में आस्था रखने वाले भक्तों का स्वागत होता है और बाबा उनका दुःख हर लेते हैं.