
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सहमति से यौन संबंधों की उम्र को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि कई देशों में किशोरों में संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र कम रखी है. अब समय आ गया है कि हमारा देश और संसद भी दुनियाभर में हो रहे बदलावों पर ध्यान दें. कोर्ट ने POCSO एक्ट के तहत आपराधिक मामलों की बढ़ती संख्या पर अफसोस जताया. ऐसे ही एक मामले में जस्टिस भारती डागरे ने एक 25 साल के आरोपी को बरी कर दिया और कहा कि ऐसे मामले में आोपियों को दंडित किया जा रहा है, जहां किशोरी पीड़िता कहती हैं कि वह आरोपी के साथ सहमति से रिश्ते में थी.
सहमति की उम्र शादी की उम्र से अलग हो- कोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि सहमति की उम्र को आवश्यक रूप से शादी की उम्र से अलग किया जाना चाहिए. क्योंकि यौन संबंध सिर्फ शादी के दायरे में नहीं होते हैं. इस महत्वपूर्ण पहलू पर ना सिर्फ समाज, बल्कि न्यायिक सिस्टम को भी ध्यान देना चाहिए.
जस्टिस ने दूसरे देशों का किया जिक्र-
कोर्ट ने कहा कि समय के साथ भारत में भी कानूनों के जरिए सहमति की उम्र बढ़ाई गई है. साल 1940 से साल 2012 तक इसे 16 साल पर बनाए रखा गया था. जब POCSO कानून लगाया गया तो सहमति की उम्र बढ़ाकर 18 साल कर दी गई. जो संभवत: दुनिया में सबसे अधिक आयु में से एक है. क्योंकि अधिकांश देशों में सहमति की उम्र 14 से 16 साल के बीच है. जस्टिस डांगरे ने कहा कि जर्मनी, पुर्तगाल, इटली और हंगरी में 14 साल की उम्र के बच्चों को यौन संबंध के लिए सहमति देने के लिए सक्षम माना जाता है. लंदन और वेल्स में सहमति की उम्र 16 साल है, जबकि जापान में ये उम्र 13 साल है.
क्या था पूरा मामला-
दरअसल साल 2019 के फरवरी महीने में एक विशेष अदालत ने एक 25 साल के लड़के को 17 साल की लड़की से रेप का दोषी ठहराया था. आरोपी और पीड़ित लड़की ने दावा किया था कि वे आपसी सहमति से रिलेशनशिप में थे. लड़की ने विशेष अदालत को बताया था कि मुस्लिम कानून के तहत उसे बालिग माना जाता है और इसलिए उसने आरोपी व्यक्ति के साथ निकाह किया है. इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस डांगरे ने आरोपी लड़के को बरी कर दिया. इस दौरान जस्टिस ने कहा कि सबूतों से साफ है कि यह सहमति से यौन संबंध का मामला है.
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