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Uttarakhand Forest Fund Scam: जंगल के लिए मिले पैसे, फॉरेस्ट वर्कर्स ने ख़रीद डाले लैपटॉप और आईफोन, अब इस बड़ी रिपोर्ट में हुआ खुलासा, जानिए पूरा मामला

उत्तराखंड में जंगल के पैसों से लैपटॉप, आईफोन, फ्रिज और कूलर खरीदे गए हैं. कैग की इस रिपोर्ट की उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र में रखा गया है. वन मंत्री ने अपने विभाग को जांच के आदेश दिए.

Uttarakhand Forest Fund Scam (Photo Credit: Getty) Uttarakhand Forest Fund Scam (Photo Credit: Getty)
हाइलाइट्स
  • बजट सत्र में कैग रिपोर्ट हुई पेश

  • CAMPA ने किया करोड़ों का स्कैम

उत्तराखंड में भारत के ज्यादा वनीय प्रदेश है. इस राज्य का बड़ा हिस्सा जंगल है. अब इसी जंगल के नाम पर बड़ा घोटाला सामने आया है. दरअसल, जंगल के लिए करोड़ो रुपए मिले थे. उन पैसों से पेड़ लगाने फॉरेस्ट वर्कर्स ने अपने लिए लैपटॉप, आईफोन, फ्रिज और कूलर खरीद लिए.

कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) की रिपोर्ट में इस गड़बड़ी का खुलासा हुआ है. उत्तराखंड विधानसभा में 17 फरवरी से बजट सत्र चल रहा है. बीते दिन 21 फरवरी को कैग की इस रिपोर्ट को सदन में रखा गया. 

कैग की इस रिपोर्ट में जंगल को लेकर कई गड़बड़ी सामने आई हैं. उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं. उत्तराखंड में हुई इस गड़बड़ी पर विस्तार से नजर डालिए.

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क्या है मामला?
कैग ने फाइनेंसियल ईयर 2021-22 की रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि वन और स्वास्थ्य विभाग, वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड बिना किसी प्लानिंग और परमिशन के पब्लिक फंड का इस्तेमाल किया. 2017 से 2021 के दौरान वेलफेयर बोर्ड ने सरकार की परमिशन के बिना 607 करोड़ रुपए खर्च किए.

इस रिपोर्ट में एक और बड़ी खुलासा हुआ. कंपंसेटरी अफोरस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिग अथॉरिटी (CAMPA) को जंगल के लिए 14 करोड़ रुपए मिले थे. इन पैसों से लैपटॉप, आईफोन, फ्रिज, कूलर और बिल्डिंग की सजावट की गई. रिपोर्ट के अनुसार, इन पैसों से कोर्ट केस भी लड़े गए.

CAMPA क्या है?
कैंपा फॉरेस्ट लैंड के लिए जुटाए गए पैसों को मैनेज करता है. जंगलों को अच्छा बनाए रखने के लिए CAMPA कंपनियों और सरकारी एजेंसियों से पैसा इकट्ठा करती है. फिर उन पैसों से पौधारोपण किया जाता है. इन्हीं पैसों का इस्तेमाल जंगलों में लगी आग बुझाने में इस्तेमाल किया जाता है.

दिशा-निर्देशों में साफ कहा गया है कि पैसे मिलने के 1-2 साल के अंदर वनरोपण हो जाना चाहिए. कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि 37 ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें कंपंसेटरी अफोरस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिग अथॉरिटी ने पौधारोपण करने में 8 साल से ज्यादा का समय लग गया.

अन्य गड़बड़ियां
कैग की रिपोर्ट में कैंपा स्कीम के तहत लैंड सेलेक्शन पर सवाल खड़े किए गए हैं. इसके अलावा फॉरेस्ट लैंड ट्रांसफर रूल्स में भी अनदेखी की गई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्द्र ने रोड, पावर लाइन्स, वाटर सप्लाई लाइन्स और ऑफ रोड लाइन की परमिशन दी है लेकिन इसके लिए डीएफओ से मंजूरी लेनी होती है.

रिपोर्ट में बताया गया कि 2014 से लेकर 2022 के बीच 52 मामले ऐसे रहे जिनमें डीएफओ की परमिशन के बिना ही काम शुरू किया गया. कांग्रेस नेताओं ने इस रिपोर्ट पर जमकर हंगामा किया. कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर पब्लिक फंड की बर्बादी का आरोप लगाया. उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि उन्होंने अपने विभाग को इस मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं.