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Chandrashekhar Azad: कभी अंग्रेजी हुकूमत के आगे नहीं झुके...13 साल की उम्र में खाए 15 कोड़े, फिर कहलाए आजाद, जानें इस वीर की कहानी

Chandrashekhar Azad Birth Anniversary: चंद्रशेखर आजाद सिर्फ हिंसा के रास्ते को ही सही नहीं मानते थे, बल्कि उनका समाजवादी विचार था, जिसकी झलक हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में भी दिखाई दी.उनकी टोली में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु भी थे.

चंद्रशेखर आजाद चंद्रशेखर आजाद
हाइलाइट्स
  • चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश में हुआ था

  • 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे

अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए भारत मां के अनेकों वीर सपूतों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी. तब जाकर हमें 15 अगस्त, 1947 के आजादी मिली थी. आज हम उस महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख दिया. 

अंग्रेज खाया करते थे खौफ 
देश की आजादी के लिए लोहा लेने वाले चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भावरा गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडिता सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था. चंद्रशेखर का असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था. गांव के ही स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वे अध्ययन के लिए वाराणसी की ओर चले गए. वहां वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित हुए और असहयोग आंदोलन में कूद पड़े. चंद्रशेखर इस दुनिया में महज 24 साल ही बिता पाए लेकिन उनसे और उनके साथी क्रांतिकारियों से अंग्रेज खौफ खाया करते थे.

जलियांवाला बाग कांड ने अंदर से झकझोर दिया था
पढ़ाई से ज्यादा चंद्रशेखर का मन खेलकूद और अन्य गतिविधियों में लगता था. जलियांवाला बाग कांड के दौरान आजाद बनारस में पढ़ाई कर रहे थे. इस घटना ने बचपन में ही चंद्रशेखर को अंदर से झकझोर दिया था. उसी दौरान उन्होंने ठान ली थी कि वह ईंट का जवाब पत्थर से देंगे. इसके बाद उन्होंने यह तय कर लिया कि वह भी आजादी के आंदोलन में उतरेंगे और फिर महात्मा गांधी के आंदोलन से जुड़ गए.

ऐसे नाम के आगे जुड़ गया आजाद 
1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ने के बाद महज 13 साल की उम्र के चंद्रशेखर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. वह संस्कृत कॉलेज के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे. चंद्रशेखर को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उन्हें मजिस्ट्रेट के पास लेकर गई. वहां जब मजिस्ट्रेट ने उनसे उनका नाम पूछा तो उन्होंने कहा आजाद, जब उनके पिता का नाम पूछा गया तो उन्होंने कहा स्वाधीनता. इसके बाद उनसे उनके घर का पता भी पूछा गया. चंद्रशेखर ने पूरी निडरता के साथ जवाब देते हुए कहा जेल. उनकी तरफ से ऐसे जवाब सुनकर मजिस्ट्रेट गुस्से में आ गया और उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा दी गई. छोटा बालक होकर इतनी बड़ी सजा मिलने के बाद भी वह डरे नहीं. कोड़े पड़ने से उनकी कमर लहू लूहान हो चुकी थी. जब भी उन्हें कोड़ा पड़ता तो वह महात्मा गांधी की जय बोलते. उसी दिन से उनके नाम के आगे आजाद जुड़ गया.

आजादी बात से नहीं, बंदूक से मिलेगी
जलियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर को समझ आ चुका था कि अंग्रेजी हुकूमत से आजादी बात से नहीं, बल्कि बंदूक से मिलेगी. शुरुआत में गांधी के अहिंसात्मक गतिविधियों में शामिल हुए, लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद जब आंदोलन वापस ले लिया गया तो, आजाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और फिर उन्होंने बनारस का रुख किया. बनारस उन दिनों भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था. वह हिंदुस्तान सोशल रिपब्लिक आर्मी में शामिल हो गए. उन्होंने कई क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे काकोरी कांड, सांडर्स-हत्या को अंजाम दिया. उनके साथियों के छोटे से समूह ने अंग्रेजों को परेशान कर दिया था. पुलिस ने उन्हें पकड़ने के लिए उन पर 5,000 रुपए का इनाम भी रखा. लेकिन वह वेश बदलकर आसानी से अपनी योजनाओं को अंजाम देते रहे.

खुद को मारी गोली और हो गए अमर शहीद
27 फरवरी 1931 के दिन पुलिस ने उन्हें इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया था. वह आजाद थे और कभी कैद में नहीं आना चाहते थे इसलिए उन्होंने स्वयं गोली चलाकर अपनी जान दे दी और सदा के लिए आजाद हो गए. उन्हीं के बलिदान से प्रेरित होकर देश के हजारों युवा स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े. आखिरकार उनका सपना 15 अगस्त 1947 को पूरा भी हुआ और भारत विदेशी चंगुल से छूट हमेशा के लिए आजाद हो गया.