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जज्बा हो तो ऐसा...63 की उम्र में आर्थराइटिस को हराकर फतह किया हिमालय

गंगोत्री ने पद्म भूषण माउंटेनियर बछेंद्री पाल के मार्गदर्शन में ट्रांस हिमालयन अभियान चलाया. गंगोत्री और बछेंद्री पाल हर दिन लगभग 20 किमी पैदल चलती थी और अरुणाचल प्रदेश, असम, सिक्किम में हिमालयन रेंज से होते हुए आखिरकार कारगिल में जाकर उन्होंने अपना एक्सपीडिशन खत्म किया.

जज्बा हो तो ऐसा...63 की उम्र में आर्थराइटिस को हराकर फतह किया हिमालय (प्रतीकात्मक तस्वीर) जज्बा हो तो ऐसा...63 की उम्र में आर्थराइटिस को हराकर फतह किया हिमालय (प्रतीकात्मक तस्वीर)
हाइलाइट्स
  • बछेंद्री पाल के साथ की चढ़ाई

  • हर रोज 20 किमी चलती थीं पैदल

कहते हैं अगर मन में कुछ करने की इच्छा हो, ललक हो तो जिंदगी की कोई भी जंग फतह की जा सकती है. कुछ ऐसा ही तो है 63 साल की गंगोत्री सोनेजी के साथ. एक समय में अर्थराइटिस की मरीज गंगोत्री आज पहाड़ों पर ट्रैकिंग करती हैं. 

दरअसल चार साल पहले उन्हें ऑस्टियोआर्थराइटिस का पता चला था और डॉक्टरों ने उन्हें अपने जीवन में कभी भी ट्रेनिंग न करने की सलाह दी थी. लेकिन गंगोत्री ने अपने जज्बे से न केवल ट्रेनिंग शुरू की बल्कि हिमालय पर भी फतह कर लिया. दरअसल गंगोत्री ने एक टीम के साथ हिमालय को फतह किया है, और 11 लोगों की टीम में वो गुजरात की इकलौती महिला थीं,

खुद को किया था चैलेंज
गंगोत्री ने टीओआई को बताया कि, "हिमालय पर ट्रैकिंग करना, कुछ खतरनाक रास्तों पर चलना और पहाड़ों की चोटी से दुनिया को देखना एक अविस्मरणीय अनुभव था. खासकर तब जब मैंने डॉक्टरों के कहने के बावजूद खुद को चैलेंज दिया था. वैसे तो ये सफर एक चैलेंज के तौर पर शुरू हुआ था, पर जल्द ही ये एक रोमांचक यात्रा में बदल गया.

बछेंद्री पाल के साथ की चढ़ाई
गंगोत्री ने पद्म भूषण माउंटेनियर बछेंद्री पाल के मार्गदर्शन में ट्रांस हिमालयन अभियान चलाया. गंगोत्री बताती हैं कि, "बेहद ऊंची और खतरनाक चढ़ाई उसके ऊपर से खराब मौसम की स्थिति, लेकिन मैंने कभी भी अपने दर्द को अपने शरीर पर हावी नहीं होने दिया. मुझे किसी भी हाल में अपना लक्ष्य हासिल करना था. बछेंद्री और मैंने पहले भी एक साथ ट्रेकिंग की है इसलिए हम एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं."

हर रोज 20 किमी चलती थीं पैदल
गंगोत्री और बछेंद्री पाल हर दिन लगभग 20 किमी पैदल चलती थी और अरुणाचल प्रदेश, असम, सिक्किम में हिमालयन रेंज से होते हुए फिर आखिरकार कारगिल में जाकर उन्होंने अपना एक्सपीडिशन खत्म किया. गंगोत्री बताती हैं, "हमने 140 दिनों में 2,170 किमी की पैदल दूरी तय की और ट्रैक के दौरान दो बार 18,000 फीट की चोटी पर पहुंचे. कुछ पहाड़ी दर्रों में, वनों की कटाई, कंक्रीट के निर्माण और दुर्लभ बारिश के कारण 6,000 से 8,000 फीट के बीच पानी की धाराएं नहीं थीं."

जब टीम मेंबर को लगी चोट...
अपने सबसे यादगार पलों के बारे में पूछे जाने पर, गंगोत्री सोनेजी बताती हैं, "पहाड़ों पर ट्रैकिंग करते वक्त दोनों तरफ हरे भरे पेड़ों को देखना काफी रोमांचक था. लेकिन हमने कुछ तनावपूर्ण समय भी गुजारे जब हमारी टीम का एक सदस्य लमखागा दर्रे पर फिसल गया और घायल हो गया." अपने एक्सपीडिशन के बाद गंगोत्री ने पूरी टीम के साथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मुलाकात की.

18 साल की उम्र से कर रही हैं रॉक क्लाइम्बिंग
अपने स्कूल के दिनों में एक राष्ट्रीय तैराक, सोनेजी ने 18 साल की उम्र में रॉक क्लाइम्बिंग शुरू की थी और इसके साथ प्यार हो गया. वह कई ट्रेक के लिए गई और हिमालय में लगभग 15 किए, एक ब्रेक लेने से पहले उन्हें अपनी शादी के बाद अमेरिका में शिफ्ट करना पड़ा. 1990 के दशक में गंगोत्री वडोदरा लौट आईं और फिर से अपने पैशन फॉलो करने लगीं.