मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को शाह बानो बेगम की बेटी द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी मां के जीवन पर आधारित फिल्म ‘हक़’ की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की थी. कोर्ट ने साफ कहा कि किसी व्यक्ति की निजता और प्रतिष्ठा का अधिकार उसकी मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है, और यह अधिकार उसके वारिसों को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता.
जस्टिस प्रणय वर्मा की एकलपीठ ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से स्थापित है कि किसी व्यक्ति की निजता या प्रतिष्ठा का अधिकार उसके जीवनकाल तक ही सीमित रहता है. शाह बानो अब जीवित नहीं हैं, इसलिए उनका यह अधिकार उनके साथ ही समाप्त हो गया. कोर्ट ने यह भी कहा कि फिल्म निर्माताओं पर याचिकाकर्ता से अनुमति लेने का कोई कानूनी दायित्व नहीं था, क्योंकि फिल्म ने याचिकाकर्ता की अपनी निजता या प्रतिष्ठा का कोई उल्लंघन नहीं किया है.
शाह बानो की कानूनी लड़ाई पर आधारित ‘हक़’
यामी गौतम और इमरान हाशमी की फिल्म ‘हक़’ शाह बानो बेगम के जीवन और उनकी ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई से प्रेरित है. शाह बानो ने 1978 में अपने वकील पति मोहम्मद अहमद खान से तलाक के बाद भरण-पोषण के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था. 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में ऐतिहासिक फैसला दिया, जिसके तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुज़ारा भत्ता पाने का अधिकार दिया गया था.
बेटी ने लगाया ‘मां की छवि खराब करने’ का आरोप
शाह बानो की बेटी सिद्दीक़ा बेगम खान ने कोर्ट में दावा किया कि फिल्म उनकी मां की व्यक्तिगत जिंदगी का व्यावसायिक दोहन कर रही है और गलत तथ्यों पर आधारित है. उन्होंने कहा कि फिल्म में दिखाए गए कई प्रसंग झूठे और भ्रामक हैं और परिवार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाते हैं. याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि व्यक्तित्व और नैतिक अधिकार व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारियों को मिलते हैं, इसलिए फिल्म निर्माताओं को परिवार की सहमति लेनी चाहिए थी.
निर्माताओं ने क्या जवाब दिया?
निर्माताओं ने अदालत में कहा कि शख्सियत और निजी अधिकार व्यक्ति की मृत्यु के साथ समाप्त हो जाते हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि फिल्म एक “प्रेरित और काल्पनिक कहानी” है, न कि शाह बानो की जीवनी. फिल्म में यह डिस्क्लेमर भी दिया गया है कि यह कहानी जिग्ना वोरा की अंग्रेज़ी किताब “Bano: Bharat ki Beti” से प्रेरित है और 1985 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर आधारित एक ड्रामाटाइज्ड (dramatized) रूपांतरण है.
कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि जब फिल्म खुद को एक कल्पना और प्रेरित रूप में प्रस्तुत करती है, तो उसमें रचनात्मक स्वतंत्रता की कुछ गुंजाइश स्वाभाविक है. इसे गलत या सनसनीखेज़ कहना उचित नहीं होगा.
हाईकोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता बहुत देर से अदालत आईं, जबकि फरवरी 2024 से ही मीडिया में फिल्म के निर्माण की खबरें चल रही थीं. इसलिए, अदालत ने माना कि याचिका विलंबित और निराधार है.
फिल्म रिलीज़ का रास्ता साफ
अदालत के फैसले के बाद अब ‘हक़’ की रिलीज़ में कोई कानूनी बाधा नहीं है. फिल्म को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) ने 28 अक्टूबर को UA 13+ सर्टिफिकेट दिया था. निर्माताओं में निर्देशक सुपर्ण एस वर्मा और तीन निजी कंपनियां शामिल हैं, जबकि प्रतिवादी के रूप में केंद्र सरकार और CBFC को भी पक्षकार बनाया गया था.