Cyclone Sitrang helped reduce Diwali pollution  
 Cyclone Sitrang helped reduce Diwali pollution  दिल्ली को दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से एक माना जाता है. खास तौर पर जैसे ही सर्दियों की शुरुआत होती है तो कई प्रदूषण के कारक देश की राजधानी में एक साथ घर कर जाते हैं और हवा सांस लेने लायक नहीं रहती.
प्रदूषण के लिहाज से दिवाली सबसे ज्यादा मुश्किल वक्त होता है. इस समय एक साथ कई सारे प्रदूषण के कारक दिल्ली की हवा में जहर घोलते हैं. इस बार भी दिल्ली वालों ने पटाखों पर बैन के बावजूद जमकर आतिशबाजी की. शाम से लेकर रात तक पटाखे चले और प्रदूषण का स्तर कहीं ऊंचाई पर पहुंच गया.
लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि दिवाली की अगली सुबह और फिर दोपहर होते-होते दिल्ली का मौसम बिल्कुल साफ हो गया. जानकारों और मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो यह कई सारे मौसमी फैक्टर के एक साथ आने से संभव हो पाया. यहां तक कि कई हजार किलोमीटर दूर मेघालय और बांग्लादेश में जो साइक्लोन बना, उसने भी दिल्ली की हवा को साफ करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई.
कैसे चक्रवात सी-तरंग ने बदल दी दिल्ली की प्रदूषित आबोहवा
ठीक दिवाली के वक्त बंगाल की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र बना. उसकी वजह से नॉर्थ ईस्ट में मेघालय और बांग्लादेश के कई हिस्सों में बारिश हुई. लेकिन आप यह जानकर चौक जाएंगे कि उसी चक्रवात ने दिल्ली को प्रदूषण से राहत देने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई.
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर एक चक्रवातीय सिस्टम उसी एलटीट्यूड यानी समंदर से ऊंचाई पर विकसित होता है जहां पर प्रदूषण के कारक मौजूद हो तो वह एक अलग तरह का सिस्टम पैदा कर देता है. जैसे मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग और दिल्ली लगभग एक ही एल्टीट्यूड पर स्थित हैं.
पछुआ हवा ने किया कमाल 
भारतीय मौसम विभाग के वैज्ञानिक आरके जीणामणि बताते हैं, "चक्रवात की वजह से एक एंटीसाइक्लोनिक सिस्टम दिल्ली के ऊपरी वातावरण या वायुमंडल में पैदा हुआ. जिसकी वजह से पछुआ हवाएं चलने लगी ओर इनकी रफ्तार भी इस समय सामान्य हवा की रफ्तार से कहीं 20 किलोमीटर प्रति घंटा तक की थी. दिवाली के वक्त दिल्ली के ऊपर गैस और हवाओं का मिक्सिंग हाइट भी ऊंचा था तो इस सिस्टम ने पूरे प्रदूषण को खींच लिया." 
दरअसल, पिछले लगभग 20 सालों में दिवाली की अगली दोपहर को विजिबिलिटी कभी भी 4000 मीटर तक नहीं गई थी लेकिन इस सिस्टम ने हवा को इतना साफ बना दिया कि सूरज तो चमक ही रहा था विजिबिलिटी भी काफी बेहतर थी.
पराली का प्रदूषण भी नहीं पंहुचा दिल्ली तक 
आमतौर पर दिवाली के वक्त पराली का प्रदूषण दिल्ली की आबोहवा में जहर घोलता है. क्योंकि इसकी दिशा नॉर्थवेस्ट यानी उत्तर पश्चिम से होती है यानी पंजाब का प्रदूषण सीधे दिल्ली तक पहुंच जाता है. लेकिन साइंटिस्ट बताते हैं कि एक सोने पर सुहागा यह हुआ कि अचानक ही दीवाली से ठीक पहले हवा का रुख नॉर्थवेस्ट की बजाय साउथवेस्ट यानी दक्षिण-पश्चिमी हो गया. 
इस सहयोग की वजह से पंजाब और हरियाणा से आने वाली हवाएं दिल्ली की तरफ नहीं बल्कि उल्टी दिशा में बहने लगी. यही वजह रही कि दिल्ली के प्रदूषण में पराली का कंट्रीब्यूशन कहीं कम रहा. अब इसे भी मौसम का अद्भुत संयोग ही कहेंगे कि हवा की दिशा दिवाली के समय ही बदल गई और पटाखों के प्रदूषण में पराली के धुएं का मिक्सचर नहीं बन पाया.
अक्टूबर की दिवाली और सामान्य से अधिक तापमान
अब यह भी एक संयोग रहा कि आमतौर पर दिवाली नवंबर के महीने में आती है. वह इस साल अक्टूबर के महीने में ही आ गई. पहले ही इस साल दशहरे के बाद हुई बारिश ने दिल्ली के प्रदूषण को कम किया हुआ था. इसके बाद तापमान अभी भी बहुत नीचे नही गया है. 
दिवाली के दिन और रात में तापमान उतना कम नहीं हुआ जितना प्रदूषण को दिल्ली के भीतर जमा रखने के लिए जरूरी होता है. हवा की मिक्सिंग हाइट और वेंटिलेशन इंडेक्स भी काफी ऊपर था. यानी दिल्ली के लोग जब बैन की परवाह किए बिना पटाखे जला रहे थे तो उससे निकलने वाला प्रदूषण जमीन के करीब नहीं बल्कि काफी ऊंचाई पर मिक्स हो रहा था. तो कुल मिलाकर जितनी तेजी से प्रदूषण बढ़ रहा था उतनी ही तेजी से प्रदूषण साफ भी होता जा रहा था.
(कुमार कुणाल की रिपोर्ट)