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सभी stereotype तोड़कर अब "डिलीवरी गर्ल" पहुंचा रहीं घर घर समान...सौ प्रतिशत महिला कर्मचारी वाली पहली कंपनी

योगेश कुमार ने साल 2016 में स्थापित ईवन कार्गो किसी अन्य नियमित लॉजिस्टिक कंपनी की तरह नहीं, बल्कि जेंडर इक्वालिटी और वुमन एंपावरमेंट को बढ़ावा देने वाली कंपनी है जिनका उद्देश्य है महिला को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना.

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हाइलाइट्स
  • हर महिला एक विजेता होती है - योगेश

  • 8 शहरों में चल रही है कंपनी

चिलचिलाती धूप, सिर पर हेलमेट, टू व्हीलर ही सवारी, हाथ में पारसल और घर का पता ढूंढते डिलेवरी बॉयज. घर की घंटी बजती है और अपना हेलमेट उतारकर जब वे आपको आपका पारसल थमाते हैं तब आप पाते हैं आपका पारसल कोई डिलेवरी बॉय नहीं बल्कि डिलेवरी गर्ल लेकर आई है. जाहिर सी बात है कि आपको थोड़ी हैरानी तो होगी ही लेकिन अब ऐसा वाकई में हो रहा है. 

इस शख्स ने की शुरुआत

घर घर सामान पहुंचाने के इस पेशे से जुडे पुरुषों के वर्चस्व को अब महिलाएं खत्म कर रही हैं और समाज के रूढ़ीवादी ऐनक को हटाकर उन्हें एक नया नजरिया पेश कर रहे हैं. दरअसल, दिल्ली के रहने वाले 34 वर्षीय योगेश कुमार ने लड़कियों को नया मौका देने के लिए ईवन कार्गाों नाम के एक स्टार्टअप की शुरूआत की है. योगेश कुमार द्वारा साल 2016 में स्थापित ईवन कार्गो किसी अन्य नियमित लॉजिस्टिक कंपनी की तरह नहीं, बल्कि जेंडर इक्वालिटी और वुमन एंपावरमेंट को बढ़ावा देने वाली कंपनी है जिनका उद्देश्य है महिला को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना.

योगेश का दावा है कि यह भारत की पहली ऐसी कंपनी है जिसमें महिलाएं पार्सल डिलीवरी करने के साथ-साथ पूरा ऑफिस संभाल रही हैं. वे कहते हैं कि 'It is India's first women only E- Commerce logistics organization. Delivering Equality at your doorstep.' योगेश बताते हैं कि उन्होंने इस स्टार्ट अप की शुरुआत साल 2016 में की थी. दो लोगों के साथ शुरू हुआ यह स्टार्टअप आज 209 लोगों को अपने साथ जोड़े हुए है. वे कहते हैं, "हमारे ऑफिस में डिलीवरी, लॉजिस्टिक, मार्केटिंग, मीटिंग और मैनेजमेंट यानी ए टू जेड काम महिलाएं ही करती हैं. मेरे अलावा इस कंपनी में कोई पुरुष नहीं है." 

आपको बता दी कि योगेश को इस कार्य के लिए न्यूयॉर्क का ग्लोबल सिटीजन डिसरपटर अवार्ड, यंग इंटरनेशनल सिंगापुर अवार्ड, यंग फेलो फाउंडर जर्मनी अवार्ड भी मिल चुके हैं. अपने संघर्ष और सफलता की कहानी से युवाओं को प्रेरित करने के लिए उन्हें टेड एक्स स्पीकर के तौर पर भी बुलाया गया है.

हर महिला एक विजेता होती है
वैसे तो योगेश पेशे से इंजीनियर हैं और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर चुके हैं लेकिन उन्हें हमेशा से ही अपने आस पास की महिलाओं के लिए कुछ ऐसा करना था जिससे स्टीरियोटाइप टूट जाए. इसलिए उन्होंने कंपनी की तरफ से जर्मनी जाने का ऑफर भी ठुकरा दिया. फिर इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर उन्होंने महिलाओं के लिए यह स्टार्ट अप शुरू किया. शुरुआत में सिर्फ दो महिलाएं आगे आईं. योगेश बताते हैं कि डिलीवरी गर्ल के लिए सबको मनाना बहुत मुश्किल था. कई महिलाएं यह सुनकर ही असहज हो जाती तो कुछ परिवार और समाज के कारण मना कर देती हैं इसलिए शुरुआत में टीम बनाने में बहुत मुश्किलें आईं. लेकिन उसके बाद कारवां आगे बढ़ता गया और आज महिलाएं खुद अपने आप पर गर्व महसूस करती हैं. योगेश कुमार ने कहा, "मैं समझता हूं कि प्रत्येक महिला के पीछे एक कहानी होती है... वे विजेता के रूप में ही पैदा होती हैं... उन्हें सिर्फ एक मौका दीजिए, और फिर देखिए कितने बड़े-बड़े बदलाव आ सकते हैं."

8 शहरों में चल रही है कंपनी
योगेश बताते हैं कि उनकी यह कंपनी अब कुल आठ शहरों में संचालित हो रही है जिसमें कुल 200 महिला कर्मचारी कार्यरत हैं. हर एक फीमेल डिलीवरी एसोसिएट को पहले ट्रेनिंग दी जाती है जिसमें ड्राइविंग से लेकर पैकेज डिलीवर तक सभी चीजें सिखाई जाती हैं. जब यह महिलाएं फील्ड पर निकलती हैं और पैकेट्स डिलीवर करने के लिए कस्टमर्स तक जाती हैं तब उन्हें भी डिलीवरी गर्ल देखकर आश्चर्य होता है. लेकिन वहीं दूसरी ओर उनके प्रति अति आदर का भाव आ जाता है. बस यही भावना उन्हें आगे काम करने के लिए प्रेरित करती है और प्रोत्साहन देती है.

24 वर्षीय डिलीवरी एसोसिएट सुनीता बताती हैं कि पहले वे एक कॉल सेंटर ने काम करती थीं जहां पर उन्हें हर माह छः हजार रुपए मिलते थे. उसमें कभी कोई बत्तमीजी से बात करता तो कोई फोन काट देता. पैसे भी कम ही मिलते थे लेकिन जहां अब मैं नौकरी कर रही हूं वहां आत्मसम्मान भी है और पैसे भी. हां मेहनत थोड़ी ज्यादा है लेकिन काम करने में मजा आता है.

खरीदना है खुद का घर - रुक्मिणी
इसी तरह से 21 वर्षीय रुक्मिणी बताती हैं कि कुछ साल पहले उनके पापा की मृत्यु हो गई थी. इससे घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. बताते हैं कि आर्थिक परिस्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि अपनी पढ़ाई का खर्चा उठा सके इसलिए उन्होंने नौकरी करने की ठानी. वे बताती हैं कि लोग हमें कई नजरिए से देखते हैं. कोई कहता है कि अरे वाह लड़की यह काम कर रही है तो कोई कहता है कि यह काम करने की जरूरत क्या है. लेकिन हम सकारात्मक पहलू को देखते हुए काम करते हैं और उनका यह सपना है कि वह अपने परिवार के लिए एक घर खरीदें जिसे वे अपने पैसों से लेना चाहती हैं.

इसी तरह से ने राइडर पूजा का भी यही कहना रहता है कि उन्हें और उनके परिवार को बहुत गर्व है क्योंकि वे कुछ ऐसा कर रही है जो शायद और कोई नहीं कर रहा. योगेश बताते हैं कि उनका सपना है कि देश के हर एक कोने में उनकी कंपनी हो जिसमें सिर्फ महिलाओं की भागीदारी हो और जिसे सिर्फ महिलाएं ही संचालित करें.

महिलाओं के ना होने से फर्क पड़ेगा?
हाल ही में इवन कार्गो द्वारा आजादी का अमृतसव मनाने के लिए महिलाओं के योगदान को अहमियत दे रहे हैं. योगेश बताते हैं की #empoweredbywomen नाम से एक कैंपेन चला रहे हैं जिसमे वो हर एक कंपनी और इंसिट्यूशन से अपील करेंगे कि वे बताएं कि उनका संस्थान महिलाओं के कारण किस तरह से प्रगति कर रहा है. महिलाओं के होने ना होने से कितना फर्क पड़ेगा. इसी मुहिम के तहत वो लोगों को जोड़ रहे हैं और उन्हें अपनी आसपास की महिलाओं के प्रति एक अलग नज़रिया भी दे रहे हैं. योगेश का सपना है कि समाज अब हर दिशा में सिर्फ महिला प्रधान का नजरिया हो.