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दिल्ली से कटरा एक्सप्रेस वे समय और दूरी के साथ जलीय जीवन को भी बचाएगा!

इस प्रोजेक्ट के सूत्रों के मुताबिक पूरे प्रोजेक्ट के तहत नदियों पर पांच बड़े पुल बनेंगे. ये पुल 20.5 यानी साढ़े बीस हेक्टेयर जमीन पर बनाने का प्रस्ताव है. ब्यास नदी पर तीन जगह पुल बनाए जाएंगे और काली बेईं पर दो जगह.

दिल्ली से कटरा एक्सप्रेस वे समय और दूरी के साथ जलीय जीवन को भी बचाएगा! दिल्ली से कटरा एक्सप्रेस वे समय और दूरी के साथ जलीय जीवन को भी बचाएगा!
हाइलाइट्स
  • वैष्णो देवी के भक्तों को होगी आसानी

  • नदियों पर बनेंगे पांच बड़े पुल

  • पुल से नहीं होगा जलीय जीवों को नुकसान

दिल्ली को कटरा से डेढ़ सौ किलोमीटर करीब लाकर दूरी और समय बचाने वाला प्रस्तावित एक्सप्रेस वे ब्यास और काली बेईं नदी के जलीय जीवन को भी बचाएगा. राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआई की इस परियोजना पर वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट और नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ से भी सुझाव मांगे गए हैं कि ऐसे क्या उपाय किए जाएं, जिनसे इन नदियों में बड़ी तादाद में मौजूद डॉल्फिन, मुलायम कवच वाले कछुए, ऊदबिलाव और घड़ियाल बसते हैं. हाल ही में WII ने डॉल्फिन का सर्वेक्षण भी करवाया है।

वैष्णो देवी के भक्तों को होगी आसानी
दिल्ली से कटरा वाया अमृतसर एक्सप्रेस वे सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है. इससे जहां हरियाणा, पंजाब और जम्मू क्षेत्र को विकास की रफ्तार मिलेगी, वहीं सीमा सरहद तक प्रशासन और सेना की पहुंच भी आसान होगी. माता वैष्णो देवी के भक्तों की तो मानों एक और लॉटरी लग जाएगी. यानी वैष्णो देवी के दर्शन करने वालों के लिए सफर आसान हो जाएगा. 

नदियों पर बनेंगे पांच बड़े पुल
इस प्रोजेक्ट के सूत्रों के मुताबिक पूरे प्रोजेक्ट के तहत नदियों पर पांच बड़े पुल बनेंगे. ये पुल 20.5 यानी साढ़े बीस हेक्टेयर जमीन पर बनाने का प्रस्ताव है. ब्यास नदी पर तीन जगह पुल बनाए जाएंगे और काली बेईं पर दो जगह. ब्यास नदी से निकल कर ब्यास में ही मिल जाने वाली 108 किलोमीटर लंबी इस नदी का महत्व श्रद्धा से गहराई तक जुड़ा है. 

क्या है इस नदी की मान्यता
करीब पांच सदी पहले सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव जी इसी नदी के किनारे कई वर्ष प्रवास करते-करते एक दिन इस नदी में स्नान करते हुए गायब हो गए थे. तीन दिन बाद उनकी जल समाधि टूटी तो बाहर आए और एक ओंकार का उपदेश किया. तभी उन्होंने कहा कि ईश्वर सुरीला है. अच्छे भावयुक्त गायन से प्रसन्न होता है. तभी से ईश्वर की अरदास सुरीले अंदाज में गाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक लगातार चल रही है. हालांकि देश की अन्य पवित्र नदियों की तरह ही ये भी भयंकर प्रदूषण की चपेट में आ गई थी. लेकिन फिर संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने आम ग्रामीण और युवा स्वयं सेवकों के साथ कार सेवा करते हुए इसे पुनर्जीवन दिया. 

पुल से नहीं होगा जलीय जीवों को नुकसान
इस परियोजना के लिए वन्य प्राणियों के विशेषज्ञों ने सुझाव दिए हैं कि पुल ऊंचे बनाए जाएं और नदी के बीच में कोई स्तंभ यानी पाए ना हों. इससे जलचर जीव नैसर्गिक माहौल में आसानी से विचरण कर सकेंगे. आरपार खंभों वाले पुल बनेंगे जिनमें स्टील के मोटे तार की मदद ली जा सकती है.