
मंगलवार को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हर्षिल के पास धराली गांव में भारी बादल फटने की घटना हुई. इस घटना के बाद खीरगंगा नदी में अचानक भयंकर बाढ़ आ गई. तेज बारिश और बाढ़ ने इलाके में भारी तबाही मचाई.
गढ़वाल क्षेत्र भूस्खलन और प्राकृतिक आपदाओं के लिए पहले से ही संवेदनशील है. इसकी वजह है यहां की कमजोर भौगोलिक संरचना, पर्यावरणीय बदलाव और मानवीय गतिविधियां. यहां की ढलानें बहुत खड़ी हैं, मिट्टी कमजोर है और बारिश अक्सर बहुत ज्यादा होती है.
इसके अलावा, बेतरतीब निर्माण, जंगलों की कटाई और सड़कों का निर्माण इस संवेदनशीलता को और बढ़ा देते हैं. गढ़वाल हिमालय का पारिस्थितिक संतुलन कुमाऊं की तुलना में ज्यादा नाजुक है, जिससे यह क्षेत्र भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं का ज्यादा शिकार होता है.
गढ़वाल में भूस्खलन के मुख्य कारण
1. स्थानीय भूगोल और मिट्टी:
उत्तरकाशी की मिट्टी अक्सर ढीली और अस्थिर होती है.यहां कि मिट्टी में ढीले तत्व जैसे अलुवियम, कोलुवियम और ग्लेसियल डिपोजिट्स आदि होते हैं. ऐसे में, जब ये मिट्टी बारिश में पानी सोख लेती हैं तो कमजोर हो जाती हैं, जिससे भूस्खलन जैसी घटनाएं होती हैं.
2. ग्लेशियरों का असर:
धराली की घटना इसका उदाहरण है, जहां बर्फ के पिघलने से जमा मलबा बाढ़ के पानी में बह गया और साथ में भारी मात्रा में पत्थर और कीचड़ भी लाया. इससे रास्ते और घरों को काफी नुकसान पहुंचा.
3. मानवजनित कारण:
गढ़वाल में तेजी से हो रहे विकास कार्य, जैसे कि सड़क निर्माण, पनबिजली परियोजनाएं और पर्यटन से जुड़ा निर्माण कार्य, पहाड़ियों की कटाई और विस्फोट से पहाड़ियों को अस्थिर कर रहे हैं. धराली की त्रासदी भी ऐसे ही असंतुलन का नतीजा है.
4. जलवायु परिवर्तन:
गढ़वाल में तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे मिट्टी कमजोर हो रही है और पानी का बहाव बढ़ रहा है. इसके साथ ही, अनियमित बारिश और बार-बार आने वाली तेज बारिश की घटनाएं भी ढलानों को अस्थिर कर रही हैं.
कुमाऊं की तुलना में गढ़वाल ज्यादा संवेदनशील क्यों?
गढ़वाल क्षेत्र में भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाएं प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारणों से लगातार बढ़ रही हैं. अगर विकास कार्यों में सतर्कता नहीं बरती गई, तो ऐसी त्रासदियां होती रहेंगी.
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