

अनमैंड एरियल वेहिकल्स (Unmanned Aerial Vehicle) या ड्रोन आधुनिक युद्ध का अहम हिस्सा बन गए हैं. पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान समर्थित कश्मीर और पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया. खतरों को भांपने, निशाना साधने और जवानों का जोखिम कम करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया.
आज की तारीख में इंसानी संघर्ष से पहले अक्सर ड्रोन से युद्ध की बुनियाद रखी जाती है. ऐसे में सवाल उठता है कि ड्रोन नाम का यह हथियार अब भारत के लिए कितना अहम, कितना कारगर और कितना असरदार है. साथ ही यह भी समझना ज़रूरी है कि ड्रोन्स की ताकत के मामले में भारत कहां खड़ा है. आइए इन सवालों के जवाब पर डालते हैं एक सरसरी नज़र.
कितने आधुनिक हो गए हैं ड्रोन्स?
भारत में ड्रोन मैन्युफैक्चर आइडियाफॉर्ज के सीईओ अंकित मेहता बताते हैं कि वास्तविक संघर्ष में जब ड्रोन तकनीक इस्तेमाल की जाती है तो इसका इस्तेमाल खुफिया जानकारी, निगरानी और दुश्मन पर जोरदार हमला करने के लिए किया जाता है.
दरअसल आधुनिक ड्रोन सिर्फ कैमरों से लैस नहीं होते. उनमें उन्नत सेंसर लगे होते हैं. वे इंसानी आंखों से इतर भी देख सकते हैं. ये ड्रोन धुप्प अंधेरे में हो रही गतिविधियों को भी साफ-साफ पहचान सकते हैं. तापमान में बदलाव को पहचान सकते हैं और छिपे हुए लक्ष्य को दिखने-सुनाई देने से पहले ही पकड़ सकते हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ खास बातचीत में अंकित कहते हैं, “ड्रोन के अलावा दूसरा स्रोत सैटलाइट्स से मिलने वाले आंकड़े हैं. ये वास्तविक समय में नहीं मिलते या हाई रिजॉल्यूशन नहीं होते. जब दूर के लक्ष्य को देखना हो, तो आप जितनी ऊंचाई पर हैं, उतना साफ देख सकते हैं. ड्रोन काफी गहराई से चीजों को देख सकता है. दूर से नजर रखने और सुनने की तकनीक काफी बेहतर होनी चाहिए, ताकि आप अपने लक्ष्य को पहचान सकें.”
ड्रोन्स के मामले में आत्मनिर्भर हुआ भारत
भारत पहले ड्रोन आयात करता था. अब देश में ही एआई की मदद से चलने वाले, आधुनिक तकनीक से लैस ड्रोन बनने लगे हैं. ये यूएवी बिना जीपीएस के संचालित हो सकते हैं. वास्तविक समय में खतरों को पहचान सकते हैं और मुश्किल हालात में भी काम कर सकते हैं. लिहाजा ये आने वाले समय में सेना का अहम हिस्सा हैं. अंकित कहते हैं, “हमने हाल में बिना जीपीएस काम करने वाले ड्रोन विकसित किए हैं. ये क्षमता एआई की मदद से हासिल हुई है."
उन्होंने कहा, "एआई की मदद से बिना जीपीएस के भी काम किया जा सकता है. दूसरी बात यह है कि हम कुछ समय से एआई के जरिये लोगों और चलायमान गतिविधियों को पहचानने की उन्नत तकनीक विकसित कर रहे हैं. ऐसी तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया जा चुका है. इसलिए सीमा पर दिन या रात में कोई भी गतिविधि हो रही हो तो उसे फौरन पहचाना जा सकता है.”
सीमा पर निगरानी से लेकर भारी जोखिम वाले मिशन तक, यूएवी भारत की सैनिक रणनीति को नया आकार दे रहे हैं. तेजी से हो रहे तकनीकी विकास के साथ, भारत की ड्रोन ताकत ज्यादा स्मार्ट, तेज और आत्मनिर्भर बन रही है. भारतीय तकनीक अब भविष्य में रणभूमि की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो रही है.