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Aravalli Range: दिल्ली से 45 किलोमीटर दूर मिले पाषाण काल के सबूत, अरावली के पत्थरों ने दिखाया हजारों साल पुराना इतिहास

तेजवीर ने जैसे-जैसे पाषाण काल के बारे में पढ़ना शुरू किया तो एक किताब को केंद्र में रख कर उसने अरावली को एक दूसरी नजर से देखना शुरू किया. आस पास पड़े पत्थरों में उसे कुछ ऐसे औजार मिले कुछ ऐसे पत्थर मिले जो काफी अलग थे. अभी तक एसआई ने इस जगह को अपने संरक्षण में नहीं लिया है.

Aravalli Range Aravalli Range
हाइलाइट्स
  • 10-12 लोगों के हाथों के निशान मिले हैं 

  • काफी बड़े हैं हाथों और पैरों के निशान 

कोट गांव के लोगों का कहना है कि वह बहुत लंबे समय से मंदिर के पास पत्थरों में हाथ पैर के बने हुए निशान देखते आ रहे हैं. उन्हें लगता था कि निशान भगवान के हैं क्योंकि आस पास सिर्फ मंदिर था, एक दिन गांव के एक लड़के तेजवीर की गाय जंगलों में ऊपर की तरफ चली गई, गायों को ढूंढते हुए तेजवीर पहाड़ी के अंदर तक चला गया, जहां उसने  देखा कि पत्थरों में बड़े-बड़े पैरों के निशान हाथ के निशान और कुछ अलग अलग आकृतियां बनी हुई है.  उसने इसकी जानकारी पास में ही गांव में आए हुए एक दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट को दी, डीयू के स्टूडेंट ने तेजवीर सिंह को इन निशानों के इतिहास से जुड़े होने और ASI के पास जाने की बात कही, जिसके बाद पुरातत्व विभाग को पाषाण युग से नक्काशियों के बारे में सूचित किया. 

आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को दी इसकी जानकारी 

2021 में अरावली में आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को इस जगह की जानकारी दी गई, ASI department Kabui ने यहां मिले निशानों की जांच की और पुष्टि की कि चट्टानें वास्तव में पुरापाषाण काल की हैं. कोट गांव से जुड़ी अरावली की पहाड़ी जैसे ही शुरू होती है  पत्थरों पर यह चिन्ह दिखने शुरू हो जाते हैं, लेकिन यह सिर्फ एक पहाड़ी पर नहीं है 10 किलोमीटर तक फैली इस पहाड़ी पर अलग-अलग जगह निशान पाए गए हैं कोट गांव की तेजवीर ने अभी कम से कम ऐसी 6 और नई जगह ढूंढ ली है जहां पर पाषाण काल के निशान मिले हैं.

10-12 लोगों के हाथों के निशान मिले हैं 

पत्थरों में बने यह निशान दिखाते हैं कि कैसे पाषाण काल में आदिमानव अपने पूरे कबीले के साथ अरावली में रहा करते थे. क्योंकि एक साथ 10 से 12 लोगों के हाथ के निशान पैर के निशान यहां पर मौजूद हैं. अपनी रक्षा और अपनी भूख मिटाने के लिए सर्वप्रथम पत्थर के औजारों का ही सबसे अधिक उपयोग किया, इसलिए इस युग को पाषाण काल कहते हैं. पत्थर से बने औजारों में समय-समय पर परिवर्तन हुए हैं. थोड़े समय बाद मानव ने गुफाओं में रहना प्रारम्भ कर दिया, क्योंकि उसे तब तक घर बनाना नहीं आता था. शिकार की खोज में वह लगातार घूमता रहता था, इस प्रकार उसका कोई स्थाई आवास नहीं था. पुरापाषाण काल के आखिरी दौर में उसने चित्र बनाना भी सीख लिया और इतिहास के कुछ निशान अरावली के पहाड़ों में मिले हैं. 

काफी बड़े हैं हाथों और पैरों के निशान 

पत्थरों में मिले हाथ और पैर के निशान काफी बड़े-बड़े हैं कुछ पैर के निशान 30 सेंटीमीटर के हैं और हाथ के निशान 20 सेंटीमीटर के हैं. इन हाथ पैर के निशान के साथ-साथ खुद जानवरों के हाथ पैर के निशान भी यहां पर गोदे गए हैं. मानव जिस जानवर को देखता था या फिर जिस जानवर का शिकार करता था उन के ही चित्र बना देता था इन चित्रों के साथ मानव अपनी भी छाप छोड़ देते थे. दिशाओं का ज्ञान करने के लिए या फिर नक्षत्रों की जानकारी के लिए पत्थरों पर छोटे छोटे निशान बनाए जाते थे. शोधकर्ताओं का कहना है कि आदिमानव ने अपने अलावा जो चीज देखी उनके चित्र पत्थरों में बनाने की कोशिश की. वे शिकार करते थे तो किसी भी पशु पक्षी के पैर के निशान वह पत्थरों में बनाते थे. 

अरावली को एक दूसरी नजर से देखना शुरू किया

तेजवीर ने जैसे-जैसे पाषाण काल के बारे में पढ़ना शुरू किया तो एक किताब को केंद्र में रख कर उसने अरावली को एक दूसरी नजर से देखना शुरू किया. आस पास पड़े पत्थरों में उसे कुछ ऐसे औजार मिले कुछ ऐसे पत्थर मिले जो काफी अलग थे जिन्हें शिकार करने के लिए किसी चीज को काटने के लिए बनाया गया था. अरावली पर्वत श्रंखला पर जहां जहां यह निशान मिले हैं वहां पर पत्थरों के बीच गुफाएं भी मिली हैं. हालांकि अभी ये गुफाएं कुछ पत्थरों से दब गई है कुछ टूट गई हैं.

अरावली में मिले यह निशान और यह औजार मानव सभ्यता की प्रगति को चिह्नित करते हैं. तेजवीर का मानना है कि नक्काशियां 40,000 - 50,000 वर्षों से अधिक पुरानी हैं. लेकिन एक सर्वेक्षण के बाद ही सही तारीख का पता लगाया जा सकता है. अभी तक एसआई ने इस जगह को अपने संरक्षण में नहीं लिया है.