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Independence Day Special: गंगू मेहतर का नाम सुनते ही कांप उठते थे अंग्रेज, देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले इस वीर के बारे में जानिए 

Gangu Mehtar को गंगू बाबा के नाम से भी जाना जाता है. वह एक ऐसे देशभक्त थे, जिन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान अकेले ही 200 से ज्यादा ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया था. गंगू ने कहा था, भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का खून व कुर्बानी की गंध है. एक दिन यह मुल्क आजाद होगा.

गंगू मेहतर से कांपते थे अंग्रेज (फोटो सोशल मीडिया) गंगू मेहतर से कांपते थे अंग्रेज (फोटो सोशल मीडिया)
हाइलाइट्स
  • गंगू मेहतर ने मुस्लिम उस्ताद से सीखी थी पहलवानी 

  • नाना साहब के कहने पर कूद पड़े थे आजादी की लड़ाई में 

15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ था. लेकिन आज भी जब अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी सुनने को मिलती है तो रूह कांप उठती है. 200 सालों तक अंग्रेजों ने तरह-तरह के अत्याचार हमारे देश के लोगों पर किए. इनके जुल्मों से छुटकारा पाने के लिए हमारे अनगिनत वीर जवानों ने लड़ाई लड़ी. कई शहीद हुए, तब जाकर हमें आजादी मिली. आज हम ऐसे ही वीर योद्धा की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनका नाम सुनते ही अंग्रेज कांप उठते थे. उन्होंने एक-दो नहीं दर्जनों अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा था.

कानपुर के पास अकबरपुर में हुआ था जन्म
गंगू मेहतर का जन्म कानपुर के पास अकबरपुर में हुआ. वह भंगी जाति से थे. उस समय उच्च और निम्न जाति को लेकर समाज में कई असमानताएं फैली हुई थीं. गंगू भी उसी का शिकार हुए. निम्न जाति के होने से पढ़ने-लिखने के अवसर नहीं प्राप्त हुए. उन्हें अपने सिर पर मैला ढोना पड़ता था. लेकिन वो इस काम से खुश नहीं थे. उच्च जाति के लोगों की ओर से निम्न जातियों पर हो रहे अत्याचार से उनका परिवार भी अछूता नहीं रहा. इससे बचने के लिए गंगू परिवार संग कानपुर के चुंगीगंज में बस गए. गंगू जातीय शोषण के खिलाफ थे. 

पहलवानी का था शौक 
गंगू को पहलवानी का शौक था. सती चौरा गांव में इनका पहलवानी का अखाड़ा था. उन्होंने पहलवानी एक मुस्लिम उस्ताद से सीखी थी. जिसकी वजह से इन्हें लोग गंगुदीन कहकर पुकारते थे. कुछ प्यार से गंगू बाबा कहकर बुलाते थे. 1857 का विद्रोह शुरू हुआ. देश के कोने-कोने में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बज चुका था. इधर कानपुर भी इसका केंद्र बना था. 

नाना साहब ने अंग्रेजों के खिलाफ शुरू किया विद्रोह
मराठों की हार के बाद अंतिम पेशवा बाजीराव कानपुर के बिठूर में बस गए. कई शादियों के बाद भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई. तब उन्होंने नाना साहब को गोद ले लिया. बाजीराव के देहांत के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने नाना को बाजीराव का दत्तक वारिस मानने से इंकार कर दिया. ऐसे में नाना साहब ने भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया. 

गंगू ने नाना साहब की तरफ से अंग्रेजों से जमकर लिया लोहा 
नाना साहब पेशवा के सैनिक दस्ते में गंगू मेहतर का नाम भी बेहतरीन लड़ाकों में से एक माना जाता था. उन्हें शुरुआत में नगाड़ा बजाने के लिए शामिल किया गया था. लेकिन बहादुरी और उनकी पहलवानी को देखते हुए सूबेदार का पद मिल गया. वो सैनिकों को पहलवानी के गुर भी सिखाते थे. देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 की लड़ाई में गंगू मेहतर ने भी नाना साहब की तरफ से अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया. अपने शागिर्दों के साथ मिलकर सैकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया. 

गंगू के खौफ से ब्रिटिश हुकूमत सहम गई 
कहते हैं गंगू ने अकेले 200 से ज्यादा अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था. इससे ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह सहम गई. वीर गंगू मेहतर का खौफ उनके दिलों में बस गया. जिसके चलते वो हर हालत में गंगू को जिंदा पकड़ना चाहती थी. ताकि उन्हें सबके सामने सजा दे सकें. उधर गंगू मेहतर अपने घोड़े पर सवार होकर ब्रिटिश सेना का बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया. हालांकि बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. पकड़ने के बाद गंगू मेहतर को अंग्रेजों ने घोड़े से बांधकर पूरे शहर में घुमाया था. यही नहीं उन्हें हथकड़ियां पहनाकर जेल की काल कोठरी में धकेल दिया गया था. उन पर काफी जुल्म किए गए थे. लेकिन अंग्रेज उनके हौसले को नहीं तोड़ सके. कहते हैं गंगू ने अंतिम समय तक ब्रिटिश हुकूमतों को ललकारा और कहा था, भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का खून व कुर्बानी की गंध है. एक दिन यह मुल्क आजाद होगा. 

हंसते हुए देश के लिए हो गए कुर्बान 
अंग्रेजों ने गंगू मेहतर पर बच्चों और महिलाओं के कत्ल का झूठा इल्जाम लगाया. गंगू को फांसी की सजा सुनाई गई. कानपुर में 8 सितंबर 1859 को गंगू मेहतर को फांसी की सजा मुकर्रर थी. उन्हें शहर के बीच चौराहे पर सजा देने के लिए लाया गया. गंगू अंग्रेजों के काफी जुल्मो सितम सहने के बावजूद हंसते हुए देश के लिए कुर्बान होना चाहते थे. उनके माथे पर बिल्कुल भी शिकन नहीं था. वो खुशी-खुशी देश के लिए कुर्बान हो गए.