![हेम्प सीड](https://akm-img-a-in.tosshub.com/lingo/styles/medium_crop_simple/public/images/story/202306/your_paragraph_text_1.png)
![पहली महिला कैनाबिस एक्टिविस्ट प्रिया पहली महिला कैनाबिस एक्टिविस्ट प्रिया](https://cf-img-a-in.tosshub.com/lingo/gnt/images/story/202306/copy_of_copy_of_hemp_1-sixteen_nine.png?size=948:533)
भारत में आज भी कई सारे ऐसे पौधे हैं जिनसे न जाने कितनी सारी बीमारियां ठीक होती हैं. हालांकि, देश में कई लोग ऐसे भी हैं जो इनके बारे में लोगों को जागरूक कर रहे हैं. इन्हीं में से एक हैं प्रिया मिश्रा, जिन्हें लोग हेम्पवती (Priya Mishra, Hempvati) के नाम भी जानते हैं. प्रिया देश की पहली महिला कैनाबिस एक्टिविस्ट (India's first Female Cannabis Activist) हैं. ये लोगों के बीच जाकर मेडिकल भांग (Medical Cannabis) को लेकर जागरूकता फैला रही हैं. इतना ही नहीं बल्कि हेम्पवती किसानों को भांग की खेती (Hemp Farming) करने के बारे में ट्रेनिंग देती हैं, मेडिकल कैनाबिस का उपयोग करने वाले रोगियों को परामर्श देती हैं और साथ ही उन लोगों को गाइड भी करती हैं जो हेम्प या भांग का बिजनेस करना चाहते हैं. प्रिया का दावा है कि उनके ट्यूबरक्लोसिस (TB) को ठीक करने में कैनाबिस का बहुत बड़ा हाथ है. प्रिया ने GNT डिजिटल को बताया कि जब उनपर इलाज का कोई असर नहीं हो रहा था, तब उन्होंने कैनाबिस का सहारा लिया, और आज वे पूरी तरह ठीक हैं. इसके बाद ही प्रिया ने उसके औषधीय गुणों के साथ भांग को एक अलग नजरिए से देखना शुरू किया. बस यहीं से हेम्पवती के नाम से जानी जाने वाली प्रिया की भांग को वैध बनाने की लड़ाई शुरू हुई. आज प्रिया हिमाचल प्रदेश के कुल्लू से कई सौ मरीजों की मदद कर रही हैं.
दरअसल, दुनियाभर में भांग का इस्तेमाल न जाने कितनी सदियों से होता आ रहा है. हालांकि, अब इसे लेकर चर्चा और भी तेज हो गई है. अलग-अलग रिपोर्टों और अनुमानों के अनुसार, वैश्विक कैनाबिस इंडस्ट्री का रेवेन्यू लगातार बढ़ रहा है. 2020 में, ग्लोबल लीगल कैनाबिस मार्किट का रेवेन्यू गभग 20 बिलियन डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था. अनुमान बताते हैं कि 2026 तक इस इंडस्ट्री का रेवेन्यू 90-100 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है.
19 साल की थी जब लगा था कैनाबिस के बारे में पता
प्रिया सर्टिफाइड कैनाबिस टीचर हैं जो लोगों को इसके बारे में लगातार लोगों को जागरूक कर रही हैं. अभी तक प्रिया करीब 11,500 लोगों को लीगल मेडिकल कैनाबिस के बारे में बता चुकी हैं और उन्हें इंटरनेशनल डॉक्टर्स से कनेक्ट करवाकर उनकी मदद कर चुकी हैं. अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए प्रिया ने GNT डिजिटल को बताया, "मैं 19 साल की थी जब ट्यूबरक्लोसिस (TB) के बाद मेरा एनकाउंटर कैनाबिस से हुआ था. मेरी हालत बहुत खराब थी, मैं नींद न आना, दर्द होना जैसी चीजों से जूझ रही थी. फिर एक दिन मेरी एक दोस्त ने जब मुझे रोते हुए देखा तो उसने मुझे कैनाबिस दिया. तब मुझे 3 दिन बाद अच्छी नींद आई. हमने जब इसके बारे में गूगल किया तो हमें पता लगा कि बाहर के देशों में लोग कैनाबिस को ट्यूबरक्लोसिस, एड्स और कैंसर (AIDS/Cancer) जैसी बीमारियों में राहत पाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. ये जानने के बाद मैंने फेसबुक पर सर्च किया और कई इंटरनेशनल डॉक्टर्स से कनेक्ट किया. तब मैंने डॉ सुनील कुमार अग्रवाल से कनेक्ट किया जो अमेरिका में कैनाबिस पर काम कर रहे थे. कैनाबिस की मदद से मैंने अपने ट्यूबरक्लोसिस को रिवर्स कर दिया. कुल 4-5 महीने में मेरा ट्यूबरक्लोसिस और उससे होने वाला दर्द खत्म हो गया था. इसके करीब 2 साल बाद मुझे लगा कि शायद इसके बारे में मुझे सबको बताना चाहिए. 2015 में करीब 8 साल पहले मैंने फिर इसके बारे में वीडियो बनाना शुरू किया कि कैसे कैनाबिस से मुझे फायदा पहुंचा है. इसके बाद काफी लोगों ने मुझसे कॉन्टैक्ट करना शुरू किया. मैंने उन लोगों को इंटरनेशनल डॉक्टर्स से कनेक्ट करवाया."
मेडिकल कैनाबिस कैसे हेल्प करता है?
प्रिया आगे बताती हैं कि आज अमेरिका में हर महीने करीब 2 लाख लोग मेडिकल कैनाबिस से फायदा ले रहे हैं. इसमें कम से कम 10,000 कैंसर मरीज भी शामिल हैं. इतना ही नहीं मेडिकल कैनाबिस AIDS और HIV के लक्षणों को एकदम दबा देता है. हालांकि, इसके पीछे की साइंस क्या है इसको लेकर कैनाबिस साइंस पर रिसर्च कर रहीं और CannazoIndia की रिसर्च डायरेक्टर आरजू पूरी (Arzoo puri) के मुताबिक मेडिकल कैनाबिस 100 से ज्यादा बीमारियों में राहत पहुंचाता है. वे कहती हैं, “हमारे शरीर में एक endocannabinoid सिस्टम होता है. जब भी हमारे शरीर के अंदर ये endocannabinoid का बैलेंस खराब होता है उस चक्कर में हमें दर्द (Pain), एंग्जायटी (Anxiety), जैसे लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं. ये एक तरह से साइन होते हैं कि हमारे शरीर में इसका अमाउंट कम हो गया है. मेडिसिन कैनाबिस से ये ठीक हो जाता है. ये मेडिकेशन 100 से ज्यादा बीमारियों में काम करती है. जब हम किसी मानसिक बीमारी की बात करते हैं जैसे- पार्किंसन (Parkinson), पैरालिसिस (Paralysis), एंग्जायटी, डिप्रेशन (Depression) इन सबमें मेडिकल कैनाबिस के बहुत अच्छे रिजल्ट पाए गए हैं. एंग्जायटी, डिप्रेशन में हमारे शरीर में एक calmness प्रोड्यूस होती है. इतना ही नहीं बल्कि कैंसर में भी जब कीमोथेरेपी (Chemotherapy) होती है तो दर्द को मैनेज करने के लिए, Anti-Nausea, Anti-Inflammatory, Anti-Vomiting के लिए मेडिकल कैनाबिस फायदा पहुंचाता है.”
क्या हैं भारत में कैनाबिस को लेकर नियम-कानून?
1985 के नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) के तहत भारत में मनोरंजन के लिए भांग का उपयोग अवैध है. भांग को रखना, खेती करना, बिक्री और उपभोग करना बैन है. हालांकि, भारत के अलग-अलग राज्यों के बीच भांग से जुड़े हुए कानून काफी अलग-अलग हैं. कुछ राज्यों ने चिकित्सा (Medical Cannabis) या आध्यात्मिक उद्देश्यों (spiritual/ritual purposes) के लिए भांग के संबंध में अपने खुद के नियम लागू किए हैं. जैसे- उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों ने मेडिकल भांग की खेती और उपयोग को वैध बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं.
इसके बारे में प्रिया कहती हैं, “कई सारे राज्यों में कैनाबिस रिलीजियस पर्पज के लिए लीगल है. इसलिए हमारे यहां कई राज्यों में सरकारी भांग के ठेके दिए जाते हैं. भांग को हमारे यहां नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टेन्सेस एक्ट, 1985 (NDPS Act) के तहत रखा गया है. इस कानून में इसे 3 भागों में बांटा गया है. पहला- रीक्रिएशनल जो पूरी तरह से बैन है. दूसरा-रिलीजस पर्पज, जिसमें इसे मंजूरी दी गई है. इसके अलावा, मेडिसिनल और इंडस्ट्रियल हेम्प को मंजूरी दी हुई है. NDPS में भांग के पौधे पौधे में फूल का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. बाकी पत्तियां, टहनी वगैरह सब इस्तेमाल किए जा सकते हैं.”
भारत में CannazoIndia पिछले कई साल से मेडिकल कैनाबिस पर काम कर रहा है. पिछले कुछ सालों में कई सौ मरीजों में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं. CannazoIndia के को-फाउंडर सुकृत गोयल (Sukkrit Goel) का मानना है कि भारत में मेडिकल कैनाबिस को मेनस्ट्रीम में आने में अभी 2-3 साल और लगेंगे. वे कहते हैं, “इसके लिए जरूरी है कि नियम और कानून का अच्छे से फ्रेमवर्क बने. अभी भी भांग के पौधे से जुड़े कानूनों में काफी ग्रे एरिया है. मार्किट में अभी भी लोग काफी असमजंस में हैं कि क्या वैध है और क्या अवैध. इसके लिए अलग से सेट ऑफ रूल्स नहीं आए हैं. इसके अलावा, अभी केमिस्ट इसे नहीं रखते हैं. जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक ये मेनस्ट्रीम में नहीं आ सकेगा. सरकार को चाहिए कि केमिस्ट से लेकर डॉक्टर तक के लिए कुछ लाइसेंसिंग जैसा आना चाहिए ताकि वे इसे मरीजों को दे सकें. इसका फायदा हर इंसान तक पहुंच सके और इसपर जितनी हो उतनी रिसर्च और स्टडी हो सके."
नियम-कानून को थोड़ा और आसान बनाने की जरूरत है
भारत में आज कई सारे स्टार्टअप मेडिकल कैनाबिस को लेकर काम कर रहे हैं. इसमें हेम्पस्ट्रीट (Hempstreet), वेदी हर्बल्स, बोहेको (बॉम्बे हेम्प कंपनी), हेम्पकैन सॉल्यूशंस, कैनेजोइंडिया नाम के स्टार्टअप शामिल हैं. हालांकि, भारतीय मेडिकल कैनाबिस इंडस्ट्री अभी भी अपने शुरुआती चरण में है. CannazoIndia के सुकृत इसके इस्तेमाल करने और इसके प्रोडक्ट बेचने को लेकर बताते हैं कि ये आयुष मंत्रालय (Ayush Ministry) के अधीन आता है. वे कहते हैं, “इसमें अभी तक केवल पत्तियां इस्तेमाल करने की मंजूरी है. अभी पत्तियों के अंदर के जो कंपाउंड होते हैं उनको बाहर निकाल दिया जाता है. लेकिन आयुर्वेद में कहा गया है कि पौधे को जब हम पूरा इस्तेमाल करते हैं तब वह फायदा करता है. अगर हम उसके कुछ कंपाउंड निकाल देंगे तो वो फायदा नहीं करेगा. इसको इस्तेमाल करने के लिए अभी सेफ्टी, स्टडी और प्रोटोकॉल के बारे में पता करवाना होता है. और फिर अप्रूवल मिलने के बाद एक्साइज डिपार्टमेंट से लाइसेंस लेना पड़ता है."
हालांकि, कोविड-19 के बाद से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारें भांग के इस्तेमाल को लेकर सकारात्मक नजर आ रही है. सुकृत बताते हैं, "दवाइयों की बात करें तो लोग काफी पॉजिटिव हैं. लेकिन सबसे बड़ी परेशानी है कि लोग इस बात को लेकर चिंता में हैं कि आखिर क्या वे इसे खरीद सकते हैं या इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके नियमों को लेकर लोग काफी असमंजस में हैं. इसके लिए जरूरी है कि उन्हें शिक्षित किया जाना जरूरी है. ऐसा नहीं है कि अभी से इसका इस्तेमाल हो रहा है. 100 साल से भांग के ठेके मिल रहे हैं. पहले भी मेडिकल इंडस्ट्री में कैनाबिस को दवाइयों में इस्तेमाल किया जाता था. अब इसलिए हेम्प को लेकर इतनी बात हो रही है क्योंकि इसे उगाने के लिए मंजूरी मिल गई है. आज हेम्प से इतनी चीजें बनाई जा रही हैं. अब हेम्प सीड ऑयल को फिश ऑयल की जगह पर इस्तेमाल किया जा सकता है. हेम्प पौधे के हर हिस्से से अलग-अलग चीजें बनाई जा रही हैं.”