
चंडीगढ़ से लेह तक अब एक नया और तेज़ रास्ता तैयार हो रहा है- निम्मो-पदम-दारचा रोड, जिसकी कुल लंबाई 298 किलोमीटर है. इस सड़क खास बात यह है कि यह पहली ऑल वेदर रोड होगी, यानी सर्दियों में भी खुली रहेगी और यातायात बाधित नहीं होगा. इस रूट पर चंडीगढ़ से निकलने के बाद सबसे पहले दारचा, फिर जंस्कार घाटी और निम्मो आते हैं, इसके बाद सीधे लेह पहुंचा जा सकता है.
वर्तमान में, लेह के लिए दो मुख्य रास्ते हैं:
लेकिन ये दोनों रास्ते भारी बर्फबारी के कारण सर्दियों में बंद हो जाते हैं.
निम्मो-पदम-दारचा रोड तीसरा विकल्प है, जो न केवल सबसे तेज़ होगा, बल्कि सर्दियों में भी खुला रहेगा. इसे बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (BRO) साल 2022 से बना रहा है. फिलहाल सड़क कच्ची है और उस पर कंक्रीट बिछाना बाकी है, लेकिन ट्रायल रन शुरू हो चुका है. हर बुधवार और रविवार को वाहनों को इस सड़क पर आने-जाने की अनुमति दी जा रही है.
यह सड़क न सिर्फ सेना के लिए रणनीतिक रूप से अहम होगी, बल्कि पर्यटन, परिवहन और जंस्कार घाटी की अर्थव्यवस्था को भी काफी बढ़ावा देगी. ऑल वेदर रोड बनने के पीछे एक बड़ी तकनीकी सोच है. इस सड़क को लोअर माउंटेन रेंज से होकर बनाया जा रहा है, जहां बर्फबारी कम होती है. साथ ही, सड़क को पहाड़ काटकर इस तरह तैयार किया जा रहा है कि वह अधिकतर हिस्सों में बर्फ से प्रभावित न हो.
'लद्दाख के दशरथ मांझी'
लद्दाख के पदम गांव में रहने वाले 83 वर्षीय लामा छोंजोर को 'लद्दाख के दशरथ मांझीट के रूप में जाना जाता है, ने अपनी ज़िद और सेवा-भाव से एक ऐसा काम कर दिखाया जिसे सरकार भी सालों तक नहीं कर पाई. पदम-दरचा ऑल वेदर रोड की नींव उन्हीं की कोशिशों से पड़ी. छोंजोर ने दैनिक भास्कर को बताया कि पहले पदम से लेह तक पैदल जाना पड़ता था, जिसमें 6-7 दिन लग जाते थे. मनाली पहुंचने में भी 5-6 दिन लगते थे. बच्चों की उच्च शिक्षा और बीमार लोगों के लिए यह रास्ता बहुत मुश्किल भरा था.
समस्या को देखकर उन्होंने ठाना कि कुछ करना ही होगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2000 में BRO (बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन) ने पदम को दारचा (जिला केलांग, हिमाचल प्रदेश) से शिंकुला पास के रास्ते जोड़ने की योजना शुरू की थी, लेकिन लुंगनाक की 38 किलोमीटर लंबी पहाड़ी के कारण काम रुक गया था.
2014 में लामा चोंजोर ने खुद पहाड़ी हटाने का निर्णय लिया. उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति बेच दी. उसी पैसे से मशीनें खरीदीं- टिप्पर, जेसीबी और पांच खच्चर, साथ ही दो ऑपरेटर भी हायर किए. उन्होंने खुद भी दिन-रात काम किया. लगातार चार साल की मेहनत के बाद उन्होंने 38 किलोमीटर लंबी सड़क तैयार कर दी, जो दुर्गम पहाड़ों को चीरती हुई निकलती है. अब यह सड़क पदुम को हिमाचल और लेह से जोड़ती है, जिससे आसपास के करीब 30 गांवों को सीधी कनेक्टिविटी मिल गई है.
चोंजोर बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट की कुल लागत में से करीब 15% दान के रूप में मिला. किसी ने पैसे दिए, तो किसी ने घोड़े और खच्चर दान में दिए. साल 2017 में यह सड़क बनकर तैयार हो गई, जिससे गांव को हिमाचल से सीधा संपर्क मिला.
BRO ने संभाला बीड़ा
उनके प्रयासों के बाद BRO ने दारचा से पदम तक 140 किमी लंबी सड़क को पूरा किया, जो 16,500 फीट ऊंचे शिंकुला पास से होकर गुजरती है. इसके बाद BRO ने इस सड़क को चौड़ा करने का भी काम शुरू किया ताकि दोनों तरफ से यातायात संभव हो सके.
हालात मुश्किल थे क्योंकि माइनस 30 डिग्री सेल्सियस में काम करना, और लोगों द्वारा पूंजी पर सवाल उठाना लामा चोंजोर के लिए बड़ी चुनौती रही. लोगों का कहना है कि उनकी यह कहानी बिहार के दशरथ मांझी की याद दिलाती है, जिन्होंने पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया था. इस काम के लिए उन्हें पद्मश्री, भारत का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान, सामाजिक सेवा के क्षेत्र में दिया गया.
लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (LAHDC) और जिला प्रशासन ने उन्हें पदम से दारचा तक सड़क निर्माण में "असाधारण भूमिका निभाने" के लिए सम्मानित किया. आज यह सड़क सिर्फ रास्ता नहीं है, बल्कि लामा छोंजोर के समर्पण, संघर्ष और सेवा-भाव की एक जीवंत मिसाल बन चुकी है.