Agrasen ki Baoli 
 Agrasen ki Baoli विश्व जल दिवस पर आज आपको दिल्ली में अंडर ग्राउंड वाटर और बारिश के पानी को सहेज कर रखने की 1000 साल पुरानी तकनीक के बारे में बताते हैं. दिल्ली के धरोहर को समेटे यह बावलियां की वजह से दिल्ली में पानी की दिक्कत को हमेशा से कम करने का प्रयास किया गया. लंबी-लंबी सीढ़ियां, गहराई में पानी के जमाव की वो जगह जो समझाती है कि 1000 साल से भी पुरानी इन बावलियां में बहुत कुछ बदलाव के साथ देखा है. कहते हैं एक जमाने मे यमुना का जल पीने लायक नही था शाहजहां ने कोशिश तो बहुत की यमुना के जल को नहर के माध्यम से उसे पीने लायक पानी मे बदला जाए पर ऐसा हो नहीं पाया, उस समय फिरोज शाह तुगलक के समय से चली आ रही बावलियां का जीणोद्धार कराया गया. साथ ही माना जाता है कि करीब 200 साल पहले तक दिल्ली शहर में 135 से ज्यादा बावलियां थी पर समय के साथ सब खत्म होती चली गयी.
 
पानी को सहेजने में करती हैं मदद
बावलियों से सबसे बड़ा फायदा आज के दौर के हिसाब से सोचा जाए तो ये ग्राउंड वाटर की जरूरत को पूरा करने का काम तो करता ही है, साथ ही इसकी वजह से रेन वाटर को स्टोरेज के रूप में भी यूज किया जा सकता है. इतिहासकार सुहेल हाशमी कहते है कि ये बावलियां उस समय के सिस्टम का महत्वपूर्ण रोल अदा करती थी. जहां कुआं होता था वहीं बावली का निर्माण भी देखा गया है और इसके प्रयोग की बात करे तो मुझे लगता है कि पिछले 800 से 1000 साल में हर किसी ने इस पानी को स्टोर करने की इस टेक्निक पर काम किया है. 
बावलियों के रख-रखाव का प्रयास कर रही सरकार 
फिलहाल अब भी कई बावलियां ऐसी है जिनमें प्राकृतिक स्त्रोत के जरिये अंडर ग्राउंड वाटर देखा जा सकता है जबकि दिल्ली में कई इलाके ऐसे है जहां ग्राउंड वाटर बहुत नीचे जा चुका है. दिल्ली सरकार ने पिछले 3 साल में दिल्ली में 18 से ज्यादा बावलियों के रख-रखाव का प्रयास किया जिसकी तस्वीर ये है कि अब कई जगह पानी बावली में देखा जा सकता है. हम आज उस इतिहास के सहारे जल को जीवन की रूपरेखा के लिये प्रयासरत तो हैं. न जाने कितनी ऐसी बावली है जो केवल नाम मे ही रह गयी हैं.
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