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Household Consumption Expenditure Survey: देश में गरीबी का स्तर हुआ 5% तक कम, लेटेस्ट सर्वे रिपोर्ट में हुआ खुलासा, जानिए

हाल ही में, Household Consumption Expenditure Survey 2022-23 की रिपोर्ट आई है और इसके जारी आंकड़ों से देश के ग्रामीण और शहरी इलाकों के बारे में बहुत सी नई बातें सामने आई हैं.

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साल 2022-23 के लिए जारी हुए घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey) के मुताबिक, ग्रामीण खपत मजबूत बनी हुई है, जिससे शहरी खपत का अंतर कम हो रहा है और इन आंकड़ों का मतलब देश में गरीबी के स्तर में तेज कमी हो सकती है. नीति आयोग के सीइओ, बी वी आर सुब्रमण्यम ने कहा है कि इस डेटा के आधार पर, देश में गरीबी का स्तर 5% या उससे कम के करीब हो सकता है. उन्होंने कहा कि आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण अभाव लगभग गायब हो गया है.  

उन्होंने कहा कि इन आंकड़ों का आरबीआई द्वारा ब्याज दर निर्धारण पर असर पड़ सकता है क्योंकि खुदरा मुद्रास्फीति सूचकांक (Retail Inflation Index) में खाद्य और अनाज की हिस्सेदारी कम है. उन्होंने कहा कि आंकड़ों ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में संदेह को दूर कर दिया है. 

गरीबी स्तर की गणना उपभोग व्यय के आंकड़ों के आधार पर की जाती है और गरीबों की संख्या को लेकर काफी चर्चा हो रही है. 2017-18 का डेटा जारी नहीं किया गया था, इसलिए यह 2011-12 के बाद का लेटेस्ट डेटा है. 

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ग्रामीण भारत में कम हुआ खाने पर खर्च
घरेलू उपभोग व्यय के नवीनतम आंकड़ों से ग्रामीण और शहरी उपभोग में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला है, जिसमें भोजन और अनाज की हिस्सेदारी में कमी आई है. इस अवधि में गैर-खाद्य वस्तुओं (Non-Food Items) जैसे फ्रिज, टेलीविजन, बेव्रेज और प्रोसेस्ड फूड, चिकित्सा देखभाल और परिवहन पर खर्च बढ़ गया है, जबकि अनाज और दालों जैसे खाद्य पदार्थों पर खर्च धीमा हो गया है. 

सर्वेक्षण से पता चला है कि मौजूदा कीमतों पर, ग्रामीण मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च 2011-12 में 1,430 रुपये से 164% बढ़कर 2022-23 में 3,773 रुपये हो गया है. जबकि शहरी केंद्रों में यह 146% बढ़ा है, जो 2011-12 में 2,630 रुपये से बढ़कर 2022-23 में 6,459 रु. हो गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में, मासिक खपत में भोजन की हिस्सेदारी 2011-12 में 53% से घटकर 2022-23 में 46.4% हो गई है, जबकि गैर-खाद्य वस्तुओं पर खर्च 47.15 से बढ़कर 54% हो गया है. 

शहरी केंद्रों में भी यही प्रवृत्ति दिखाई दे रही है, भोजन पर खर्च 2011-22 में 43% से घटकर 2022-23 में 39.2% हो गया, जबकि गैर-खाद्य व्यय 2011-12 में 57.4% से बढ़कर 2022-23 में 60.8% हो गया. 

गरीबी का स्तर हो रहा है कम 
नीति आयोग के सीईओ बी वी आर सुब्रमण्यम ने कहा, "भोजन में, बेव्रेज, प्रोसेस्ड फूड, दूध और फलों की खपत बढ़ रही है - जो ज्यादा विविध और संतुलित खपत का संकेत है." उन्होंने कहा कि लेटेस्ट आंकड़ों से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) का पुनर्गठन होगा जो खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) को मापता है, क्योंकि अनाज और भोजन की हिस्सेदारी कम हो जाएगी. 

सुब्रमण्यम ने कहा कि इसका मतलब है कि CPI Inflation में भोजन का योगदान कम होगा और शायद पहले के सालों में भी कम था. इसका मतलब है कि मुद्रास्फीति कम थी लेकिन इसको बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा था क्योंकि भोजन का प्रमुख योगदान रहा है. साल 2014 में, पूर्व आरबीआई गवर्नर सी रंगराजन की अध्यक्षता वाले एक पैनल ने शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक व्यय 1,407 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 972 रुपये के रूप में गरीबी रेखा का अनुमान लगाया था. नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि निचली 5-10% आबादी का औसत मासिक उपभोग व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में 1,864 रुपये और शहरी केंद्रों में 2,695 रुपये है." 

रंगराजन की परिभाषा के अनुसार, सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में गरीबी का स्तर अब काफी कम है. पैनल की परिभाषा के अनुसार, शहरों में प्रति दिन 47 रुपये और गांवों में 32 रुपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे है. नवीनतम MPCI के अनुसार सबसे नीचे आने वाले 5-10% लोगों के उपभोग व्यय से पता चलता है कि भारत में गरीबी दर अब कम हो गई है और सिंगल-डिजिट में है.