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Ladakh: कैसे किसी राज्य को मिलता है पूर्ण राज्य का दर्जा... कौन-कौन सी शर्तें पूरी करनी जरूरी... लद्दाख के मामले में ये कितना मुमकिन

लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग तेज हो गई है. इसके लेकर विरोध प्रदर्शन भी हुआ है. आइए जानते हैं आखिर किसी राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा कैसे मिलता है? केंद्र शासित राज्य क्यों इसकी मांग करते हैं? पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर क्या-क्या लाभ मिलता है? छठी अनुसूची क्या है? केंद्र सरकार पूर्ण राज्य का दर्जा अभी लद्दाख को क्यों नहीं दे रही?

People protesting demanding statehood and inclusion of Ladakh in the Sixth Schedule (File Photo: PTI) People protesting demanding statehood and inclusion of Ladakh in the Sixth Schedule (File Photo: PTI)

लद्दाख अक्सर शांत रहता है लेकिन अभी कुछ दिनों से इस केंद्र शासित प्रदेश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की जा रही है.

गत 24 सितंबर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन भी हुआ था. केंद्र सरकार ने लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पर लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगाया है. उधर, वांगचुक ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से नाकार दिया है. वांगचुक पिछले 15 दिनों से लद्दाख को पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर थे. आइए जानते हैं आखिर किसी राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा कैसे मिलता है? केंद्र शासित राज्य क्यों इसकी मांग करते हैं? पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर क्या-क्या लाभ मिलता है? छठी अनुसूची क्या है? केंद्र सरकार पूर्ण राज्य का दर्जा अभी लद्दाख को क्यों नहीं दे रही?

लद्दाख कब बना था केंद्र शासित प्रदेश
लद्दाख पहले जम्मू-कश्मीर में शामिल था. यहां को लोग लंबे समय से केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा पाने की मांग कर रहे थे. 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य देने वाले आर्टिकल 370 के कुछ प्रावधानों को निरस्त कर दिया था. अनुच्छेद 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के बाद जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया. इस तरह से लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला. यह कदम प्रशासनिक दृष्टि से बड़ा बदलाव था. 

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हालांकि जम्मू-कश्मीर से अलग केंद्रशासित प्रदेश बनते ही लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) ने पूर्ण राज्य के दर्जे और लद्दाख में छठी अनुसूची लागू करने की मांग रख दी. केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाख के स्थानीय लोगों को संस्कृति संरक्षण और पर्यावरणीय सुरक्षा की चिंता सताने लगी. इसके बाद उन्होंने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का आंदोलन चलाया. लद्दाख में बौद्ध समुदाय के लोग अधिक हैं. लद्दाख चीन और पाकिस्तान दोनों से सटा हुआ है. लद्धाख में PoK, गिलगित, बाल्टिस्तान, शक्सगाम घाटी, सियाचिन और अक्साई चिन का इलाका आता है. करगिल भी लद्दाख में ही है.

अभी भारत में हैं 8 केंद्र शासित प्रदेश
भारत में अभी 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं. केंद्र शासित प्रदेशों में लद्दाख के अलावा जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, लक्षद्वीप और पुडुचेरी शामिल हैं. इन प्रदेशों पर केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण रहता है. इनके पास राज्य जैसे पूर्ण अधिकार नहीं है. ऐसे में केंद्र शासित प्रदेश पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते हैं.

क्या हैं प्रमुख मांगें
1. लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा.
2. छठी अनुसूची के तहत सांविधानिक सुरक्षा.
3. लेह और कारगिल दो अलग लोकसभा सीटें.
4. सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण.

पूर्ण राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में अंतर
पूर्ण राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में मुख्य अंतर उनके सशक्त शासन और अधिकार में है. पूर्ण राज्य एक ऐसा राज्य होता है, जिसके पास भारतीय संविधान के तहत पूरा अधिकार और शक्तियां होती हैं. पूर्ण राज्य के पास अपनी विधानसभा, मुख्यमंत्री और राज्य सरकार होती है, जो राज्य के नियम, कानून और फैसले खुद बनाती और लागू करती है. राज्य अपने ज्यादातर मामलों में स्वतंत्र होता है और केंद्र सरकार केवल कुछ मामलों में ही हस्तक्षेप करती है. केंद्र शासित प्रदेश पर मुख्य रूप से केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है. इसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त लेफ्टिनेंट गवर्नर चलाते हैं और अधिकांश फैसले केंद्र सरकार तय करती है. कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा होती है, लेकिन वे अपने फैसलों में पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं होते.

कैसे मिलता है पूर्ण राज्य का दर्जा 
संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत नए राज्यों के गठन, उनके क्षेत्र में बदलाव या नाम परिवर्तन का अधिकार संसद को है. किसी भी राज्य या क्षेत्र को पूर्ण राज्य बनाने के लिए एक लंबी प्रक्रिया होती है. यह प्रक्रिया लोगों की मांग से शुरू होती है. जिसके बाद यह मांग केंद्रीय सरकार के पास पहुंचती है. इसके ऊपर विचार किया जाता है. इन सब के बाद कैबिनेट राष्ट्रपति के पास री-ऑर्गेनाइजेशन बिल के लिए सिफारिश भेजता है.

संवैधानिक अधिकार और प्रक्रिया संसद के माध्यम से ही चलती है. राष्ट्रपति के पास बिल पहुंचने के बाद वह उस राज्य के विधानमंडल से उसकी राय लेता है. जिसके लिए वह विधानमंडल को एक समय सीमा देता है. यदि राष्ट्रपति सिफारिश करते हैं तो उसके बाद राज्य अपना री-ऑर्गेनाइजेशन बिल लोकसभा या राज्यसभा में पेश करता है. यह बिल दोनों सदनों से पास होना जरूरी होता है. बिल पास होने के बाद राष्ट्रपति का परमिशन जरूरी होता है. राष्ट्रपति इस पर मुहर लगाता है. इसके बाद पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाता है. 

पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर क्या-क्या लाभ मिलेगा 
1. पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद राज्य अपनी विधान सभा और मुख्यमंत्री के जरिए खुद के कानून और नियम बना सकता है.
2. पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद राज्य में सभी फैसले वहां की राज्य सरकार ले सकती है. 
3. राज्य अपने विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के फैसले स्वतंत्र रूप से ले सकता है.
4. राज्य सरकार का पुलिस प्रशासन पर कंट्रोल रहता है.
5. राज्य के पास अपने जिले, पंचायत और नगरपालिकाओं पर निर्णय लेने का अधिकार होता है.
6. राज्य अपने कर और संसाधनों से मिलने वाली आय का खुद प्रबंधन कर सकता है.
7. राज्य में विकास के कामों में राज्य सरकार का फैसला अंतिम होता है. 
8. पूर्ण राज्य केंद्र सरकार पर कम निर्भर रहते हैं.

क्या है छठी अनुसूची 
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची विशेष प्रावधानों का समूह है, जिसका उद्देश्य आदिवासी और सांस्कृतिक रूप से विशेष महत्व रखने वाले क्षेत्रों को स्वायत्त शासन देना है. भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में लागू है. छठी अनुसूची स्थानीय समुदायों को इन क्षेत्रों के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देती है. लद्दाख में प्रदर्शनकारी युवा मांग कर रहे हैं कि इसे छठी अनुसूची के संरक्षण में लाया जाए.

छठी अनुसूची के अनुसार, जिन जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त जिला माना गया है और यदि उस क्षेत्र में अलग-अलग अनुसूचित जनजातियां हैं तो उन्हें राज्यपाल द्वारा क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है. प्रत्येक स्वायत्त जिले के लिए, एक जिला परिषद होगी, जिसमें 30 से अधिक सदस्य नहीं होंगे. राज्यपाल चार से अधिक सदस्यों को मनोनीत नहीं करेंगे, जबकि शेष सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाएगा. इसके अतिरिक्त, प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र के लिए एक अलग क्षेत्रीय परिषद की स्थापना की जाएगी.

छठी अनुसूची में शामिल होने पर लद्दाख में क्या-क्या बदलेगा
1. यदि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो लद्दाख के भीतर एक या एक से अधिक स्वायत्त परिषदें बन सकती हैं.
2. जनता और परिषदों को जमीन, जंगल और जल स्रोतों पर नियंत्रण मिल सकता है.
3. बौद्ध मठ, मुस्लिम सूफी परंपरा और स्थानीय भाषाओं को संवैधानिक सुरक्षा मिल जाएगी.
4. स्थानीय युवाओं के लिए विशेष प्रावधान बन सकते हैं.
5. हिमालयी पारिस्थितिकी को बचाने वाले स्थानीय नियम बनाना संभव हो जाएगा.
6. इस तरह से छठी अनुसूची लद्दाख के लोगों को जहां सांस्कृतिक और पर्यावरणीय सुरक्षा देगी, वहीं राज्य का दर्जा राजनीतिक आत्मनिर्णय का मार्ग प्रशस्त करेगा. 

क्यों नहीं मिल रहा लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा 
लद्दाख भारत के उत्तरी छोर पर स्थित है. यह चीन और पाकिस्तान दोनों की सीमाओं से सटा हुआ है. इसके चलते यहां पर सुरक्षा व्यवस्था का विशेष ध्यान रखना जरूरी है. यदि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया तो इस पर केंद्र सरकार का नियंत्रण बहुत कम हो जाएगा. ऐसे में इस क्षेत्र की निगरानी और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में फैसला लेना मुश्किल हो जाएगा. ऐसे में संभव है कि सुरक्षा और रणनीतिक महत्व को देखते हुए केंद्र सरकार फिलहाल लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं देगी.