

उत्तराखंड में एक बार फिर कुदरत का कहर टूटा है. चमोली के माणा गांव में ग्लेशियर (Glacier) टूटने से भारी तबाही हुई है. कई मजदूर बर्फ में दब गए हैं. उधर, हिमाचल प्रदेश में भी लगातार हो रही बारिश और बर्फबारी के चलते हिमखंड गिर रहे हैं. प्रशासन राहत और बचाव कार्य में जुटा हुआ है. आइए जानते हैं आखिर ग्लेशियर कैसे बनता है और यह क्यों टूटता या फटता है?
क्या है ग्लेशियर
ग्लेशियर को हिमनद (Rivers Of Ice) भी कहते हैं. ग्लेशियर बर्फ की एक विशाल चादर होती है. ग्लेशियर बनने के लिए बर्फ का जमा होना जरूरी है. पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर कई सालों तक भारी मात्रा में एक ही जगह पर बर्फ के जमने पर ग्लेशियर बनता है. कड़ाके की ठंड वाले इलाकों में हर साल बर्फ जमती रहती है. बर्फबारी होने पर पहले से जमा हुई बर्फ का घनत्व और बढ़ जाता है. इससे छोटे-छोटे बर्फ के टुकड़े ग्लेशियर में बदलने लगते हैं और नई बर्फबारी होने से नीचे दबने लगते हैं. यह प्रक्रिया फर्न कहलाती है. ग्लेशियर सघन बर्फ से बनते हैं.
इतने प्रकार के होते हैं ग्लेशियर
हमारी धरती पर दो प्रकार के ग्लेशियर पाए जाते हैं. पहला अल्पाइन ग्लेशियर. यह ग्लेशियर पहाड़ों और घाटियों में पाया जाता है. दूसरा महाद्वीपीय ग्लेशियर होता है. महाद्वीपीय ग्लेशियर समतल, बर्फ के विशाल क्षेत्र हैं, जो भूमि के विशाल भागों को कवर करते हैं. महाद्वीपीय ग्लेशियर ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में पाए जाते हैं. महाद्वीपीय ग्लेशियर में 35 सौ मीटर मोटी बर्फ हो सकती है.
ज्यादातर ग्लेशियर आर्कटिक और अंटार्कटिका जैसे ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं. हमारे देश में श्रीनगर, लद्दाख और हिमाचल में बड़े-बड़े आकार के ग्लेशियर पाए जाते हैं. आपको मालूम हो कि बर्फ और हिम से कई अलग-अलग प्रकार की भू-आकृतियां बनती हैं, लेकिन यह तब तक ग्लेशियर नहीं हैं, जब तक कि यह अपने वजन के कारण हिलना शुरू न कर दें. मौसम बदलने पर जब तापमान बढ़ता है तो ग्लेशियर का बर्फ पिघलती है, जो नदियों में पानी का मुख्य स्रोत है. गंगा नदी का प्रमुख स्रोत गंगोत्री ग्लेशियर है. यमुना नदी यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है.
क्यों टूटते हैं ग्लेशियर
ग्लेशियरों को टूटने या फटने के कई कारण होते हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण गुरुत्वाकर्षण बल होता है. ग्लेशियर के टूटने का दूसरा बड़ा कारण ग्लेशियर के किनारों पर तनाव यानी टेंशन है. ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से भी ग्लेशियर टूट रहे हैं. ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर का बर्फ तेजी से पिघलने लगता है और उसका एक हिस्सा टूट कर अलग हो जाता है. ग्लेशियर का जब कोई बड़ा टुकड़ा टूटता है तो उसे काल्विंग कहते हैं. कुछ ग्लेशियर हर साल टूटते हैं, कुछ दो या तीन साल में, कुछ कब टूटेंगे इसका अंदाजा लगा पाना नामुमकिन होता है. छोटे-मोटे ग्लेशियर आए दिन टूटते रहते हैं.
...तो आ जाता है पानी और बर्फ का सैलाब
ग्लेशियर टूटने के बाद उसके भीतर ड्रेनेज ब्लॉक हो जाती है. इससे इसमें मौजूद पानी अपना रास्ता खोज लेता है. यह पानी जब ग्लेशियर के बीच से बहता है तो बर्फ के पिघलने का रेट भी बढ़ जाता है. इससे उसका रास्ता बड़ा हो जाता है और पानी और बर्फ के बड़े-बड़े टूकड़ों का एक सैलाब आता है. इससे नदियों में अचानक बहुत तेजी से जलस्तर बढ़ने लगता है. नदियों के बहाव में भी तेजी आती है, जो आसपास के इलाकों में भारी तबाही लाती है.