scorecardresearch

पति-समाज ने छोड़ दिया साथ...तो शुरू किया अपना बिजनेस, आज दे रही हैं कई महिलाओं को रोजगार

साल 2018 में उन्होंने हिंदू धर्म में पवित्र माने जाने वाली कुशा से उत्पादों को बनाने की ट्रेनिंग अपने पंचायत में ही ली थी.  उस समय 21 महिलाओं ने ट्रेनिंग ली थी, लेकिन उनमें से सिर्फ मंजू ने ही कुशा के उत्पाद बनाने शुरू किया.

पति-समाज ने छोड़ दिया साथ...तो शुरू किया अपना बिजनेस पति-समाज ने छोड़ दिया साथ...तो शुरू किया अपना बिजनेस
हाइलाइट्स
  • आसान नहीं थी सफलता की डगर

  • कुश के बनाती है जेवर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ''वोकल फॉर लोकल'' का सपना हिमाचल के सोलन जिले के छोटे से गाँव "तूंदल" की रहने वाली मंजू अपनी मेहनत और लगन से पूरा करती नज़र आ रही है. मंजू अपने हाथों से घंटों बैठकर पूजा पाठ में प्रयोग होने वाले पवित्र "कुशा और मौली" के धागों से लगभग 40 किस्म के प्रोडक्ट्स बनाती है जिसकी मांग अब हिमाचल प्रदेश समेत पूरे भारत वर्ष में है. पर ये सफर और डगर इतनी आसान नहीं थी, न पति ने साथ दिया और न घरवालों ने. अपने बच्चों के पालन पोषण के लिए क्या किया जाए उसके लिए जब काम करना शुरू किया तो कोई साथ नहीं था. अकेले रास्ता तय करना शुरू किया और अब कारवां यहाँ तक पहुँच गया है की मंजू करीबन एक दर्ज़न महिलाओं को रोज़गार देती भी है और इस कला को सिखाती भी है.

देश, प्रदेश और दुनिया कोरोना महामारी की भयंकर चपेट में थी, महामारी के चलते अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ा है. इसी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ''वोकल फॉर लोकल'' का सपना 36 वर्ष की मंजू पूरा करती नज़र आ रही है. मंजू अपने हाथों से पूजा पाठ में प्रयोग होने वाले पवित्र "कुशा और मौली" के धागों से लगभग 40 किस्म के प्रोडक्ट्स बनाती, जो की पूरी तरह से नेचुरल और देसी है लेकिन इन प्रोडक्ट्स की अब लगातार मांग बढ़ती जा रही है.

आसान नहीं थी सफलता की डगर
पर मंजू का ये सफर और सफलता की डगर की कहानी इतनी आसान नहीं है. साल 2018 में उन्होंने हिंदू धर्म में पवित्र माने जाने वाली कुशा से उत्पादों को बनाने की ट्रेनिंग अपने पंचायत में ही ली थी.  उस समय 21 महिलाओं ने ट्रेनिंग ली थी, लेकिन उनमें से सिर्फ मंजू ने ही कुशा के उत्पाद बनाने शुरू किया. घर के हालत ठीक नहीं थे बच्चों की पढ़ाई और पालन पोषण के लिए पैसों की जरूरत थी. उस समय मंजू की उम्र 32 वर्ष थी. पति किसानी किया करते थे और साल भर में मुश्किल से 60 से 70 हज़ार कमा पाते थे. सयुंक्त परिवार में हालात और ज्यादा ख़राब हो रहे थे. जब कुशा से उत्पादों को बनाने शुरू किया तो पति और परिवार ने बिलकुल भी साथ नहीं दिया और जिन महिलाओं ने साथ ट्रेनिंग ली थी वो भी साथ नहीं आई. अकेले ही घंटों बैठकर कुशा से टोकरी, पैन स्टैंड, ट्रे, रोटी रखने के टोकरी और दर्ज़नों प्रोडक्ट्स बनाने शुरू कर दिए. लेकिन प्रोडक्ट्स बनाने के बाद उन्हें बेचने की कोई जगह नहीं थी. शिमला सोलन हाईवे पर सड़क किनारे प्रोडक्ट्स को बेचना शुरू कर दिया है और पहले ही दिन 1,632 रुपए की कमाई हो गई जिसने मंजू के हौसलों को और उड़ान दे दी.

कुश के बनाती है जेवर भी
कहते है न जो मेहनत करता है उसकी मदद करने के लिए भगवान किसी न किसी रूप में आपके सामने आ जाते है. एक दिन जब मंजू हाईवे पर अपना सामान बेच रही थी तो एक अधिकारी की उसके उत्पादों पर नज़र पड़ी जिससे वो बहुत प्रभावित हुआ और कुछ समय बाद मंजू को ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ जोड़ा गया. मंजू कुशा से कानों में पहनने वाली बाली, ज्वेलरी, पूजा पाठ के लिए खड़ाव(चप्पल), चपाती बॉक्स, पूजा आसन, पूजा टोकरी, पेन स्टैंड, पूजा चप्पल, टेबल लैंप, फ्लावर पॉट और फ्रूट बास्केट समेत कई फैंसी प्रोडक्ट्स बनाती है.

रक्षाबंधन पर कुश की राखी बना रही हैं मंजू
मंजू ने आज तक से बात करते समय बताया की अभी जैसे भाई-बहन के स्नेह के प्रतीक रक्षाबंधन के त्योहार नज़दीक आ रहा है तो वो कुशा और मौली के धागों से राखियां बना रही हैं. मंजू ने बताया कि आत्मनिर्भर बनने के सपने को साकार करने के लिए वो कुशा और मौली के धागों से राखियां बना रही हैं. मंजू ने बताया कि अमावस्या के दिन कुशा को निकालकर रख लिया जाता है. उस दिन कुशा निकालकर रखने से उसे शुद्ध माना जाता है. एक राखी को बनाने में 15-20 मिनट का समय लगता है. मंजू ने हर राखी का दाम 30 रुपये रखा है, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है. वहीं, उन्होंने अन्य महिलाओं से भी अपील की है कि वे भी अपने हाथों के हुनर को सबके सामने लाकर आर्थिक रूप से सशक्त हो सकती हैं.

कुशा को लेकर क्या हैं धार्मिक आस्थाएं
अमावस्या के दिन वर्ष भर किए जाने वाले धार्मिक कामों तथा श्राद्ध आदि कामों के लिए कुशा घास जिसका उपयोग धार्मिक, पूजा पाठ, मरण और श्राद्ध आदि कार्यों में किया जाता है. कुशा की पुराणों में अलग अलग कहानी है. कहा जाता है की जब सीता माता अग्नि में समां रही थी तब श्री राम भगवान् ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की थी और उस समय सीता माता के बाल श्री राम भगवान के हाथों में आ गए थे और उन बालों से ही कुशा घास की उत्पति हुई है. 
मत्स्य पुराण का कहना है कि कुशा घास भगवान विष्णु के शरीर से बनी होने के कारण पवित्र मानी गई है. मत्स्य पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को स्थापित किया. उसके बाद अपने शरीर पर लगे पानी को झाड़ा तब उनके शरीर से बाल पृथ्वी पर गिरे और कुशा के रूप में बदल गए.