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Pigeon pea new variety: सिर्फ 125 दिन में होगी तैयार होगी अरहर दाल की यह नई किस्म, कम पानी में ज्यादा उपज

अरहर या तुर दाल की इस नई वैरायटी को न सिर्फ मानसून सीजन में बल्कि तेज गर्मी के मौसम में भी उगाया जा सकता है.

Icrisat develops new tur (arhar) dal variety (Photo: Icrisat) Icrisat develops new tur (arhar) dal variety (Photo: Icrisat)

किसान अक्सर चावल की खेती के बाद खेतों को खाली रखते हैं. लेकिन अब उनके लिए एक अच्छा विकल्प आया है- अरहर या तुर दाल की एक नई वैरायटी, जिसे न सिर्फ मानसून सीजन में बल्कि तेज गर्मी के मौसम में भी उगाया जा सकता है. यह वैरायटी 45º सेल्सियस तक के तापमान में भी उगायी जा सकती है.

अरहर दाल की नई किस्म 
अरहल दाल की नई किस्म का नाम है- ICPV 25444, जिसे इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (Icrisat) ने विकसित किया है. यह किस्म 125 दिनों में तैयार हो जाती है और गर्मी को सहने की अच्छी क्षमता रखती है. यह पारंपरिक अरहर की किस्मों से ज्यादा उत्पादन देती है. कर्नाटक, ओडिशा और तेलांगना में किए गए ट्रायल के आधार पर बताया जा रहा है कि इस वैरायटी को उगाने से किसानों को करीब 2 टन प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है, जबकि पुरानी किस्में 1 से 1.5 टन तक ही देती थीं. 

गर्मी में भी खेती संभव
यह किस्म गर्मियों में भी उगाई जा सकती है, जब आमतौर पर किसान खेत को खाली छोड़ देते हैं. इससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी का मौका मिलेगा. यह अरहर की किस्म न सिर्फ गर्मी सहती है, बल्कि रोगों से भी लड़ने में सक्षम है. खासकर फाइटोफथोरा ब्लाइट नाम की बीमारी से जो ज्यादातर बारिश में होती है. 

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स्पीड ब्रीडिंग तकनीक से बनी है यह किस्म 
डेक्कन क्रॉनिकल की रिपोर्ट के मुताबिक, Icrisat ने 2024 में अरहर के लिए स्पीड ब्रीडिंग तकनीक विकसित की.  इससे नई किस्में विकसित करने में लगने वाला समय 15 साल से घटकर सिर्फ 5 साल हो गया. वैज्ञानिकों ने 2,250 स्क्वायर फीट की जगह में एक सीजन में 18,000 पौधे उगाए. इसके लिए उन्होंने छोटे गमलों में पौधे लगाए और सीड-चिपिंग टेक्नोलॉजी जैसी उन्नत तकनीकें इस्तेमाल कीं. 

भारत में उत्पादन की बड़ी संभावना
भारत हर साल करीब 30 लाख टन अरहर पैदा करता है, लेकिन जरूरत 50 लाख टन की है. बाकी की अरहर लगभग 800 मिलियन डॉलर (लगभग 6,500 करोड़ रुपये) में आयात करनी पड़ती है. यह नई किस्म इस अंतर को कम कर सकती है. Icrist की टीम इस परेशानी को दो तरह से कम करने की कोशिश कर रही है:

  • वर्टिकल एक्सपेंशन यानी हाईब्रिड किस्में बनाना जो ज्यादा उत्पादन दें.
  • हॉरिजॉन्टल एक्सपेंशन यानी चावल की कटाई के बाद खाली जमीन में गर्मी में भी अरहर उगाना.

पानी की बचत
जहां चावल की खेती में पंजाब में 25 बार सिंचाई करनी पड़ती है, वहीं इस अरहर की किस्म को सिर्फ 6 से 8 बार पानी देना पड़ता है और कभी-कभी इससे भी कम. तेलंगाना में तुअर दाल की खेती लगभग 45,000 से 50,000 हेक्टेयर में होती है. यह किस्म जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) नहीं है. इसे सिर्फ स्पीड ब्रीडिंग से विकसित किया गया है जो ग्रोथ साइकिल को तेज कर देती है. 

इस शोध को केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, RKVY योजना, और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) का सहयोग मिला है. यह एक बड़ा कदम है, जिससे किसान की आमदनी बढ़ेगी, पानी बचेगा और देश को अरहर आयात करने की जरूरत कम होगी.