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Independence Day 2025: 15 नहीं, 18 अगस्त को आज़ादी मनाते हैं भारत के ये दो ज़िले... जानिए क्या है इसके पीछे की कहानी

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जब 15 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर से आज़ादी का ऐलान किया तो पूरे भारत ने एक नए युग के स्वागत के लिए अपनी बाहें खोल दीं. लेकिन भारत के दो ऐसे ज़िले थे, जिनके हिस्से आज़ादी अभी पूरी तरह नहीं पहुंची थी और उनके हिस्से का कुछ संघर्ष बाकी था.

नादिया : चरखे पर तागा कातती हुई एक महिला (Photo: PTI) नादिया : चरखे पर तागा कातती हुई एक महिला (Photo: PTI)

भारत का स्वतंत्रता दिवस हर साल 15 अगस्त को बड़े उत्साह और गर्व के साथ मनाया जाता है. इसी दिन 1947 में भारत ने ब्रिटिश शासन से आजादी हासिल की थी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के कुछ हिस्सों, खासकर पश्चिम बंगाल के नदिया और मालदा जिलों में स्वतंत्रता दिवस 18 अगस्त को मनाया जाता है? इसके पीछे का कारण भारत-पाकिस्तान विभाजन की जटिल प्रक्रिया और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा है.

...जब आज़ादी के साथ मिला बंटवारा
भारत ने 15 अगस्त 1947 को औपचारिक रूप से ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी दिन दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा फहराया और अपने ऐतिहासिक भाषण "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" में स्वतंत्र भारत के सपनों का इज़हार किया. लेकिन स्वतंत्रता के साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे की प्रक्रिया शुरू हुई जिसे माउंटबेटन योजना के तहत लागू किया गया.

इस बंटवारे के लिए सीमा रेखा तय करने का जिम्मा सिरिल रेडक्लिफ को सौंपा गया था जिन्हें भारत और पाकिस्तान की सीमाओं को निर्धारित करना था. रेडक्लिफ की इस प्रक्रिया में कई खामियां थीं. इसी कारण कुछ क्षेत्रों का सही निर्धारण नहीं हो सका. पश्चिम बंगाल के नदिया और मालदा जिले उन क्षेत्रों में शामिल थे जो 15 अगस्त 1947 को तकनीकी रूप से भारत का हिस्सा नहीं थे.

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रेडक्लिफ लाइन के तहत इन हिंदू बहुल क्षेत्रों को गलती से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में शामिल कर दिया गया. नदिया जिले के कस्बों जैसे रानाघाट, शांतिपुर, और कृष्णानगर में लोगों को जब यह पता चला कि उनके क्षेत्र को पाकिस्तान में शामिल किया गया है, तो उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया. 

शुरू हो गए विरोध प्रदर्शन
इन क्षेत्रों में 15 अगस्त को जश्न के बजाय विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. स्थानीय लोग पाकिस्तान नहीं बल्कि भारत का हिस्सा बनना चाहते थे. इस विरोध को देखते हुए तत्कालीन भारतीय नेताओं, विशेष रूप से पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी और नदिया के शाही परिवार के सदस्यों ने ब्रिटिश प्रशासन से इस मुद्दे को उठाया. उनकी मांग थी कि हिंदू बहुल क्षेत्रों को भारत में शामिल किया जाए. लॉर्ड माउंटबेटन ने इस गलती को सुधारने के लिए तुरंत कार्रवाई की. 

उन्होंने 17 अगस्त 1947 को नए सिरे से सीमा निर्धारण का आदेश दिया. इस प्रक्रिया को रातों-रात पूरा किया गया. आखिरकार 18 अगस्त 1947 को नदिया और मालदा जिले आधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा बने. इस दिन इन क्षेत्रों में स्वतंत्रता का जश्न मनाया गया. तब से स्थानीय लोग 18 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं.

समय के साथ इन क्षेत्रों में 15 और 18 अगस्त दोनों दिन राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाने लगा है. साल 2002 में भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन के बाद आम नागरिकों को किसी भी दिन तिरंगा फहराने की अनुमति मिल गई है. इससे 18 अगस्त को झंडा फहराने की परंपरा और मजबूत हुई है. यह दिन मालदा और नदिया के लोगों के लिए न सिर्फ आज़ादी का प्रतीक है, बल्कि इन जिलों के लोगों के संघर्ष और उनकी भारत के प्रति निष्ठा को भी दर्शाता है.