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INS Vikramaditya: इस महीने के आखिरी में शुरू होगी आईएनएस विक्रमादित्य की जल यात्रा, जानिए क्या है इसकी खासियत

INS Vikramaditya: आईएनएस विक्रमादित्य को साल 2013 में रूस में कमीशन किया गया था. जबकि 2014 में औपचारिक तौर पर इंडियन नेवी में शामिल किया गया था. आईएनएस विक्रमादित्य को रूस के एडमिरल गोर्शकोव में बदलाव करके बनाया गया है. इसमें कई आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है और इसे दुश्मनों के लिए घातक बनाया गया है.

जनवरी के आखिरी में आईएनएस विक्रमादित्य की जल यात्रा शुरू होगी  (फाइल फोटो) जनवरी के आखिरी में आईएनएस विक्रमादित्य की जल यात्रा शुरू होगी (फाइल फोटो)

इस महीने के आखिरी तक भारत के पहले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य का मरम्मत का काम पूरा कर लिया जाएगा. कारवार नौसैनिक अड्डे पर इस एयरक्राफ्ट करियर की मरम्मत की जा रही है. बताया जा रहा है कि 30 जनवरी के आसपास इस युद्धपोत की जलयात्रा शुरू हो सकती है और समंदर में इसका ट्रायल भी जल्द ही शुरू होगा.
इंडियन नेवी आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत पर मानसून से पहले फ्लाइट ट्रायल होने की उम्मीद है. इससे इंडो-पैसिफिक इलाके में नेवी की ताकत में बढ़ोतरी होगी. आईएनएस विक्रमादित्य पर मुख्य हथियार के तौर पर मिग-29 लड़ाकू विमान को तैनात किया गया है. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर आईएनएस विक्रमादित्य इंडियन नेवी के लिए  क्यो खास है.

INS विक्रमादित्य का इतिहास-
विक्रमादित्य युद्धपोत रूस में बना है. पहले ये एडमिरल गोर्शकोव था. भारत ने इसे कुछ बदलाव के साथ रूस से खरीदा था. साल 1994 से इस युद्धपोत को लेकर भारत और रूस में बातचीत शुरू हुई थी. साल 2004 में भारत ने इसे 2.35 बिलियन डॉलर की कीमत पर खरीदा था. इसके बाद इसमें बदलाव का काम शुरू हुआ और साल 2013 में जाकर फाइनल हुआ. 16 नवंबर 2013 को रूस में रक्षा मंत्री एके एंटनी ने इसे कमीशन किया था. 14 जून 2014 को पीएम मोदी ने औपचारिक रूप से आईएनएस विक्रमादित्य को इंडियन नेवी में शामिल किया.

नए अवतार में आईएनएस विक्रमादित्य-
विक्रमादित्य के फ्लोटिंग एयरफील्ड की लंबाई करीब 284 मीटर और अधिकतम बीम करीब 60 मीटर लंबा है. इसकी ऊंचाई करीब 20 मंजिला इमारत जितनी है. इसमें 22 डेक बनाए गए हैं. इसपर 1600 कर्मचारियों के रहने की व्यवस्था है. इसे आप फ्लोटिंग सिटी कह सकते हैं. इतने कर्मचारियों के रहने के लिए जरूरी सामान की भी जरूरत होती है. इतने लोगों के लिए हर महीने करीब एक लाख अंडे, 20 हजार लीटर दूध और 16 टन चावल की जरूरत पड़ेगी. आईएनएस विक्रमादित्य इन तमाम सुविधाएं के साथ खुद को 45 दिनों तक समंदर में रखने में सक्षम है. युद्धपोत 8 हजार से अधिक एलएसएचएसडी की क्षमता के साथ 13 हजार किलोमटीर की सीमा तक संचालन करने में सक्षम है.

क्या है इसमें खास-
आईएनएस विक्रमादित्य ऑटोमेशन के साथ बॉयलर टेक्नोलॉजी से लैस है. इन बॉयलरों में 4 विशाल प्रोपेलर होते हैं. इंडियन नेवी में इस तरह का पहला जहाज है. इस युद्धपोत में 18 मेगावाट की बिजली उत्पादन भी होता है, ताकि इसकी जरूरतों को पूरा किया जा सके. इसके लिए 6 टर्बो अल्टरनेटर और 6 डीजल अल्टरनेटर लगाए गए हैं. ताजे पानी के लिए इसमें 3 रिवर्स ऑस्मोसिस संयंत्र भी लगे हैं, ताकि रोजाना 400 टन पानी की आपूर्ति की जा सके.

क्या है इसकी ताकत-
आईएनएस विक्रमादित्य को दुश्मनों पर नजर रखने के लिए खास तौर से तैयार किया गया है. इसमें लॉन्ग रेंज एयर सर्विलांस रडार, एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट के सेंसर्स लगे है. आईएनएस 500 किलोमीटर से अधिक की निगरानी करने में सक्षम है. इसमें 30 से ज्यादा विमान ले जाने की क्षमता है. जिसमें मिग-29, कामोव-31, कामोव-28, सीकिंग एएलएच-ध्रुव और चेतक हेलिकॉप्टर शामिल हैं. मिग-29 के स्विंग रोल फाइटर मुख्य आक्रामक प्लेटफॉर्म हैं. इस युद्धपोत से एंटी-शिप मिसाइल्स, एयर-टू-एयर, गाइडेड बॉम्ब्स और रॉकेट्स का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. आईएनएस विक्रमादित्य में मिग के लिए LUNG लैंडिंग सिस्टम, सी हैरियर और फ्लाइट डेक लाइटिंग सिस्टम के लिए DAPS लैंडिंग सिस्टम है.

LESORUB-E से लैस है विक्रमादित्य-
आईएनएस विक्रमादित्य कंप्यूटर एडेड एक्शन इफॉर्मेशन ऑर्गनाइजेशन सिस्टम, LESORUB-E से लैस है. LESORUB-E में युद्धपोत के सेंसर और डेटा लिंक से डेटा एकत्र करने और व्यापक सामरिक चित्रों को इकट्ठा करने की क्षमता है. इस आधुनिक सिस्टम को विशेष तौर पर लड़ाकू नियंत्रण तकी जरूरत को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है. इसके अलावा युद्धपोत में रेसिस्टर-ई रडार कॉम्प्लेक्स लगा है. जो हवाई यातायात नियंत्रण, लैंडिंग और कम दूरी के नेविगेशन प्रदान करने के लिए डिजाइन की गई है. इतना ही नहीं, विक्रमादित्य अपनी बाहरी संचार जरूरतों को पूरा करने के लिए एक बहुत ही आधुनिक संचार परिसर, सीसीएस एमके-II से लैस है.

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