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INS Vikrant: देश को मिला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत, जानिए समंदर में किस देश की कितनी है ताकत

प्रधानमंत्री मोदी ने पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत को राष्ट्र को समर्पित कर दिया है. कोच्चि में हुए शानदार समारोह में प्रधानमंत्री ने आईएनएस विक्रांत को नौसेना के बेड़े में शामिल किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि विक्रांत विशाल है, विराट है, विहंगम है, विक्रांत विशिष्ट है, विक्रांत विशेष भी है. विक्रांत केवल एक युद्धपोत नहीं है. ये 21वीं सदी के भारत के परिश्रम, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता का प्रमाण है.

INS विक्रांत INS विक्रांत
हाइलाइट्स
  • टारगेट एलिफैंट की सुरक्षा

  • चलता-फिरता शहर है विक्रांत

देश का पहला स्वदेशी युद्धपोत समुद्री मोर्चे पर दुश्मन से टक्कर लेने के लिए तैयार है. प्रधानमंत्री मोदी ने आईएनएस विक्रांत को देश को समर्पित कर दिया और इसके साथ ही सागर की प्रचंड लहरों का ये योद्धा समुद्र के सबसे बड़े प्रहरी के रूप में तैनात हो गया. इस महाबली के समंदर में उतरने से भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ेगा, IAC विक्रांत भारत में बना पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर है. इसका नाम सुनते ही देश के दुश्मन खौफ में आ जाते हैं. इसके बारे में कुछ भी जानने से पहले ये जानिए कि इसे बनाने का आईडिया कहां से आया.

स्वदेशी का आइडिया कहां से आया?
1999 की कारगिल जंग के बाद भविष्य के खतरों से निपटने के लिए एक विशाल एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने का प्रस्ताव रखा गया, जो स्वदेशी हो. इंडियन नेवी के पास ऐसे युद्धपोत ऑपरेट करने का एक्सपीरिएंस तो था, लेकिन बनाने का नहीं. 2002 में इस प्रोजेक्ट को अटल सरकार में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने मंजूरी दे दी. कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) में इसका कंस्ट्रक्शन शुरू हुआ. शुरुआत में ये 60:40 के रेशियो में बनना था. यानी 60% भारतीय सामान और 40% विदेशी. 2005 तक सबकुछ ट्रैक पर था, तभी रूस ने वॉरशिप ग्रेड स्टील देने से इनकार कर दिया.

आपदा में अवसर
एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने के लिए खास तरह के स्टील की जरूरत होती है. इसे वॉरशिप ग्रेड स्टील कहते हैं, जिसके लिए भारत रूस पर निर्भर था. रूस के मना करने पर INS विक्रांत का कंस्ट्रक्शन करीब 2 साल थमा रहा. इस बीच DRDO और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने मिलकर आपदा को अवसर में बदला. भारत ने खुद का वॉरशिप ग्रेड स्टील डेवलप कर लिया, जिससे दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म हो गई. अब जिंदल ग्रुप और एसआर ग्रुप मिलकर इस स्टील को बनाते हैं.

13 साल में तैयार हुआ
2009 INS विक्रांत की कील रखी गई. यानी युद्धपोत का प्रोग्रेसिव कंस्ट्रक्शन शुरू हुआ. 2011 अगस्त 29 को विक्रांत ड्राई डॉक से बाहर आया. यानी इसका ढांचा बनकर तैयार हुआ. 2013 अगस्त 12 को इसे लॉन्च किया गया और दिसंबर 2020 में बेसिन ट्रायल्स पूरे हो गए. 2021 अगस्त 4 को इसे पहली बार समुद्र में उतारा गया और जुलाई 2022 तक इसके सी ट्रायल्स हुए. 2022 सितंबर 2 को INS विक्रांत भारतीय नेवी में कमीशन होगा. इसे पूरी तरह ऑपरेशनल होने में जून 2023 तक का वक्त लगेगा.

चलता-फिरता शहर
इसमें 4 LM-2500 गैस टरबाइन हैं, जो 88 मेगावाट पावर जनरेट करेंगे. इससे आधे जयपुर को बिजली दी जा सकती है. विक्रांत में 14 डेक हैं जो 10 मंजिला इमारत की तरह दिखता है. इसमें कैंटीन के साथ मॉडर्न किचन है जहां 1 घंटे में 1600 लोगों का खाना बन सकता है. इसमें मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल, पूल भी है. ये एकबार ईंधन भरने पर 45 दिन तक समुद्र में रह सकता है.  इसे समुद्र में ही रिफिल भी किया जा सकता है. पूरी तरह लोड होने पर इसका डिस्प्लेसमेंट करीब 42,800 टन और मैक्सिमम स्पीड 51 किमी. प्रति घंटा है. इसका रनवे 2 फुटबॉल फील्ड के बराबर है.

टारगेट एलिफैंट की सुरक्षा
INS विक्रांत टारगेट एलिफैंट है, यानी ये इतना विशाल है कि जंग के दौरान इसे छुपाया नहीं जा सकता. इसलिए सुरक्षा के खास इंतजाम किए गए हैं. विक्रांत में 32 मीडियम रेंज की सरफेस टु-एयर मिसाइल होंगी.ये AK-630 रोटरी कैनन्स से लैस होगा. इंडियन एंटी मिसाइल नेवल कॉय सिस्टम से लैस, जो लेजर गाइडेड मिसाइल को टारगेट से डायवर्ट कर देता है. इंडियन नेवी के कुछ डिस्ट्रॉयर्स कलवरी क्लास सबमरीन भी बेड़े में चलेंगी. इस तरह INS विक्रांत का पूरा एक बैटलग्रुप रहेगा. इसके अलावा किसी एयरक्राफ्ट कैरियर के सबसे बड़े हथियार होते हैं. उसके एयक्राफ्ट  INS विक्रांत पर MiG-29K जैसे फाइटर जेट्स और MH-60R जैसे एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर्स तैनात होंगे. इसकी लंबाई 262 मीटर, ऊंचाई 59 मीटर ऊंचाई और 62 मीटर चौड़ाई होगी.

76% शुद्ध स्वदेशी है INS Vikrant
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, 'INS विक्रांत का हिस्सा पूरी तरह भारतीय है. इसके बनने के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों की गिनती में शामिल हो गया है जो एयरक्राफ्ट कैरियर डिजाइन करने और बनाने में सक्षम हैं. INS विक्रांत को बनाने में 500 से ज्यादा भारतीय कंपनियां शामिल हुईं। इनमें से कुछ प्रमुख DRDO और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने मिलकर वॉरशिप ग्रेड स्टील मुहैया कराया. टाटा एडवांस्ड सिस्टम ने विक्रांत का कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम तैयार किया. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स ने इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर और डेटा नेटवर्क बनाया. भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स ने इंटीग्रेटेड प्लेटफॉर्म मैनेजमेंट सिस्टम तैयार किया. लार्सन एंड टर्बो, गार्डन रीच शिपबिल्डर्स और वार्टसिला इंडिया जैसी कंपनियों का भी बड़ा योगदान रहा. INS विक्रांत का मेन इंजन और एडवांस्ड रडार सिस्टम विदेशों से खरीदा गया है.

विक्रांत के जंगी बेड़े में शामिल होने के साथ ही समंदर में न सिर्फ भारत की ताकत में इजाफा हुआ है. बल्कि दुनिया के उन 5 शक्तिशाली देशों की फेहरिस्त में भारत शुमार हो गया है. जो 40 हजार टन का एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की क्षमता रखते हैं. अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और इंग्लैंड के बाद अब भारत ने ये कमाल कर दिखाया है. 

तो जान लीजिए की इन पांच देशों में किस देश के पास सबसे ज्यादा समुद्री ताकत है.

चीन
सबसे पहले पड़ोसी देश चीन की बात करें तो अमेरिका को पीछे छोड़कर  चीन दुनिया की सबसे बड़ी नौसैन्य ताकत बन गया है, अभी चीनी नौसेना में जितने युद्धपोत और पनडुब्बियां शामिल हैं, उतनी अमेरिका के पास भी नही हैं. हालांकि स्पष्ट आंकड़ों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन साल 2018 में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी ने दक्षिण चीन सागर में अपनी सामरिक ताकत का प्रदर्शन किया था. उस वक्त इसमें  48 युद्धपोत, दर्जनों लड़ाकू विमान और 10,000 से अधिक नौसैनिक शामिल हुए थे. यूएस ऑफिस ऑफ नेवल इंटेलिजेंस की मानें तो 2020 तक समुद्र में चीन ने 360 से ज्यादा युद्धपोतों की तैनाती कर चुका है, जो इसे सबसे ज्यादा ताकतवर बनाता है. चीन के पास कुल दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं, एयरक्राफ्ट कैरियर शेडोंग और एयरक्राफ्ट कैरियर लिओनिंग सक्रिय सेवा में है.

अमेरिका
चीन के बाद अमेरिका के पास सबसे ज्यादा समुद्री ताकत है. नेवल वेसल रजिस्टर और प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, यूनाइटेड स्टेट्स नेवी के पास सक्रिय सेवा और रिजर्व फ्लीट दोनों में 490 से अधिक जहाज हैं, जिनमें से लगभग 90 या तो प्लानिंग में हैं या निर्माणाधीन हैं. 

फ्रांस
स्वदेशी एयरक्राफ्ट रखने वाले देशों में फ्रांस का भी नाम है. फ्रांस के पास केवल एक एयरक्राफ्ट कैरियर है. चार्ल्स डि गौले नाम का ये एयरक्राफ्ट कैरियर 2001 में नेवी में कमीशन हुआ था.

रूस
रूस के पास एडमिरल कुजनेत्सोव नाम का एक एयरक्राफ्ट कैरियर है. 20 जनवरी 1991 में इसे नेवी में कमीशन किया गया था. 1995 से सक्रिय रूप से पूरी तरह काम कर रहा है.

यूनाइटेड किंगडम
यूनाइटेड किंगडम के पास भी केवल क्वीन एलिजाबेथ क्लास के एयरक्राफ्ट कैरियर है. इसमें दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं. एक है एचएमएस क्वीन एलिजाबेथ, तो दूसरा है एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स.