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Interview: पारिवारिक जिंदगी में कभी वक्त नहीं मिला, कभी रात-रातभर जागकर रचनाएं लिखी तो कभी सफर में: पद्मश्री डॉ. विद्या विंदु सिंह

भोजपुरी और मैथिली जैसी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर डॉ. विद्या सिंह कहती हैं कि किसी भी भाषा या बोली को आंदोलन से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है. इसके लिए जरूरी है कि इस पर काम किया जाए. अवधी या किसी भी दूसरी भाषा को लिखकर, बोलकर या इस पर काम करके ही आगे बढ़ाया जा सकता है.

पद्मश्री डॉ. विद्या विंदु सिंह पद्मश्री डॉ. विद्या विंदु सिंह
हाइलाइट्स
  • डॉ. विंदु सिंह कहती हैं कि वह भाषा के लिए आंदोलन के पक्ष में नहीं हैं

  • अपने घर में बच्चों से बात करके और भाषा पर काम करके ही इसे आगे बढ़ा सकते हैं

अवधी भाषा साहित्य हो या अवधी लोक गीत, राम इसके प्राण हैं. राम ही इसके मुख्य पात्र हैं. अपनी रचनाओं में राम और सीता को सहज भाव से चित्रित करने वालीं, रामकथा के कई अनसुने प्रसंगों को सहेजने वाली हिंदी और अवधी की लेखिका, समीक्षक डॉ. विद्या विंदु सिंह(Vidya Vindu Singh)को पद्मश्री से नवाजने की घोषणा की गई है.

डॉ. विद्या विंदु सिंह की 118 रचनाएं प्रकाशित हैं जिनमें कविता संग्रह, कहानी संग्रह, उपन्यास, लोकगीत संग्रह भी हैं.
उन्होंने खास तौर पर अवधी लोक गीतों पर काम किया है. साथ ही सीता के विषय में उनकी रचना 'सीता सुरुजवा क ज्योति' भी बहुत चर्चित रही है. डॉ. विद्या सिंह से उनके साहित्य सृजन और अवधी परंपरा में राम जैसे विषयों पर हमने खास बातचीत की.

किसी बोली या भाषा पर काम करके ही आगे बढ़ाया जा सकता है
भोजपुरी और मैथिली जैसी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर डॉ. विद्या सिंह कहती हैं कि किसी भी भाषा या बोली को आंदोलन से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है. इसके लिए जरूरी है कि इस पर काम किया जाए. अवधी या किसी भी दूसरी भाषा को लिखकर, बोलकर या इस पर काम करके ही आगे बढ़ाया जा सकता है.

हिंदी को समृद्ध करती है अवधी
डॉ. विद्या सिंह कहती हैं-"मैं किसी बोली या भाषा को आगे बढ़ाने के लिए आंदोलन के पक्ष में नहीं हूं. मैं इसे सही नहीं मानती हूं. जहां तक बात अवधी की है तो ये हिंदी को भी समृद्ध करती है. जिस तरह तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अवधी ने की है. इस परंपरा का पालन करने वाले लोग ही अवधी को आगे बढ़ा सकते हैं. घर में बच्चों के साथ भी अवधी में बात करें जो कि आमतौर पर लोग घर में नहीं करते हैं. "

अवध के व्यवहार में शामिल हैं राम
डॉ. विद्या सिंह का कहना है कि अवध के मुहावरे, अवध का व्यवहार में राम शामिल हैं. जैसे हम बोलते हैं हाय राम, अरे राम. सबके मतलब अलग हैं लेकिन राम का नाम शामिल है. राम अवधी परंपरा के मुख्य पात्र हैं. डॉ. विद्या सिंह ने अपनी बात सीता और राम के जरिये लिखी है. उन्होंने एक किताब लिखी है 'सीता सुरुजवा क ज्योति'. इसक किताब को नाम दिया है महान लेखक अज्ञेय ने. वह बताती हैं कि जहां तक भारतीय जनमानस की कल्पना की जा सकती है वहां राम हैं. अवधी भाषा काफी सहज है.

कभी रात रातभर जागकर लिखा तो कभी सफर में
इस सवाल पर कि अमूमन पारिवारिक जिंदगी में महिलाओं को वक्त नहीं मिलता तो इतनी रचनाएं लिखने के लिए उन्होंने वक्त कहां से निकाला, डॉ. विंदु सिंह कहती हैं कि उन्हें कभी इसके लिए वक्त नहीं मिला. कभी रात रातभर जागकर रचनाओं को लिखा तो कभी सफर में. कभी बीमार हुई तो समय मिला तब लिखा. इसी तरह टुकड़े-टुकड़े में रचनाओं को लिखा. डॉ. विंदु सिंह की एक किताब 'Ram Katha in awdhi folklore' अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुई हैं.

कौन हैं डॉ. विद्या विंदु सिंह?
डॉ. विद्या विंदु सिंह लोकसाहित्य के क्षेत्र में जाना माना नाम हैं. कहानी, कविता, निबंध, उपन्यास, लोकगीत हर विषय पर उन्होंने अपनी कलम चलाई है पर सबसे ज्यादा उनको अवधी लोकसाहित्य के लिए सराहना मिली है. विद्या विंदु सिंह का जन्म अयोध्या(तब अयोध्या) के जैतपुर गांव में 2 जुलाई 1945 को हुआ था. उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एमए और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पीएचडी किया. अब तक 118 रचनाएं उनकी प्रकाशित हो चुकी हैं जो हिंदी और अवधी में हैं. कई देशों की यात्राएं कर चुकी हैं.

विद्या विंदु सिंह को सबसे ज्यादा ख्याति लोक साहित्य में मिली. इसमें अवधी भाषा के लोकगीत, मुहावरे, राम से जुड़े कई ऐसे प्रसंग भी हैं जिनको सिर्फ कहा और सुना जाता रहा है. उनके लिखे उपन्यासों में अंधेरे के दीप, फूल कली, हिरण्यगर्भा, शिव पुर की गंगा भौजी हैं. वहीं कविता संग्रह में वधुमेव, सच के पांव, अमर वल्लरी, कांटों का वन जैसी रचनाएं हैं. लोक साहित्य से जुड़ी रचनाओं में अवधी लोकगीत का समीक्षात्मक अध्ययन, चंदन चौक, अवधी लोक नृत्य गीत, सीता सुरुजवा क ज्योति, उत्तर प्रदेश की लोक कलाएं जैसी रचनाएं हैं.