
“कोर्ट में जज साहब ने कहा था…”
अक्सर हम ऐसी बातें सुनते हैं और तुरंत मान लेते हैं कि जज जो भी कहते हैं, वह अंतिम आदेश होता है. लेकिन क्या वाकई हर बात जो कोई जज कोर्ट में कहता है, वह ‘जजमेंट’ यानी न्यायिक आदेश होती है? या वह सिर्फ एक राय, टिप्पणी या ऑब्ज़र्वेशन हो सकती है? क्या भारतीय संविधान इस बारे में कोई साफ बात करता है?
भारतीय संविधान क्या कहता है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार, “सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कानून देश के सभी न्यायालयों पर बाध्य होंगे.”
इसका मतलब यह है कि Supreme Court के 'निर्णय' (Judgement) को भारत का हर अदालत और संस्था मानने को बाध्य है. लेकिन यहां एक पेचीदा
सवाल उठता है- क्या सुप्रीम कोर्ट के हर कथन या हर जज की कही गई बात 'निर्णय' मानी जाती है?
जवाब है: नहीं.
जजमेंट, ऑर्डर और ऑब्जर्वेशन में अंतर
जज जो कुछ कहते हैं, वह अलग-अलग प्रकार का हो सकता है. इसे समझना जरूरी है:
1. Judgment (निर्णय):
यह वह अंतिम आदेश होता है जो पूरी सुनवाई और सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट द्वारा लिखित रूप में जारी किया जाता है. इसमें तर्क, साक्ष्य और निष्कर्ष के आधार पर स्पष्ट रूप से यह बताया जाता है कि मामला किसके पक्ष में गया.
यही आदेश अनुच्छेद 141 के तहत बाध्यकारी होता है.
2. Observation (टिप्पणी):
कोर्ट के जज किसी मामले की सुनवाई के दौरान कई बार अपने व्यक्तिगत विचार, चिंता या सुझाव देते हैं. ये 'ऑब्जर्वेशन' होते हैं.
ये कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते. यानी यह सिर्फ विचार हो सकते हैं, आदेश नहीं.
उदाहरण: अगर जज सुनवाई के दौरान यह कहें कि “देश में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है”- यह एक सामाजिक टिप्पणी है, लेकिन कोई न्यायिक आदेश नहीं.
3. Obiter Dicta (उपवाक्य या उपदेश):
यह न्यायालय की उस टिप्पणी को कहते हैं जो मामले के फैसले के लिए जरूरी नहीं होती, लेकिन फिर भी कही जाती है.
यह कानूनी दृष्टि से बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन भविष्य के मामलों में जज इसे संदर्भ के रूप में ले सकते हैं.
तो फिर 'जज ने कहा' का क्या मतलब है?
कई बार मीडिया या सोशल मीडिया में "जज ने कहा कि..." या "कोर्ट ने कहा कि..." जैसे बयान वायरल हो जाते हैं. लोग इसे आदेश समझ लेते हैं. असलियत यह है कि जब तक वह बात कोर्ट के अंतिम आदेश में लिखित रूप में नहीं आती, वह सिर्फ 'राय' होती है, आदेश नहीं.
क्या हर जज की बात कानून बन जाती है?
नहीं. हर जज की कही गई बात तभी कानून मानी जाएगी जब वह:
एक उदाहरण से समझिए:
मान लीजिए कोर्ट में एक PIL फाइल हुई है कि स्कूल में मोबाइल फोन बैन होना चाहिए. जज कहते हैं- "स्कूलों में मोबाइल से बच्चे बिगड़ रहे हैं, यह चिंता का विषय है."
अब यह एक ऑब्जर्वेशन है, आदेश नहीं. जब तक जज यह बात लिखित आदेश में नहीं देता कि "स्कूलों में मोबाइल प्रतिबंधित किए जाएं", तब तक यह लागू नहीं होती.
अगली बार जब सुनें "कोर्ट ने कहा...", तो ये सवाल जरूर पूछें:
क्यों जरूरी है यह समझना?
अक्सर लोग ऑब्जर्वेशन को निर्णय मानकर सोशल मीडिया पर गलत प्रचार करते हैं. आपको समझ आना चाहिए कि हर 'कोर्ट की बात' आदेश नहीं होती. अब अगली बार जब आप हेडलाइन पढ़ें “कोर्ट ने कहा कि...” तो सोचें कि क्या यह आदेश है या सिर्फ राय?