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राजस्थान के इस रेलवे स्टेशन पर नहीं है कोई कर्मचारी गांववाले खुद करते हैं स्टेशन की देखरेख

राजस्थान के नागौर का जालसू नानक रेलवे स्टेशन देश का पहला ऐसा रेलवे स्टेशन है, जहां कोई रेलवे अधिकारी या कर्मचारी नहीं है. यहां पर ग्रामीण खुद ही टिकट काटते हैं. हर महीने ये लोग चंदा जमा करके करीब 1500 टिकट खरीदते हैं. यह रेलवे स्टेशन डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से गांववालों की देखरेख में चल रहा है.

हाइलाइट्स
  • 2005 में लिया गया था स्टेशन को बंद करने का फैसला

  • स्टेशन चालू रखने के लिए चंदे से जुटाए पैसे 

राजस्थान के नागौर का जालसू नानक रेलवे स्टेशन देश का पहला ऐसा रेलवे स्टेशन है, जहां कोई रेलवे अधिकारी या कर्मचारी नहीं है. यहां पर ग्रामीण खुद ही टिकट काटते हैं. हर महीने ये लोग चंदा जमा करके करीब 1500 टिकट खरीदते हैं. यह रेलवे स्टेशन डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से गांववालों की देखरेख में चल रहा है.भारतीय रेलवे (Indian Railways) को जालसू नानक हाल्ट रेलवे स्टेशन से हर महीने 30 हजार रुपये की आमदनी भी हो रही है. यहां 10 से ज्यादा ट्रेनें आकर रुकती हैं.

क्यों कहलाता है फौजियों का गांव?
दरअसल ये फौजियों का गांव है, यहां हर दूसरे घर में एक फौजी है. वर्तमान में 200 से ज्यादा बेटे सेना,  बीएसएफ, नेवी, एयरफोर्स और सीआरपीएफ में हैं. जबकि गांव में 250 से ज्यादा रिटायर फौजी हैं. करीब 45 साल पहले 1976 में इन्हीं फौजियों व इनके परिवारों के आवागमन के लिए रेलवे ने यहां हाल्ट स्टेशन शुरू किया गया था. इसके बाद रेलवे की पॉलिसी की वजह से इसे बंद करने का फैसला लिया गया.

2005 में लिया गया था स्टेशन को बंद करने का फैसला
रेलवे को एक पॉलिसी के तहत रेल मंडल के कम रेवेन्यू वाले स्टेशनों को बंद करना थी. इस वजह से जालसू नानक नाम के इस स्टेशन को 2005 में बंद करने का फैसला लिया गया. हालांकि ग्रामीणों को यह फैसला पसंद नहीं आया और वो इसका विरोध करने लगे. गांववाले अपनी बात पर अड़े रहे और 11 दिन तक यहां धरना चला. तब रेलवे ने गांववालों के सामने शर्त रखी कि वो इस रेलवे स्टेशन को खुद चलाएं. ग्रामीणों ने रेल मंडल की यह बात मान ली और तब से आज तक इस स्टेशन को ग्रामीण चला रहे हैं.

स्टेशन चालू रखने के लिए चंदे से जुटाए पैसे 
ग्रामीणों ने रेल मंडल के इस फैसले को मान तो लिया लेकिन उन्हें पैसे जुटाने में काफी समस्या आई. हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चंदे से पैसे जुटाना शुरू कर दिया. ग्रामीणों ने चंदे से डेढ़ लाख रुपयों जुटाए और उससे 1500 टिकट भी खरीदे गए. इसके बाद 5 हजार रुपये की सैलरी पर एक ग्रामीण को ही टिकट बिक्री के लिए स्टेशन पर बैठाया गया.