

कभी इतिहास के पन्नों में गुम हो चुकी नून नदी को अब एक बार फिर ज़िंदगी मिल गई है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षी योजना "एक जनपद–एक नदी" के तहत यह नदी अब फिर से मानचित्र पर लौट आई है. नून नदी, जो कभी बिल्हौर, शिवराजपुर और चौबेपुर के खेतों को सींचती थी, अतिक्रमण, गाद भरने और जलकुंभी के फैलाव के कारण पूरी तरह सूख चुकी थी।. लेकिन फरवरी 2025 से शुरू हुए एक बड़े अभियान ने इस सूखी नदी को फिर से जिंदा कर दिया है.
पुनर्जीवन की शुरुआत कैसे हुई?
नदी के पुराने 48 किलोमीटर लंबे मार्ग को ड्रोन सर्वे, सैटेलाइट इमेजरी, भूमि अभिलेख और स्थानीय ग्रामीणों की मदद से चिन्हित किया गया. मुख्य विकास अधिकारी (CDO) दीक्षा जैन और जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में यह सरकारी योजना जनआंदोलन में बदल गई.
CDO दीक्षा जैन के अनुसार, 58 ग्राम पंचायतों के सहयोग से लगभग 6,000 मज़दूरों ने मनरेगा योजना के तहत 23 किलोमीटर क्षेत्र में सफाई और गाद हटाने का काम किया. इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 57 लाख रुपये की लागत आई.
प्रदूषण पर रोक और लोगों की भागीदारी
नदी में गंदा पानी छोड़ने वाले कारखानों को नोटिस देकर इसे तुरंत बंद करने का आदेश दिया गया. स्थानीय लोगों की सक्रिय भागीदारी ने इस अभियान को जन आंदोलन में बदल दिया. अब कनइया ताल के पास पहले जैसी खामोशी नहीं है. वहां बहते पानी की संगीत जैसी आवाज, बच्चों की हंसी और गांव वालों की चहल-पहल सुनाई देती है. सुबह और शाम के समय लोग नदी के किनारे टहलते हैं और सुकून के पल बिताते हैं.
हरियाली की ओर एक नया कदम
मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार, जुलाई के पहले सप्ताह में नदी किनारे नीम, पीपल, पाकर और सहजन (मोरिंगा) जैसे 40,000 से अधिक पेड़ लगाए गए. इससे न केवल हरियाली बढ़ेगी, बल्कि मिट्टी का कटाव भी रुकेगा.
ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों की अहम भूमिका
स्थानीय बुज़ुर्गों ने नदी के पुराने रास्ते को पहचानने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. फरवरी में जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में औपचारिक रूप से नदी पुनर्जीवन का कार्य शुरू हुआ. आज नून नदी न केवल फिर से बह रही है, बल्कि यह साबित कर रही है कि अगर सरकार और जनता साथ मिलकर काम करें, तो एक खोई हुई नदी को भी दोबारा जिंदा किया जा सकता है.
(सिमर चावला की रिपोर्ट)
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