

कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों के सम्मान में भारत में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. यह युद्ध मई से जुलाई 1999 तक चला. यह दिन 'ऑपरेशन विजय' की सफलता का भी प्रतीक है. हम सभी जानते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान सेना के नायकों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी ताकि पूरा देश चैन की नींद सो सके. उनकी बहादुरी, साहस और जुनून की कहानियां जीवन से भी बड़ी हैं.
1. कैप्टन विक्रम बत्रा (परमवीर चक्र, मरणोपरांत) (13 जेएके राइफल्स)
उनका कैप्टन विक्रम बत्रा का लाल बत्रा (पिता) और कमल कांता (मां) के घर हुआ था. उनकी मां एक स्कूल टीचर थीं और उनके पिता एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल थे. वह जून 1996 में मानेकशॉ बटालियन में आईएमए में शामिल हुए. उन्होंने अपना 19 महीने का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 6 दिसंबर 1997 को आईएमए से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. उन्हें 13वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया था. कुछ प्रशिक्षण और कई पाठ्यक्रमों को पूरा करने के बाद उनकी बटालियन, 13 JAK RIF को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जाने का आदेश मिला. 5 जून को उन्हें द्रास, जम्मू और कश्मीर में जाने का आदेश दिया गया.
उन्हें कारगिल युद्ध के नायक के रूप में जाना जाता है और उन्होंने पीक 5140 पर फिर से कब्ज़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो टोलोलिंग नाले को देखती है. पीक 5140 पर कब्ज़ा करने के बाद, वह पीक 4875 पर कब्ज़ा करने के लिए एक और मिशन पर गए. इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह भारतीय सेना के सबसे मुश्किल मिशनों में से एक था. 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध के दौरान उनकी शहादत के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
2. ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव (परमवीर चक्र) (18 ग्रेनेडियर्स)
ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को सिकंदराबाद, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश में करण सिंह यादव (पिता) और संतारा देवी (मां) के घर हुआ था. वह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे. अगस्त 1999 में, नायब सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव को भारत के सर्वोच्च सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनकी बटालियन ने 12 जून 1999 को टोलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया और इस प्रक्रिया में 2 अधिकारियों, 2 जूनियर कमीशंड अधिकारियों और 21 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया.
वह घातक प्लाटून का भी हिस्सा थे और उन्हें टाइगर हिल पर लगभग 16500 फीट ऊंची चट्टान के टॉप पर स्थित तीन रणनीतिक बंकरों पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था. वह रस्सी के सहारे चढ़ ही रहे थे कि तभी दुश्मन के बंकर ने रॉकेट फायर शुरू कर दिया. उन्हें कई गोलियां लगीं लेकिन दर्द की परवाह किए बिना उन्होंने मिशन जारी रखा. वह रेंगते हुए दुश्मन के पहले बंकर तक पहुंचे और एक ग्रेनेड फेंका जिसमें लगभग चार पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और दुश्मन की गोलीबारी पर काबू पा लिया. इससे बाकी भारतीय पलटन को चट्टान पर चढ़ने का अवसर मिला. उनकी बहादुरी ने कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई.
3. कैप्टन मनोज कुमार पांडे (परमवीर चक्र, मरणोपरांत) (1/11 गोरखा राइफल्स)
कैप्टन मनोज कुमार पांडे का जन्म 25 जून 1975 को रूढ़ा गांव, सीतापुर, उत्तर प्रदेश, भारत में श्री गोपी चंद पांडे (पिता) और मोहिनी पांडे (मां) के घर हुआ था. वह 1/11 गोरखा राइफल्स के सिपाही थे. उनके पिता के अनुसार, वह सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र पाने के उद्देश्य के साथ ही भारतीय सेना में शामिल हुए थे. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. देश की आन-बान-शान के लिए एक और वीर जवान ने अपनी जान कुर्बान कर दी.
उनकी टीम को दुश्मन सैनिकों को खदेड़ने का काम सौंपा गया था, उन्होंने घुसपैठियों को पीछे धकेलने के लिए कई हमले किए. दुश्मन की भीषण गोलाबारी के बीच, बहादुर मनोज पांडे ने हमला करना जारी रखा, जिसके परिणामस्वरूप बटालिक सेक्टर में जौबार टॉप और खालुबार पहाड़ी पर कब्जा हो गया. उनके अदम्य साहस और नेतृत्व के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
4. कैप्टन अमोल कालिया (वीर चक्र) (12 JAK LI)
कैप्टन अमोल कालिया हमेशा से एक सैनिक बनना चाहते थे. वह पंजाब के नंगल में स्कूल गए. वैसे तो वह एक इंजीनियर बन सकते थे, लेकिन उन्होंने इसके बजाय राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (सेना प्रशिक्षण स्कूल) में शामिल होने का विकल्प चुना. 1999 में, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान, कैप्टन कालिया की टीम को पाकिस्तानी सैनिकों से एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्वत चोटी वापस लेने के लिए भेजा गया था. यह एक खतरनाक मिशन था, लेकिन कैप्टन कालिया और उनके 13 साथी पहाड़ी लड़ाई में माहिर थे.
वे रात में टॉप पर पहुंच गये और दुश्मन से युद्ध करने लगे. कैप्टन कालिया बुरी तरह घायल हो गए थे, फिर भी वे तब तक बहादुरी से लड़ते रहे जब तक कि उनकी सांसे चल रही थीं. कैप्टन कालिया और उनकी टीम ने अपना बलिदान देकर पहाड़ की चोटी वापस जीत ली.
5. लेफ्टिनेंट बलवान सिंह (महावीर चक्र) (18 ग्रेनेडियर्स)
लेफ्टिनेंट बलवान सिंह का जन्म अक्टूबर 1973 में सासरौली, रोहतक जिला, हरियाणा, भारत में हुआ था. 3 जुलाई 1999 को लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को अपनी घातक प्लाटून के साथ बहु-आयामी हमले के तहत उत्तर-पूर्वी दिशा से टाइगर हिल टॉप पर हमला करने का काम सौंपा गया था. यह मार्ग 16500 फीट की ऊंचाई पर स्थित था, जो बर्फ से ढका हुआ था और बीच-बीच में दरारें और झरने से घिरा हुआ था.
उन्होंने टीम का नेतृत्व किया और 12 घंटे से ज्यादा समय तक बहुत मुश्किल रास्ते पर गोलाबारी के बीच भी आगे बढ़ते रहे. गोलाबारी में लेफ्टिनेंट बलवान सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए लेकिन उन्होंने बिना रुके दुश्मन को ख़त्म करने का संकल्प लिया. टाइगर हिल पर कब्ज़ा करने में उनके साहस और बहादुरी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके साहस और वीरता के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.