Delhi Services Bill
Delhi Services Bill आने वाले दिनों में दिल्ली में बड़े बदलाव हो सकते हैं. केंद्र सरकार ने दिल्ली सेवा अध्यादेश को बदलने के लिए लोकसभा में एक विधेयक पेश किया है, जो लोकसभा से पारित हो गया. इसमें दिल्ली में ग्रुप-ए अधिकारियों की तैनाती और ट्रांसफर की मॉनिटरिंग के लिए एक नई बॉडी की स्थापना को लेकर कहा जाएगा. केंद्रीय गृह मंत्री ने अमित शाह संसद में दिल्ली सर्विसेज बिल पेश किया, जिसे ध्वनिमत से पारित कर दिया गया. केंद्रीय कैबिनेट ने इस बिल को 25 जुलाई को मंजूरी दे दी थी. दरअसल, ये विधेयक सरकार के एजेंडे में शामिल 31 विधेयकों में से एक है, जिस पर मानसून सत्र के दौरान संसद की 17 बैठकों में चर्चा की जाने वाली है.
क्या छिन जाएंगी दिल्ली के मुख्यमंत्री की शक्तियां?
दिल्ली सेवा बिल को लेकर AAP सरकार इसलिए भी चिंता में हैं क्योंकि इसे बिल के आने से दिल्ली के मुख्यमंत्री और दिल्ली सरकार की शक्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी. इसमें उनके क्षेत्र में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे, उनके ऊपर से दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का नियंत्रण हट जाएगा. ये शक्तियां उपराज्यपाल की मदद से केंद्र के पास चली जाएंगी.
मई में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था कि दिल्ली का प्रशासन कानून बना सकता है और राज्य की सिविल सेवाओं का प्रबंधन कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस, सार्वजनिक सुरक्षा और जमीन को छोड़कर, दिल्ली में सभी सर्विसेज पर केंद्रशासित प्रदेश के निर्वाचित नेतृत्व को अधिकार दे दिया था. हालांकि, 11 मई के फैसले से पहले उपराज्यपाल ही दिल्ली सरकार के अधिकारियों से जुड़े सभी तबादलों और पोस्टिंग पर अधिकार रखते थे.
2015 में हुई थी इसकी शुरुआत
लेकिन ये बिल इतना नया नहीं है. इस बिल और उससे पहले अध्यादेश के आने की शुरुआत 2015 से हुई थी. एक नोटिफिकेशन के जरिए केंद्रीय गृह मंत्री ने दिल्ली में जितने भी अधिकारी और कर्मचारी तैनात थे उनके ट्रांसफर और पोस्टिंग के सभी अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल को दे दिए थे.
शुरुआत में इसे लाने का उद्देश्य दिल्ली, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली (सिविल) सेवा (DANICS) कैडर के कर्मचारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग समेत उनपर अनुशासनात्मक कार्यवाही से जुड़े फैसले लेना था. इसके लिए एक निकाय की स्थापना करना था. इस मामले में दिल्ली सरकार ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दलील दी, जिसने दिल्ली सरकार का मामला पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया.
दिल्ली सीएम ने की है इस कानून को अस्वीकार करने की मांग
अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कानून को अस्वीकार करने के लिए समर्थन मांगा है. शक्तियां कम न हों इसके लिए उन्होंने विपक्षी दलों से संपर्क किया है. संसद में एक बिल के जरिए केजरीवाल इसे बदलने की केंद्र की कोशिश को रोकने का प्रयास कर रहे हैं. सोमवार तक कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, राजद और केसीआर के नेतृत्व वाली इंडिया ने भी उन्हें समर्थन दिया है.