scorecardresearch

Language War: भाषा को लेकर तमिलनाडु से लेकर महाराष्ट्र तक में विवाद, जानें सबसे पहले कहां से और कैसे उठी थी इसकी 'आग' 

इन दिनों भाषाओं को लेकर अलग-अलग राज्यों में जो विवाद शुरू हुआ है, उसका इतिहास काफी पुराना है. क्या आप जानते हैं कि ये भाषाई विवाद की शुरुआत कब और कहां से हुई थी? यदि नहीं तो हम आपको बता रहे हैं.

Language War Language War
हाइलाइट्स
  • आजादी के बाद भाषाई पहचान की मांग सबसे पहले दक्षिण भारत से उठी

  • राज्यों की पहचान भाषाई आधार पर बननी हुई थी शुरू 

तमिलनाडु राज्य में तमिल और हिंदी विवाद के बीच अब महाराष्ट्र में मराठी को लेकर विवाद शुरू हो गया है. महाराष्ट्र के मंत्री योगेश कदम ने गुरुवार को कहा कि राज्य में मराठी बोलना अनिवार्य है. महाराष्ट्र में आपको मराठी बोलनी ही होगी. आपको मालूम हो कि भाषा को लेकर यह विवाद कोई नया नहीं. बहुत साल पहले ही भाषा को लेकर विवाद शुरू हो गया था. आइए जानते हैं भाषा को लेकर कब सबसे पहले विवाद शुरू हुआ था?

भाषाई विवाद का इतिहास  
आजादी के बाद जब देश में राज्यों के नक्शे बनने की शुरुआत हुई तो सबसे पहले आवाज दक्षिण भारत से उठी. तेलुगु भाषियों ने मांग की कि उन्हें मद्रास प्रेसीडेंसी से अलग एक अपना राज्य मिले. 1952 में पोट्टी श्रीरामलू नामक एक नेता ने इसके लिए आमरण अनशन शुरू किया और 56 दिन तक अनशन करने के बाद उनकी मौत हो गई. इससे पूरे इलाके में उग्र आंदोलन शुरू हो गया. 

आखिरकार आंदोलन  के आगे तत्कालीन सरकार को झुकना पड़ा और 1953 में आंध्र प्रदेश नाम के एक नया राज्य की स्थापना हो गई. तेलुगु लोगों को अलग राज्य मिलने के बाद देश भर में भाषाओं के आधार राज्यों की मांगों के आधार पर आंदोलन तेज हो गया. आंदोलन को देखते हुए 19 दिसंबर 1953 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया. नव गठित आयोग में जस्टिस सैयद फैसल अली, हृदयनाथ कुंदरू, सरदार के.एम पाणिक्कर को शामिल किया गया. इन लोगों ने इस पर काम करना शुरू कर दिया.

सम्बंधित ख़बरें

सौंपी रिपोर्ट
दो साल बाद यानी वर्ष 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने रिपोर्ट सौंपी. इसमें कहा गया 1951 की जनगणना के अनुसार भारत में 844 भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन 91 प्रतिशत लोग केवल 14 प्रमुख भाषाएं बोलते हैं और इसी तर्क के आधार पर भाषाई तौर पर गठन को सही माना गया.

1956 में बना भारत का नया नक्शा 
एक कैलेंडर और बीता साल आया 1956 और इस रिपोर्ट के आधार पर संविधान में संशोधन कर 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए. राज्य पुनर्गठन आयोग और संविधान संशोधन अधिनियम के तहत उस समय आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, मुंबई, केरल, मध्य प्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल ,जम्मू कश्मीर को राज्य तथा दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, अंडमान, निकोबार, लक्षद्वीप समूह को अलग राज्य और केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. 

पांच साल बाद फिर टकराव
साल 1955 में ऐसा लगने लगा था कि भाषाई चिंगारी पूरी तरह से बुझ गई है, लेकिन ऐसा नहीं था, क्योंकि 1960 में मुंबई राज्य में रह रहे मराठी और गुजराती भाषाई  बंटवारे की मांग शुरू  करने लगे. 1952 से 1960 तक जो भाषाई विवाद चला, वह एक ऐसा दौरा था, जब राज्यों की पहचान भाषा के आधार पर की जा रही थी. हालांकि तब यह जरूरी भी था, क्योंकि लोगों की सांस्कृतिक और भाषा की अस्मिता को पहचान मिलना जरूरी था, लेकिन अब, वहीं विवाद धीरे-धीरे एक बार फिर राज्यों में उभरने लगा  हैं.

(ये स्टोरी पूजा कदम ने लिखी है. पूजा जीएनटी डिजिटल में बतौर इंटर्न काम करती हैं.)