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Happy Birthday Lalu Yadav: गांव की गली से CM की कुर्सी तक! जानिए बिहार की सियासत को बदलने वाले लालू यादव की पूरी कहानी

लालू प्रसाद यादव का बिहार के एक गांव से निकलकर देश की सियासत का चमकता सितारा बनने की कहानी चमत्कार जैसी है. इस सफर का लंबा-चौड़ा वक्त संघर्ष में गुजरा. लेकिन सफलता भी खूब मिली. लालू यादव कॉलेज के दिनों से ही सियासी बिसात बिछाने में माहिर थे. सियासी चालों की बदौलत लालू यादव CM से लेकर रेल मंत्री तक की कुर्सी तक पहुंचे. लेकिन इस सियासी सफर के दौरान उनके दामन पर दाग भी लगे. जो आज तक नहीं धुल पाए हैं.

लालू प्रसाद यादव लालू प्रसाद यादव
हाइलाइट्स
  • डॉक्टर बनना चाहते थे लालू प्रसाद यादव

  • शादी में 5 सेट सोना-चांदी का गहना खरीदा था

लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज के फुलवरिया गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम कुंदन राय और माता का नाम मरछीया देवी है. लालू यादव ने अपनी आत्मकथा 'गोपालगंज टू रायसीना' में गरीबी का जिक्र किया है. बचपन में उनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं होते थे. खाने के लिए भरपेट भोजन तक नहीं मिलता था. गांव में वो मवेशी चलाते थे. लालू यादव ने लिखा कि वो रोजाना नहा भी नहीं पाते थे और ना ही कपड़े धो पाते थे. लालू की शुरुआती पढ़ाई गोपालगंज के एक सरकारी स्कूल से हुई. बचपन में लालू बहुत शरारती थे. एक बार उन्होंने एक हींगवाले का झोला कुएं में फेंक दिया था. जिसके बाद हींगवाले ने खूब हंगामा किया. जल्द ही लालू यादव को गांव छोड़ना पड़ा. पढ़ाई के लिए वो पटना आ गए. 

चौधरी से यादव बन गए लालू-
गांव में उनका नाम लालू प्रसाद चौधरी था. 5वीं क्लास में दाखिला लिया. इसी दौरान उनका नाम लालू यादव हो गया. बीएमपी 5 के मिडिल स्कूल से 7वीं तक पढ़ाई की. इस दौरान लालू यादव के भाई की कमाई 45 रुपए महीना हो गई तो उनका नाम मिलर हाई स्कूल में 8वीं में लिखवाया गया. 

डॉक्टर बनना चाहते थे लालू-
लालू का पूरा परिवार वेटरनरी क्वार्टर में 10/10 के रूम में रहता था. घर में टॉयलेट भी नहीं था. बीएन कॉलेज में एडमिशन लिया. लेकिन अलजेबरा की वजह से साइंस छोड़ दिया. लालू को डॉक्टर बनने का सपना था. लेकिन ऑपरेशन से डरते थे. इसलिए ये सपना भी पीछे छूट गया. राजनीति शास्त्र और इतिहास से ग्रेजुएशन किया. इन दोनों लालू यादव सियासत में खूब सक्रिय रहे.

3000 रुपए तिलक चढ़ा-
पटना में पढ़ाई के दौरान ही लालू यादव के रिश्ते आने लगे. शादी के लिए लालू यादव ने 5 सेट सोना-चांदी का गहना खरीदा. लालू यादव के तिलक में 3000 रुपए चढ़ाए गए थे. राबड़ी देवी से लालू यादव की शादी हो गई. 

पटना यूनिवर्सिटी में चमके-
साल 1970 में लालू यादव का ग्रेजुएशन हो गया. लालू प्रसाद स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष का चुनाव हार गए. इसके बाद लालू यादव बिहार वेटरनरी कॉलेज में डेली वेज पर चपरासी की नौकरी करने लगे. इसके बाद दोबारा कानून की पढ़ाई के लिए पटना यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. साल 1973 में लालू यादव पटना यूनिर्सिटी की स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बन गए.

जेपी के खास हुए लालू-
साल 1974 में जेपी ने संपूर्ण क्रांति की घोषणा की. इस आंदोलन में लालू यादव भी शामिल हो गए. जल्द ही लालू यादव जयप्रकाश नारायण के करीबी हो गए. जेपी के करीबी होने की वजह से पुलिस भी लालू पर नजर रखने लगी. कई बार उनकी गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की गई. एक बार लालू यादव को गिरफ्तार के लिए पुलिस उनके ससुराल पहुंच गई. लालू यादव पुलिस की जीप पर चढ़ गए और कुर्ता फाड़कर चिल्लाने लगे. उनके शरीर पर डंडों से पिटाई के निशान थे.

29 साल में सांसद बने-
आंदोलन के दौरान लालू यादव जेपी के सबसे खास बन गए. आंदोलन खत्म हुआ और साल 1977 में लोकसभा चुनाव हुए. लालू यादव को जनता पार्टी ने छपरा से टिकट दिया. लालू यादव ने चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया. लालू यादव 29 साल में सांसद बनने वाले पहले शख्स थे. पार्टी में भी उनका कद बढ़ गया. जेपी ने लालू यादव को स्टूडेंट्स एक्शन कमेटी का मेंबर बना दिया. बिहार विधानसभा चुनाव में इस कमेटी को टिकट बांटने की जिम्मेदारी दी गई थी. अब लालू यादव एक जाना पहचाना नाम हो गए थे. उनके घर सर्वेंट क्वॉर्टर के बाहर नेताओं की लाइन लगने लगी.

सियासत का सितारा बने लालू-
सियासत में लालू यादव चमकने लगे. हालांकि जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद साल 1980 में फिर चुनाव हुए. इस बार लालू यादव की सांसदी चली गई. लेकिन अब वो बिहार में एक्टिव हो गए. विधानसभा चुनाव में सोनपुर से लोक दल के टिकट पर चुनाव जीता. साल 1985 में लालू यादव फिर से विधायक बने. फरवरी 1988 में बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया. लालू यादव को विपक्ष का नेता बना दिया गया. अब आया साल 1990. इस साल बिहार विधानसभा के चुनाव हुए, जिसमें जनता दल की वापसी हुई. हालांकि लालू यादव ने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था. फिर सीएम के चेहरे को लेकर उनके नाम की भी चर्चा थी.

लालू के CM बनने की कहानी-
1990 विधानसभा चुनाव में जनता दल की जीत हुई. केंद्र में जनता दल के पीएम वीपी सिंह थे. वो राम सुंदर दास को सीएम बनाना चाहते थे. जबकि डिप्टी सीएम ताऊ देवी लाल की पसंद लालू यादव थे. विधायकों की वोटिंग के जरिए सीएम चेहरे का ऐलान का फैसला हुआ. राम सुंदर दास के साथ सामने की लड़ाई में लालू यादव का पलड़ा कमजोर था. इसलिए लालू यादव ने चंद्रशेखर को फोन मिलाया और पासा पलट गया. रघुनाथ झा ने सीएम पद के लिए दावा ठोंक दिया. अब लड़ाई त्रिकोणीय हो गई थी. सीएम चेहरे के लिए वोटिंग हुई तो लालू यादव को सबसे ज्यादा वोट मिले. राम सुंदर दास दूसरे और रघुनाथ झा तीसरे नंबर पर रहे. इस तरह से सीएम की कुर्सी लालू यादव के पास आ गई और लालू यादव बिहार के सीएम बन गए.

आडवाणी का रथ रोका-
साल 1990 में बीजेपी के लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा का ऐलान किया. 25 सितंबर को सोमनाथ से आडवाणी ने यात्रा शुरू की. 23 अक्टूबर को आडवाणी बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद सियासी भूचाल आ गया. बीजेपी केंद्र की वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इस गिरफ्तारी से भले ही जनता दल को नुकसान हुआ. लेकिन लालू यादव हीरो बनकर उभरे.

घोटाले में फंसे लालू यादव-
लालू यादव मुख्यमंत्री बन गए और बिहार का शासन चलाने लगे. लेकिन इसके बाद उनके बुरे दिन शुरू हुए. साल 1996 में चारा घोटाला सामने आया. पटना हाईकोर्ट की निगरानी में सीबीआई ने मामले की जांच की. लालू यादव को इस मामले में आरोपी बनाया गया. 30 जुलाई 1997 को लालू यादव ने सरेंडर किया और उनको जेल भेजा गया. इसके बाद उनको सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. बाद में चारा घोटाले में लालू यादव को सजा भी हुई. कई बार जेल गए. जमानत पर रिहा हुए. लेकिन अभी भी चारा घोटाले की जिन्न पीछा नहीं छोड़ रहा है.

आरजेडी का गठन-
1995 विधानसभा चुनाव में जनता दल को जीत मिली थी. लालू यादव मुख्यमंत्री बने. लेकिन चारा घोटाले में फंसने के बाद जनता दल में उनके खिलाफ आवाज उठने लगी. लालू यादव ने सत्ता हाथ से निकलते देख नई पार्टी बनाने का फैसला किया. लालू यादव ने 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया. स्थापना के वक्त लालू यादव, रघुवंश सिंह समेत 17 सांसद और 8 राज्यसभा सांसद मौजूद रहे. 25 जुलाई को लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया.

बेटे को सौंपी आरजेडी की कमान-
लालू यादव लगातार बिहार की सियासत में कमजोर होते गए. उनकी सत्ता गई. विपक्ष में भी पार्टी कुछ खास नहीं कर पा रही थी. इस बीच उनके दोनों बेटे तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव बड़े हो गए. लालू यादव ने बड़ा फैसला किया और अपने छोटे बेटे को सियासी कमान की जिम्मेदारी दी. हालांकि आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव ही हैं. लेकिन फैसलों में तेजस्वी यादव की छाप मिलती है.

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