
आज उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ ही आस्था के महापर्व का समापन हो गया. देशभर में तमाम जगहों पर व्रती उगते सूर्य को उर्घ्य दिया गया. दिल्ली, नोएडा, लखनऊ, पटना, कोलकाता, भोपाल, मुंबई में नदियों और ताालाबों के किनारे घाटों पर व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य दिया गया. इसके साथ ही महापर्व छठ का समापन हुआ.
महापर्व छठ के लिए कई जगहों पर पार्कों और मैदानों में आर्टिफिशियल पार्क बनाए गए, जहां उगते सूर्य को अर्घ्य दिया गया. जगह-जगह छठ पर्व की रौनक रही. भक्तिमय माहौल रहा। सुबह के अर्घ्य के साथ ही चार दिन से चल रही छठ पूजा का समापन हो गया. अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने अपना उपवास तोड़ा.
छठ पर्व में व्रती महिलाओं और पुरुषों को 36 घंटे तक निर्जला उपवास रहना होता है. नहाय खाय के साथ छठ पर्व की शुरुआत होती है. दूसरे दिन खरना का प्रसाद खाने के बाद व्रतियों के 36 घंटे का उपवास शुरू होता है. इसके बाद अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. नदियों-तालाबों के घाटों पर व्रती इकट्ठा होते हैं और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. अगले दिन सुबह में उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ छठ महापर्व का समापन होता है.
वैसे तो सूर्योदय के वक्त जल देने को लेकर कई पर्व हैं. लेकिन अस्ताचल सूर्य को पूजने का छठ ही एकमात्र पर्व है. मान्यता के मुताबिक सूर्य को अर्घ्य देने से इस जन्म के साथ कई और जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने से संतान प्राप्ति होती है.
ऐसी मान्यता है-
सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य और संतान के लिए रखा जाता है. स्कंद पुरान के मुताबिक राजा प्रियंवद ने भी व्रत रखा था. उनको कुष्ठ रोग हो गया था. भगवान भाष्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था. स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा की गई है.
अथर्ववेद के मुताबिक षष्ठी देवी भगवान भाष्कर की मानस बहन हैं. प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं. उनको बच्चों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु की रची माया भी माना जाता है. बच्चे के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मैया की पूजा की जाती है, ताकि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं.
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