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Major Manoj Talwar: कारगिल युद्ध के हीरो मेजर मनोज तलवार, शादी की बात पर कहा था... सेहरा नहीं बांध सकता मां... मेरा जीवन देश पर कुर्बान

Kargil War के हीरो मेजर मनोज तलवार 13 जून 1999 को दुश्मनों को ढेर करने के बाद टुरटुक की पहाड़ियों पर तिरंगा लहराने के बाद शहीद हो गए थे. मरणोपरांत उनको वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

Happy Birthday Major Manoj Talwar Happy Birthday Major Manoj Talwar
हाइलाइट्स
  • मनोज तलवार का जन्म 29 अगस्त 1969 को हुआ था

  • फौजी परिवार में हुई थी परवरिश 

Happy Birthday Major Manoj Talwar: भारत के वीर सैनिकों ने हर युद्ध में पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया है. इन्हीं वीर सैनिकों में से एक थे मेजर मनोज तलवार. कारगिल युद्ध में मेजर मनोज तलवार ने अदम्य साहस का परिचय दिया था. आइए आज इस वीर के बारे में जानते हैं.

बचपन में ही ठान ली थी सेना में जाने की 
मूल रूप से पंजाब के जालंधर निवासी सेना में कैप्टन पीएल तलवार के सुपुत्र मनोज तलवार का जन्म 29 अगस्त 1969 को मुजफ्फरनगर की गांधी कॉलोनी में हुआ था. जब मनोज 10 साल के थे तो पिता की पोस्टिंग कानपुर में थी. घर के पास प्लॉट में तारबंदी थी. वहां से सेना के जवान परेड के लिए जाते थे. मनोज तारबंदी कूदकर जवानों से हैलो बोलकर आते थे. पिता की ड्रेस पहनकर अपने दोस्तों के साथ जवानों की तरह जंग करने के सीन बनाते थे. जवानों को देखकर यही कहते कि मैं बड़ा होकर सेना में जाऊंगा. वह अपने दोस्तों से भी कहते थे कि मैं सेना ज्वाइन करूंगा. 

जब मां को बोला था, मुझे नहीं करनी शादी
क्रिकेट के शौकीन मेजर तलवार के देशप्रेम का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब एक बार उनकी मां तथा बहन ने उनसे शादी की बात छेड़ी थी तो उनका जवाब था, 'मां मैं सेहरा नहीं बांध सकता, क्योंकि मेरा तो समर्पण देश के साथ जुड़ चुका है और मैं वतन की हिफाजत के लिए प्रतिबद्ध हूं. मैं किसी लड़की का जीवन बर्बाद नहीं कर सकता.

पहली तैनाती जम्मू-कश्मीर में हुई थी
मनोज तलवार एनडीए में सेलेक्ट हो गए. 1992 में कमीशन प्राप्त कर महार रेजीमेंट में लेफ्टीनेंट पद पर नियुक्त हुए. पहली तैनाती जम्मू-कश्मीर में हुई. कमांडो की विशेष ट्रेनिंग के बाद उन्हें असम में उल्फा उग्रवादियों का सफाया करने के लिए भेजा गया. उनके जूनून का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1999 को उनकी तैनाती अपने गृहराज्य पंजाब के फिरोजपुर में हो गई लेकिन उन्होंने सियाचिन में तैनाती की मांग कर दी.

टुरटुक की चोटी पर फहराया तिरंगा
कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी घुसपैठिये और फौज लगातार फायरिंग और तोप के गोले बरसा रही थी लेकिन भारतीय जवान उन्हें मुंहतोड़ जवाब देते हुए टुरटुक पहाड़ी की तरफ बढ़ रहे थे. मेजर मनोज तलवार के नेतृत्व में सैन्य टुकड़ी ने आखिरकार पाकिस्तानी जवानों और घुसपैठियों को वापस जाने पर मजबूर कर दिया और टुरटुक की पहाड़ी पर तिरंगा फहरा लिया. 13 जून 1999 की शाम दुश्मनों को मारकर ऊंची चोटी पर तिरंगा फहरा दिया. लेकिन इसी बीच दुश्मनों की तोप के गोले से वे शहीद हो गए. लेकिन शहीद होने से पहले वो अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करा गए. मरणोपरांत उनको वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

जिस दिन घर पहुंचा पार्थिव शरीर, उसी दिन पहुंची चिट्ठी
शहादत के बाद जब 16 जून, 1999 को मेजर मनोज तलवार का तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचा तो इत्तेफाक से उसी दिन उनके हाथों लिखा वो खत भी पहुंचा जो उन्होंने 11 जून को लिखा था. यह चिट्ठी उन्होंने अपने मां-पिता को लिखी थी जिसमें उन्होंने लिखा था... डियर मम्मी-पापा चिंता मत करना, मैं युद्ध में अपना फर्ज निभा रहा हूं.