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मानवता की अनूठी मिसाल, बंदर की मौत पर गांववालों ने कराया भंडारा

मध्य प्रदेश के राजगढ़ में मानवता की अनूठी मिसाल सामने आई है. जहां एक बंदर की मौत पर पूरा गाँव दुखी हुआ. इतना ही नहीं हिंदू मान्यता के अनुसार विधि विधान से बैंड बाजे के साथ बंदर का अंतिम संस्कार किया गया. गांववालों ने भंडारे का आयोजन भी क‍िया ज‍िसमें 11 हजार लोग शरीक हुए.

मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के दलूपुरा गांव के निवासियों ने  किया बंदर का अंतिम संस्कार मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के दलूपुरा गांव के निवासियों ने किया बंदर का अंतिम संस्कार

मध्य प्रदेश के राजगढ़ में एक बंदर का भव्य तरीके से अंतिम संस्कार किया गया. इसमें शहर के करीब 5 हजार से ज्यादा लोग शरीक हुए. इसके लिए बकायदे निमंत्रण पत्र छापकर बांटा गया और भंडारे का आयोजन भी किया गया. अंतिम संस्कार के बाद बंदर के अस्थियों को नदी में विसर्जित किया गया. बंदर गांव में कुछ दिन पहले ही आया था, उसके बीमार होने पर लोग उसे अस्पताल भी ले गए थे. आस्था का ये रंग देखकर हर कोई हैरान है.

इक्कीसवीं सदी में शायद ये ख़बर पढ़कर कुछ लोगों को अचरज होगा कि एक बंदर की मौत पर इंसानों की तरह उसके श्राद्ध पर 11 हजार लोगों का खाना बनवाया. इस भंडारे में 5 हजार लोगों ने प्रसाद ग्रहण क‍िया.

बंदर का अंतिम संस्कार धार्मिक रीति रिवाज से हुआ

घटना मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में खिलचीपुर से 8 किलोमीटर दूर ग्राम डालूपुरा की है. बंदर का अंतिम संस्कार धार्मिक रीति रिवाज से किया गया. मृत्यु भोज के लिए बकायदा निमंत्रण पत्र छपवाए गए ज‍िसे गांव में तथा आसपास के इलाके में बांटा गया. भंडारे का भी आयोजन किया गया.गांव के लोगों ने तीर्थनगरी उज्जैन जाकर हिंदू रीति रिवाज से 10वां, 11वां कराके अस्थियों को शिप्रा जी में जाकर विसर्जित किया. मुंडन कराया. 30 दिसंबर को बंदर की शव यात्रा बैंड बाजे के साथ निकाली गई जिसमें पूरे गांव के लोग शामिल हुए.

12 दिन पहले गांव में आया था ये बंदर

डालूपुरा के सरपंच अर्जुन सिंह ने बताया कि आज से 12 दिन पहले हमारे गांव में एक बंदर आया. वह बीमार था तो राजगढ़ ले जाकर इलाज कराया गया लेक‍िन बच नहीं सका. उसकी मृत्यु हो गई. हमने बंदर का अंतिम संस्कार किया. फिर उसका तीसरा का कार्यक्रम करा उसकी अस्थियों को ले जाकर उज्जैन में कार्यक्रम कर विसर्जन किया. मृत्यु भोज कार्ड भी छपवाए गए ज‍िसमें 10 से 11 हजार लोगों के ल‍िए खाना बनवाया. बंदर को हम भगवान हनुमान का स्वरूप मानते हैं. उसमें इंसानी रूप भी देखते हैं और मानव सभ्यता के इतिहास के मद्देनजर बंदर हमारे पूर्वज भी हैं.

गांववालों ने मुंडन भी कराया

गांव के ही हरि सिंह कहते हैं, 'मैंने अपने बाल बंदर के कार्यक्रम के लिए मुंडवाए हैं. बंदर को तकलीफ हो गई थी इसलिए वह मर गया. आज उसका श्राद्धकर्म कराकर भंडारे का आयोजन क‍िया गया.' एक अन्य ग्रामीण नारायण सिंह ने बताया, 'बंदर को हम हनुमान जी का रूप मानते हैं. 29 दिसंबर रात को बंदर की तबीयत बिगड़ी. फिर उसे खिलचीपुर ले गए. वहां डॉक्टर नहीं मिले तो राजगढ़ ले गए. वहां से इलाज कराकर गांव ले आए. लेक‍िन रात को उसकी मृत्यु हो गई. बैंड बाजे के साथ विधि विधान से अंतिम संस्कार किया गया.'

(पंकज शर्मा की रिपोर्ट)