
दुनिया में ममता और त्याग की मिसाल कही जाने वालीं मदर टेरेसा जन्म आज ही के दिन 26 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया के स्कॉप्जे (वर्तमान में मकदूनिया) के एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ था. उनका बचपन का नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था.
मां ने बचपन में सिखाया मदद का पाठ
मदर टेरेसा के पिता एक व्यवसायी थे, जो काफी धार्मिक स्वभाव के थे. मदर टरेसा के पिती की मौत साल 1919 में हो गई थी. इसके बाद मदर टेरेसा की परवरिश उनकी मां ने की. पिता के निधन के बाद मदर टेरेसा के परिवार को आर्थिक परेशानी से गुजरना पड़ा. लेकिन उनकी मां ने उन्हें हमेशा मिल बांट कर खाने की शिक्षा दी. उनकी मां का कहना था, जो कुछ भी मिले उसे सबके साथ बांट कर खाओ. अपनी मां की बातों की वजह से बचपन से ही मानवता उनके अंदर आ गई थी.
मदर टेरेसा 12-13 साल की उम्र में ही मानवता सेवा की ओर आकर्षित हो गईं थीं. सरकारी स्कूल में पढ़ते समय वह सोडालिटी की बाल सदस्या बन गईं. सोडालिटी मानव सेवा को समर्पित ईसाई संस्था का एक अंग थी. जिसका प्रमुख कार्य लोगों, विशेषकर छात्रों को स्वंयसेवी कार्यकर्ताओं के रूप में तैयार करना था.
स्पेन की महान संत टेरसा से प्रेरित थीं मदर टेरेसा
मदर स्पेन की महान संत टेरेसा से काफी प्रभावित थीं, जिन्होंने स्पेन के लोगों को नए जीवन का अमर संदेश दिया था. यह संयोग था संत टेरेसा भी 18 साल की उम्र में संन्यासी बन गए थे. मदर टेरेसा ने भी 29 नवंबर 1928 को अपने जीवन के 18वें साल में ही संन्यासी जीवन को अपनाया. अपने आदर्श और महान संत टेरेसा से प्रेरित होकर उन्होंने अपना नया नाम टेरसा रख लिया था.
18 की उम्र में छोड़ दिया था घर
मदर टेरेसा ने 18 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और सिर्फ घर ही नहीं देश भी छोड़ दिया था. वो सिस्टर ऑफ लोरिटो से जुड़ गई थीं और इसके लिए वो आयरलैंड गई थीं. इसके बाद वो जब तक जिंदा रही, अपने घर वालों से नहीं मिलीं. आयरलैंड में ही उन्होंने अंग्रेजी सीखने के लिए मेहनत की और फिर भारत आ गईं. यहां पर ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने ईसाई मिशनरीज के लिए काम करने का फैसला कर लिया. उन्होंने 1931 को नन की कड़ी ट्रेनिंग लेकर कोलकाता के स्कूलों में काम करना शुरू किया.
भगवान का संदेश मिला तो शुरू किया सेवा कार्य
मदर टेरेसा ने सेंट मैरिज में सबसे पहले पढ़ाना शुरू कर दिया और वहां वो 15 सालों तक रहीं. उन्हें गरीबों की हालत देखकर बहुत दुख होता था. 1946 में दार्जिलिंग रिट्रीट के दौरान ही उन्होंने कहा कि उन्हें भगवान का संदेश मिला है कि इस देश में सबसे गरीब लोगों की मदद करनी है. उन्हें दो साल लग गए अपने इस काम को पूरा करने में. उन्होंने नर्सिंग का कोर्स किया. उसके बाद लोगों की मदद में जुट गईं.
लोगों का पेट भरने के लिए मांगी भीख
मदर टेरेसा जब सेवा के क्षेत्र में आईं तो उन्होंने सबसे पहले अपनी ड्रेस बदलकर साड़ी कर ली ताकि वो लोगों के बीच आसानी से रह पाएं. उन्हें पहले आसान जीवन जीने की आदत थी, लेकिन झोपड़ी में रहना पड़ा और भीख मांगकर उन्होंने लोगों का पेट भरा. उन्हें कई बार कॉन्वेंट वापस जाने का मन भी किया क्योंकि स्लम की जिंदगी काफी मुश्किल थी, पर वो टिकी रहीं और कोढ़, प्लेग जैसी बीमारियों से पीड़ित मरीजों की मदद की.
प्रेम और शांति की थीं दूत
मदर टेरेसा वास्तव में प्रेम और शांति की दूत थीं. उनका विश्वास था कि दुनिया में सारी बुराइयां व्यक्ति से पैदा होती हैं. यदि व्यक्ति प्रेम से भरा होगा तो घर में प्रेम होगा, तभी समाज में प्रेम एवं शांति का वातावरण होगा और तभी विश्वशांति का सपना साकार होगा. उनका संदेश था हमें एक-दूसरे से इस तरह से प्रेम करना चाहिए जैसे ईश्वर हम सबसे करता है. तभी हम विश्व में, अपने देश में, अपने घर में तथा अपने हृदय में शान्ति ला सकते हैं.
मदर टेरेसा से जुड़ी खास बातें
1. मदर टेरेसा 1929 में भारत आईं और दार्जिलिंग के सेंट टेरेसा स्कूल में स्टडी की.
2. 24 मई 1931 को अपनी पहली धार्मिक प्रतिज्ञा ली.
3. 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों की सेवा का संकल्प लिया था.
4. 1950 में मदर टेरेसा ने निस्वार्थ सेवा के लिए कोलकाता में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की थी.
5. 2016 में मदर टरेसा को सेंट पीटर स्क्वायर में पोप फ्रांसिस ने 'संत' घोषित किया था.
6. सेंट की उपाधि पाने वाली मदर टेरेसा भारत से पहली महिला थीं.
7. हार्ट अटैक के कारण 5 सितंबर 1997 के दिन मदर टरेसा की कोलकत्ता में मृत्यु हुई थी. उनकी राजकीय सम्मान के साथ अंत्योष्टी हुई थी.
8. मदर टरेसा की मृत्यु के समय तक मिशनरीज ऑफ चेरिटी 123 देशों में 610 मिशन नियंत्रित कर रही थी.
इन पुरस्कारों से हुईं सम्मानित
1. 1962 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया.
2. 1962 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार दिया गया.
3. 1972 में दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू अवार्ड फॉर इंटरनेशनल अंडरस्टेंडिंग पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
4. 1973 में लंदन में फाउंडेशन प्राइज फॉर प्रॉग्रेस इन रिलीजन सम्मान दिया गया.
5. 1979 में विश्व शांति और सद्भावना के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
6. 1980 में भारत सरकार की ओर से उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
7. 1983 में महारानी एलिजाबेथ ने ब्रिटेन के सर्वोच्च सम्मान ऑर्डर ऑफ मैरिट से सम्मानित किया.
8. 1993 में राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
मदर टेरेसा के अनमोल वचन
1. यदि आप सौ लोगों को नहीं खिला सकते तो एक को जरूर खिलाइए.
2. मैं हर इंसान में ईश्वर देखती हूं. जब मैं रोगियों के घाव साफ कर रही होती हूं तो मुझे लगता है कि मैं ईश्वर की ही सेवा कर रही हूं.
3. शांति की शुरुआत मुस्कराहट से शुरू होती है.
4. जहां जाइए प्यार फैलाइए, जो आपके पास आए वह और खुश होकर लौटे.
5. यदि हमारे मन में शांति नहीं है तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके हैं कि हम एक दूसरे के हैं.
6. सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ रोग या तपेदिक नहीं, बल्कि अवांछित होना ही सबसे बड़ी बीमारी है.
7. चमत्कार यह नहीं की हम यह काम करते हैं, बल्कि ऐसा करने में हमें खुशी मिलती है.
8. अकेलापन सबसे भयानक गरीबी है.
9. रोगी की सेवा करना सबसे बड़ी सेवा है, यहीं सबसे बड़ा पुण्य है.
10. यदि आप चाहते हैं कि आपका प्रेम संदेश सुना जाए तो दीये को जलाए रखने के लिए बार-बार उसमें तेल डालते रहना जरूरी है.
मदर टेरेसा के चमत्कार
मदर टेरेसा ने 1947 में ही भारत की नागरिकता ले ली थी, वो फर्राटे से बंगाली बोलती थीं, मदर टेरेसा के बारे में अक्सर कहा जाता रहा है कि उन्होंने कई बार चमत्कार किए हैं. एक फ्रांसीसी लड़की, जिसने कहा था कि मदर टेरेसा के एक पदक को छूने से पसलियां ठीक हो गईं, वह एक कार दुर्घटना में टूट गई थी.
एक फिलिस्तीनी लड़की ने बताया था कि वो सपने में मदर टेरेसा को देखने के बाद हड्डी के कैंसर से उबर गई. वहीं भारत की मोनिका बेसरा ने दावा किया था कि उनका कैंसर मदर टेरेसा के कारण ठीक हुआ. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि एकबार जब वे मिशनरीज ऑफ चैरिटी से घर गई, तो उन्हें बुखार, सिरदर्द, उल्टी और पेट में सूजन हो गई, जांच कराने पर रिपोर्टों में बेसरा को कैंसर के ट्यूमर से पीड़ित बताया गया.
5 सितंबर को बेसरा जब मिशनरीज ऑफ चैरिटी चैपल में प्रार्थना कर रही थीं, तब उन्होंने मदर टेरेसा की एक तस्वीर से निकलने वाली रोशनी को देखा. बाद में, एक पदक जो मदर टेरेसा के शरीर को छू गया था, बेसरा के पेट पर रखा गया, अगले दिन जब बसरा उठी तो पाया कि उसका ट्यूमर गायब हो गया था. जिन डॉक्टरों ने उनकी जांच की थी, वे सहमत थे कि बेसरा को अब सर्जरी की आवश्यकता नहीं है.