
क्या आप यकीन करेंगे कि लोग एक घंटे रोने के लिए 499 रुपये तक दे रहे हैं? सुनने में अजीब लगता है, लेकिन ये हकीकत है! और ये हो रहा है यहीं भारत में.
मुंबई को सपनों का शहर कहा जाता है, यहां एक ओर हंसी और खुशियों से भरी कहानियां बनती हैं, वहीं दूसरी ओर कई दिलों में अनकहे बोझ छिपे रहते हैं. अब यही शहर एक नए और अनोखे चलन का हिस्सा बन चुका है- कम्युनिटी क्राइंग यानी “ग्रुप में रोने की थेरेपी.”
कुछ हफ्ते पहले, मुंबई में Cry Club ने अपनी शुरुआत की. इस क्लब ने शहर के अलग-अलग स्थानों पर अपने दरवाजे खोले, जहां लोग बिना किसी जजमेंट और सवालों के, खुलकर रो सकते हैं. यहां अजनबी एक साथ आते हैं, अपने दिल की गांठें खोलते हैं और आंसुओं के जरिए अपने मन का बोझ हल्का करते हैं.
मन हल्का करने की कीमत
हम सबने कभी न कभी वो पल महसूस किए हैं जब खुलकर रोने के बाद मन अचानक हल्का हो जाता है. वैज्ञानिक दृष्टि से, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि रोने से शरीर और मन दोनों को राहत मिलती है. मुंबई क्राय क्लब भी इसी विचार पर आधारित है. यहां प्रतिभागी एक निश्चित फीस देकर सेशन्स में शामिल होते हैं. क्लब का मकसद है यह संदेश देना कि रोना कमजोरी नहीं, बल्कि मेंटल और इमोशनल हेल्थ में इंवेस्टमेंट है. इसे ऐसे समझिए, जैसे हम जिम में पसीना बहाकर शरीर के टॉक्सिन्स बाहर निकालते हैं, वैसे ही यहां आंसुओं के जरिए भावनात्मक बोझ बाहर निकाला जाता है.
जापान की “रुइकात्सु” थ्योरी से प्रेरणा
ये आइडिया भारत में नया हो सकता है, लेकिन दुनिया में पहली बार इसकी शुरुआत जापान में हुई थी. जापानी शब्द “रुइकात्सु” का अर्थ है “आंसू खोजने की क्रिया.” हिदेफुमी योशिदा और हिरोकी तेराई को “क्राइंग थेरेपिस्ट” या “हैंडसम वीपिंग बॉयज़” के नाम से जाना जाता है. उन्होंने 2013 में टोक्यो में इस कॉन्सेप्ट की शुरुआत की. उनका मानना था कि बहुत से लोग तनाव, अकेलेपन और दबी भावनाओं से जूझ रहे हैं, और अगर उन्हें एक सुरक्षित माहौल दिया जाए जहां वे अजनबियों के बीच खुलकर रो सकें, तो इससे वे और मजबूत बन सकते हैं. आज यह ट्रेंड टोक्यो से निकलकर बेंगलुरु, पुणे और अब मुंबई तक पहुंच चुका है.
अजनबियों के सामने रोना क्यों आसान होता है?
विज्ञान भी कहता है: रोना हैल्दी है
रोना नहीं है कमजोरी की निशानी
पिछले कुछ सालों में कई जानी-मानी हस्तियों ने यह धारणा तोड़ी कि रोना कमजोरी की निशानी है. दीपिका पादुकोण ने डिप्रेशन के बारे में खुलकर बात करते हुए कहा कि आप ठीक नहीं हैं यह बिल्कुल सामान्य है और रोना भी सामान्य है.
हाल ही में, आमिर खान ने अपनी फिल्म “सितारे ज़मीन पर” के प्रमोशन के दौरान एक इंटरव्यू में दोस्ती, पुराने रिश्तों और अपने पालतू जानवर की याद में खुलेआम आंसू बहाए.
शायद इन क्लब्स की असली खूबसूरती सिर्फ आंसुओं में नहीं है, बल्कि उस खामोशी की गहराई में है, जहां अजनबी दोस्त बन जाते हैं. यहां लोग महसूस करते हैं, ठीक होते हैं और सबसे बढ़कर, बिना शर्मिंदा हुए इंसान बनने की आज़ादी पाते हैं.
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