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Nationalization of Banks: उद्योगपतियों के हाथों से निकलकर सरकार के हाथ में आ गई थी बैंकों की डोर, इंदिरा गांधी का वो फैसला जिसने देश की सूरत बदल दी

जब इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया उस वक्त इन बैंकों में देश की करीब 80 फीसदी जमा पूंजी थी. उस वक्त यह तो साफ हो गया था कि प्राइवेट बैंक देश हित की नहीं अपने मालिक के हित की परवाह करते हैं. और इसलिए इंदिरा गांधी को ये ऐतिहासिक फैसला लेना पड़ा.

Nationalization of Banks Nationalization of Banks
हाइलाइट्स
  • सरकार द्वारा वर्ष 1969 में और बाद में वर्ष 1980 में बैंकों का राष्ट्रीकरण किया गया

  • बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद शहरों से निकलकर बैंक गांवों और कस्बों में खुलने लगे.

19 जुलाई का दिन भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. साल 1969 में उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. यह वो फैसला था जिसने देश की सूरत बदल दी और इसके परिणाम दूरगामी साबित हुए.

राष्ट्रीयकरण क्या है
राष्ट्रीयकरण का अर्थ होता है किसी भी निजी संस्थान को सरकारी नियंत्रण में लेना. बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मतलब है निजी बैंकों को सरकारी कब्जे में लेना. आजादी के बाद तक एक बैंक 'भारतीय स्टेट बैंक' राष्ट्रीयकृत था, जिसका राष्ट्रीयकरण 1949 में किया गया था. विश्वयुद्ध की वजह से हुए वित्तीय संकट से उबरने के लिए कई यूरोपीय देशों ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था. जून 1969 में देश में 73 व्यावसायिक बैंक थे.

19 जुलाई की मध्य रात्रि को किया गया था 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण

जब इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया उस वक्त इन बैंकों में देश की करीब 80 फीसदी जमा पूंजी थी, लेकिन इस पूंजी का लाभ केवल एक वर्ग के लोगों तक सीमित था. भारत की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी, लोग बैंक जाने से कतरारे थे. उस वक्त यह तो साफ हो गया था कि प्राइवेट बैंक देश हित की नहीं अपने मालिक के हित की परवाह करते हैं. भारत सरकार के पास पूंजी की भी बड़ी समस्या थी क्योंकि संसाधन सीमित थे और इसलिए इंदिरा गांधी को ये ऐतिहासिक फैसला लेना पड़ा. इंदिरा गांधी की सरकार ‘बैंकिंग कम्पनीज आर्डिनेंस’ लेकर आई और रातों-रातों 14 बैंकों की कमान सरकार के कब्जे में आ गई. बाद में 1980 में भी 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया.

भारत में बैंकिंग व्यवस्था को तीन चरणों को विभाजित किया जा सकता है. 

आजादी से पहले का समय: 1770 में बैंक ऑफ हिंदुस्तान की स्थापना के साथ भारत में बैंकिंग प्रणाली की स्थापना की गई. यह 1832 चलता रहा. बैंक ऑफ मद्रास, बैंक ऑफ बॉम्बे और बैंक ऑफ बंगाल के विलय के बाद इसे भारतीय रिजर्व बैंक नाम दिया गया. इसी दौरान इलाहाबाद बैंक 1865, पंजाब नेशनल बैंक 1894, बैंक ऑफ इंडिया 1906, बैंक ऑफ बड़ौदा 1908, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 1911 स्थापित किए गए जो आज भी अपनी सेवा दे रहे हैं. हालांकि इनका संचालन निजी उद्योगपतियों द्वारा किया जा रहा था. 

दूसरा फेज- 1947 से 1991 तक: यह वो समय है जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. इस समय ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की पहुंच नहीं थी. 7 जुलाई 1969 को कांग्रेस के बेंगलुरु अधिवेशन में इंदिरा ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रस्ताव रखा था. इंदिरा गांधी की सरकार के मंत्री मोरारजी देसाई इस फैसले के खिलाफ थे लेकिन बावजूद इसके 19 जुलाई 1969 को इंदिरा ने अध्यादेश जारी कर 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया. 


और तीसरा फेज 1991 और उसके बाद का: इस दौरान बैंकिंग प्रणाली में कई बदलाव आए. जनता के हितों को सर्वोपरि रखते हुए बैंकिंग व्यवस्था के सुधार किए गए. राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की शाखाओं में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई. पिछले कुछ सालों में सरकार ने बैंकिंग सुधार के तहत कई छोटे सरकारी बैंकों को बड़े बैंकों से मर्ज कर दिया है. पहले ग्रामीण इलाकों में बैंकों की ब्रांच नहीं होती थीं, लेकिन अब हर गांव के 5 किमी के दायरे में कोई न कोई बैंक मौजूद है. सरकार की जनधन योजना ने ग्रामीण लोगों तक भी बैंकिंग व्यवस्था को पहुंचाने में मदद की है. वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 34.9 करोड़ जनधन खाते और 8.05 करोड़ खाते क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में हैं. हालांकि राष्ट्रीयकरण के बाद तमाम तरह के सुधार किए जाने के बाद भी सरकारी बैंकों की समस्याएं पूरी तरह खत्म नहीं हो पाई हैं.